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गुरुवार, 25 मार्च 2021

2078...पीपल की कोमल कोंपलें बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में...

 सादर अभिवादन। 

गुरुवारीय अंक में आपका स्वागत है। 


पीपल की कोमल कोंपलें 

बजतीं हैं डमरू-सीं पुरवाई में,

रूप बदलकर वृक्षराज 

झूम रहा ज्यों शहनाई में। 

#रवीन्द्र_सिंह_यादव 


आइए अब आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-

बात... डॉ.अपर्णा त्रिपाठी 

हाँ बात के नही होते यूं तो सिर या पैर

मगर निकलती तो दूर तलक जाती बात

कहती पलाश सबसे सौ बात की इक बात

सोच समझ कर सदा कहो किसी से बात


धूप को जंगल नहीं होने देंगे...संदीप कुमार शर्मा 

सच 

पत्तों ने 

अपनी 

धूप को 

अपनी मुट्ठी में छिपा 

लिया है

अगली 

पीढ़ी की मुस्कान

के लिए...


शहीदों को याद करते हुए... अपर्णा बाजपेयी 

था सिसक रहा पूरा भारत

और देशप्रेम की अलख जगी

कुर्बान हुए उन वीरों से

अगणित वीरों की फौज उठी,


चोर लूटे, खर्च फूटे...अनीता 

हमारी मंजिल यदि शमशान घाट ही है, चाहे वह आज हो या पचास वर्ष बाद, तो क्या हासिल किया। एक रहस्य जिसे दुनिया भगवान कहती है, हमारे माध्यम से स्वयं को प्रकट करने हेतु सदा ही निकट है। वही जो प्रकृति के कण-कण से व्यक्त हो रहा है। वह एक अजेय मुस्कान की तरह हमारे अधरों पर टिकना चाहता है और करुणा की तरह आँखों से बहना चाहता है।

फ़िल्म-निर्माण में सशक्त पटकथा एवम् कुशल निर्देशन का महत्व...जितेन्द्र माथुर 

 
कभी-कभी कोई फ़िल्मकार अच्छा लेखक होता है लेकिन अच्छा निर्देशक नहीं  स्वर्गीय ख़्वाजा अहमद अब्बास के साथ यही बात थी  वे एक महान साहित्यकार थे और इसीलिए उन्होंने अपनी ही रचित कहानियों पर फ़िल्में बनाईं और उन फ़िल्मों में कथाओं की आत्मा को ज्यों-का-त्यों रखा  लेकिन वे कुशल निर्देशक नहीं थेइसीलिए उनकी बनाई फ़िल्मों में मनोरंजन के उस तत्व का अभाव होता था जो किसी भी फ़िल्म को दर्शकों के लिए स्वीकार्य बनाता है  मैंने उनकी बनाई हुई फ़िल्म 'बंबई रात की बाहों में' (१९६८देखी जिसके लेखक-निर्माता-निर्देशक सब अब्बास साहब ही थे  कहानी अत्यंत प्रेरणास्पद थी लेकिन फ़िल्म ऊबाऊ और प्रभावहीन बनकर रह गई  

*****

आज बस यहीं तक 

फिर मिलेंगे अगले गुरुवार (गुरूवार नहीं )।  


रवीन्द्र सिंह यादव 


7 टिप्‍पणियां:

  1. भाई रवीन्द्र जी..
    काफी दिनों से आपकी नई रचना नहीं पढ़ी
    आजकल आपकी व्यस्तता आपको त्रसित कर रही है न
    स्वास्थ्य का ध्यान रखिएगा
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर लिंकों का चयन के साथ शानदार डमरू सी पुरवाई।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय रविंद्र जी...आभारी हूं मेरी रचना को नेह प्रदान करने के लिए। सभी लिंक और रचनाएं बहुत गहरी हैं। सभी को शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  4. रविन्द्र जी ,
    अच्छे लिंक्स दिए । सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  5. विविधरंगी सूत्रों की खबर देते लिंक्स, आभार मुझे भी शामिल करने हेतु !

    जवाब देंहटाएं

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