मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
कर्मकांड को कर्म कहने वाले हम
धार्मिक होना अध्यात्मिक होना कहने वाले हम
धर्म को प्रतिष्ठित करने में
मानवता को सहजता से अनदेखा करने वाले हम
कब साम्प्रदायिक हुए पता न चला
क्या इतने मासूम हैं हम?
धर्म का परचम लिए रटे-रटाये
नारों को दुहराते हुए
उन्माद में बौराए हुए हम
शिक्षित होकर भी
सूचनाओं के आधार पर
ज्ञान अपडेट करने वाले हम
भ्रमित ,मूढ़,अतार्किक ,जिसे
आसानी से बरगलाया जा सकता है
अंधकारमय भविष्य से अंजान
न जाने किस नशे में चूर है हम...?
----
आज की रचनाएँ-
असुर
मुझे आगे की यात्रा पर जाना है
कर रही हूँ आह्वान पुन:-पुन:
हे असुरों आओ
जा न सकूँगी आगे
तुम्हारी इन अमानतों सहित
ले लो वापिस ये नख,ये तीक्ष्ण दन्त
ये आर - पार चीरती कटार
मुक्त करो इस दानवता से
पर नदारद हैं असुर !
बधिया
आवश्यक यह भी है कि
वह जो नहीं बोलते हैं
देश वह भी बोले
यह तो और भी आवश्यक है कि
वह जब बोलने नहीं कहें
तब कोई कुछ भी नहीं बोले
सब रहे चुप, एकदम चुप
तना हुआ वृक्ष
मैं भी
नारियल का वह वृक्ष खड़ा /झूमता /तना हुआ
तुम्हारे लिए
जीवन के सभी मौसम में
तुम बनो नदी
प्रेम के जैसे बरस रही है...
मिट्टी का रंग पीला हो गया
जो सूखा था गीला गीला गया
कनक रंग के दादुर गायें
हँस - हँस बरसो बरसा
सावन से पहले अषाढ़ मन हरसा
कहानी
साँझ गुलाबी रिमझिम सिंदूरी बारिश खत लिखे बादलों कागज ने l काजल गलियाँ आईना वो रंजिशें रक्स साँझा हो गयी फिर चाँद से ll
सबब ज़िल्द पुरानी कहानी किताबों की किस्मत डोरी कच्चे धागों की l
बातें यादों से करती शराफत बिछुड़न तन्हा बेपनाह रस्म नाराजगी की ll
साइकिल की सवारी
अभी मन्दिर में महर्षि सदाफलदेव जी महाराज की भव्य प्रतिमा, भित्ति चित्र, संगमरमर की दीवारों में स्वर्वेद के अंकित दोहे और सीलिंग के खूबसरत झूमरों-डिजाइन ने आकर्षित किया। फिर भी अभी दूर राज्य से दर्शन के लिए तुरत आने लायक नहीं है, अभी निर्माण कार्य चल रहा है। हाँ, आसपास के मित्र एक बार जा कर देख सकते हैं। अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए मन्दिर से खरीद कर एक 'स्वर्वेद' की पुस्तक लाया हूँ। एक महत्वपूर्ण बात यह कि यह किसी देवी, देवता का मन्दिर नहीं, यह एक विशाल ध्यान केंद्र है और यहाँ नशा त्याग, पवित्र भाव से आना है।
-----
आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
-------
आवश्यक यह भी है कि
जवाब देंहटाएंवह जो नहीं बोलते हैं
देश वह भी बोले
आभार
वंदन
धन्यवाद बहुत सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पठनीय अंक।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा प्रिय श्वेता! कर्मकांड ही अब असली धर्म बन गया है और सोशल मीडिया पर झांकते झांकते छद्म सूचनाओं पर विश्वास कर इंसानियत से दूर हो सांप्रदायिक मे बढ़ती आस्था चिंतनीय है साथ में निंदनीय भी! आत्म मंथन करने का समय है! कि सभ्य समाज में हमें क्या चाहिए! इंसानियत और प्रेम से भरी दुनिया या जलती उजड़ी वीरान दुनिया!
जवाब देंहटाएंआज केसुंदर अंक और बेहतरीन रचनाओं के लिए आभार! सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं❤