सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है।
हाँ बात के नही होते यूं तो सिर या पैर
मगर निकलती तो दूर तलक जाती बात
कहती पलाश सबसे सौ बात की इक बात
सोच समझ कर सदा कहो किसी से बात
धूप को जंगल नहीं होने देंगे...संदीप कुमार शर्मा
सच
पत्तों ने
अपनी
धूप को
अपनी मुट्ठी में छिपा
लिया है
अगली
पीढ़ी की मुस्कान
के लिए...।
शहीदों को याद करते हुए... अपर्णा बाजपेयी
था सिसक रहा पूरा भारत
और देशप्रेम की अलख जगी
कुर्बान हुए उन वीरों से
अगणित वीरों की फौज उठी,
चोर न लूटे, खर्च न फूटे...अनीता
हमारी मंजिल यदि शमशान घाट ही है, चाहे वह आज हो या पचास वर्ष बाद, तो क्या हासिल किया। एक रहस्य जिसे दुनिया भगवान कहती है, हमारे माध्यम से स्वयं को प्रकट करने हेतु सदा ही निकट है। वही जो प्रकृति के कण-कण से व्यक्त हो रहा है। वह एक अजेय मुस्कान की तरह हमारे अधरों पर टिकना चाहता है और करुणा की तरह आँखों से बहना चाहता है।
फ़िल्म-निर्माण में सशक्त पटकथा एवम् कुशल निर्देशन का महत्व...जितेन्द्र माथुर
भाई रवीन्द्र जी..
जवाब देंहटाएंकाफी दिनों से आपकी नई रचना नहीं पढ़ी
आजकल आपकी व्यस्तता आपको त्रसित कर रही है न
स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा
आभार..
सादर..
सुंदर लिंकों का चयन के साथ शानदार डमरू सी पुरवाई।
जवाब देंहटाएंसादर
आदरणीय रविंद्र जी...आभारी हूं मेरी रचना को नेह प्रदान करने के लिए। सभी लिंक और रचनाएं बहुत गहरी हैं। सभी को शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंरविन्द्र जी ,
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स दिए । सुंदर प्रस्तुति ।
सभी रचनाएं बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंविविधरंगी सूत्रों की खबर देते लिंक्स, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंसभी को आने वाले पर्व की शुभकामनाएं
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