शीर्षक पंक्ति: आदरणीय विश्वमोहन जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच पसंदीदा रचनाओं के साथ हाज़िर हूँ-
लीपपोतकर लीक-वीक,
ये लोकलाज भी लील गए।
इंसाफ़ के अंधे बुत के,
कल-पुर्ज़े सारे हिल गए।
बूढ़ा होता अखबारवाला और घटती छोटी बचत
देश की अर्थव्यवस्था बदली
उसे पता चला विज्ञापनों से
जबकि उसकी अर्थव्यवस्था
थोड़ी संकुचित ही हुई इस दौरान
घटते अखबार पढ़ने वालों के साथ।
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आप जेल में
क्यों रहते हैं- रूमी
रात में, आपका प्रिय भटकता है।
सांत्वना स्वीकार नहीं करते।
तुम विलाप करते हैं, "उसने मुझे छोड़ दिया।" "उसने मुझे छोड़
दिया।"
बीस और आएंगे।
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बड़े धोखे हैं इस राह में...IAS, IPS बनने के लिए ऐसे उड़ाते हैं आरक्षण के
नियमों की धज्जियां
मान लीजिए मेरे पिता IAS ऑफिसर हैं, दो साल में रिटायर होने वाले हैं। मैं ओबीसी में हूं। लेकिन
मेरे पिता क्लास-1 जॉब में हैं तो मुझे आरक्षण नहीं मिलेगा। उन्होंने खूब पैसा कमा लिया है। इतना
कि जीवनभर काम चल जाएगा। कई बिल्डिंग्स खरीद ली हैं, किराया हर महीने लाखों में आता है। मुझे आईएएस बनना है।
मैंने पापा से कहा कि जेनरल से नहीं बन पाऊंगा, ओबीसी से बनना है, आप सपोर्ट करो। आप रिजाइन कर दो। उन्होंने रिजाइन कर दिया। अब मुझपर ये सीमा
लागू नहीं होती कि मेरे पिता ग्रुप 1 जॉब में हैं।
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शानदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर वंदन
सुंदर और पठनीय सूत्र। हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय । सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय रवींद्र जी, बहुत ही शानदार प्रस्तुति रही आज की! सभी रचनाओं को पढ़कर अच्छा लगा! सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं! आपको आभार सार्थक सूत्रों के चयन के लिए🙏
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