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मंगलवार, 9 जुलाई 2024

4181....जो पाना था पाया जग में

 मंगलवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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ओ सजना बरखा बहार आई

थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी 
जलते तन पर फिर बरस गयी
-श्वेता सिन्हा



गहन दुर्दम निद्रा है मृत्यु 

 जीवन सा हो मरण भी सुंदर,

अंतर  का अवसाद मिटाने  

मिला सभी को रहने का घर !


जान लिया हर लक्ष्य जगत का 

जो पाना था पाया हमने, 

पढ़ ही डाले जितने भी थे 

ख़ुशियों और गमों के किस्से !




आकाश का विस्तार 
जगत जिनमें समाहित,
पाए कृपादृष्टि अनुराग 
बहन सुभद्रा समान ।
संग बलभद्र शोभायमान ।
रथारुढ़ हुए भगवान ..
प्रस्थान गंतव्य की ओर ।



तुम सा न अपना सृष्टि में कोई ,

निशि दिन दरस की नित कामना है ।

मीरा की अविचल लगन ह्रदय में ,

शबरी सी जगी दृढ़ भावना है ।



गधे बोझ ढ़ोते-ढ़ोते
थक चुके हैं 
अब कुम्हार गधों की सुनता है 
स्वयं गधा बनकर
गधों के अनुरूप चलता है 
गधे अपनी ताकत
पहचान चुकें हैं 
गधों के बिना बोझ 
ढोना है बहुत मुश्किल 
गधों को खुश रखना है जरूरी
इसलिए 
कुम्हार गधा बनकर खुश है...!!



सड़क किनारे जहां - तहां कहीं भी मिल जाएंगी कब्रें। कोई धर्म कोई जाति कोई भी देश क्यों न हो देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वालों के लिए सर श्रद्धा से झुक ही जाता है, हाथ बरबस ही जुड़ जाते हैं। तस्वीर लेने को दिल नहीं होता, लगता है जो देश के लिए मर-मिट कर अब अपनी कब्र में आराम कर रहा है उसकी तस्वीर लेना शायद अन्याय हो, उसकी चिर निद्रा में खलल हो।


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आज के लिए बस इतना ही
मिलते हैं अगले अंक में।
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7 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम अंक
    आभार
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. सुप्रभात ! बारिश की रिमझिम सा सुंदर गीत, व पठनीय रचनाओं से सजा सुंदर अंक, आभार श्वेता जी!

    जवाब देंहटाएं
  3. अज़रबैजान का यात्रा वृत्तांत अच्छा जा रहा है और उस देश की यात्रा की इच्छा होने लगी है।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बढ़िया अंक हमेशा की तरह! बधाई और आभार!

    जवाब देंहटाएं

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