नमस्कार
एक छोटी सी लम्बी कहानी
ऐसा है मेरा भारत...
जब हिटलर ने पोलैंड पर आक्रमण करके द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत की थी तो
उस समय पोलैंड के सैनिकों ने अपने 500 महिलाओं और करीब 200 बच्चों को एक शिप में बैठाकर
समुद्र में छोड़ दिया और कैप्टन से कहा की इन्हें किसी भी देश में ले जाओ, जहाँ इन्हें शरण मिल सके
अगर जिन्दगी रही हम बचे रहे या ये बचे रहे तो दुबारा मिलेंगे।
500 शरणार्थी पोलिस महिलाओं और दो सौ बच्चों से भरा वो जहाज ईरान के सिराफ़ बंदरगाह पहुंचा,
वहाँ किसी को शरण क्या उतरने की अनुमति तक नहीं मिली, फिर सेशेल्स में भी नहीं मिली, फिर
अदन में भी अनुमति नहीं मिली। अंत में समुद्र में भटकता भटकता वो जहाज गुजरात के
जामनगर के तट पर आया।
जामनगर के तत्कालीन महाराजा "जाम साहब दिग्विजय सिंह" ने न सिर्फ 500 महिलाओं बच्चों के लिए
अपना एक राजमहल जिसे हवामहल कहते है वो रहने के लिए दिया बल्कि अपनी रियासत में
बाला चढ़ी में सैनिक स्कूल में उन बच्चों की पढ़ाई लिखाई की व्यवस्था की। ये शरणार्थी जामनगर में
कुल नौ साल रहे। उन्हीं शरणार्थी बच्चों में से एक बच्चा बाद में पोलैंड का प्रधानमंत्री भी बना
आज भी हर साल उन शरणार्थियों के वंशज जामनगर आते है और अपने पूर्वजों को याद करते है।
पोलैंड की राजधानी वारसा में कई सड़कों का नाम महाराजा जाम साहब के नाम पर है,
उनके नाम पर पोलैंड में कई योजनाएं चलती है। हर साल पोलैंड के अखबारों में
महाराजा जाम साहब दिग्विजय सिंह के बारे में आर्टिकल छपता है। प्राचीन काल से भारत,
वसुधैव कुटुम्बकम, सहिष्णुता का पाठ दुनिया को पढ़ाते आया है और
आज कल के नौसिखिए नेता, भांड पत्रकार, मलेच्छ आदि लोग
भारत की सहिष्णुता पर प्रश्न चिन्ह लगाते फिरते हैं।
जय जननी, जय भारतभूमि !!
अधिक जानकारी गूगल जी महाराज से लीजिए
अब आनंद लीजिए मिली-जुली रचनाओं का
जब नहीं होंगे उजाले,
आँखों पे जो ऐनक होगी,
झुर्रियों से भरा चेहरा..
न पहले सी रौनक होगी
हाँ सुनो....
मासूम भेड़ की ऊन
आधुनिक मशीनों से
उतारी जा रही है
भेड़ की असहमति
ठुकराई जा रही है
ज़बरन छीना जा रहा है
सौम्य कोमल क़ुदरती कवच
बदल रहे हैं आजकल निसाब मौसमों के
सांस भी उलझ रहा, हिसाब मौसमों के,
ताल्लुक ग़र हमारा टूटे तो ये याद रखना-
गर्द-गर्द शहर की नुमाई हम ही,
जवाब मौसमों के।
साजिशों का बाजार है
सौदा करूं किसका
विधाता क्या
यही संसार है।।
कांटो पर चलना
आसान है दोस्तों यहां
फूलों से दर्द की
खुशबू आती
कल मस्त थे जिसके दल में
करने में गुणगान रे
पलभर में छोड़ चले सब
बेच दिया ईमान रे
आओ - आओ, देर न करना
दल ,बदल के काम में
आज बस
कल श्वेता जी
सादर
जबरदस्त अंक
जवाब देंहटाएंआभार
वंदन
सुंदर लिंकों का संकलन। मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए तहे दिल से आभार।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक। समस्त चयनित रचनाकारों को बधाई।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को इस अंक में स्थान देने हेतु सादर आभार।
झूठ छलकाती गागर ..ये लिंक नहीं खुल रही।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
हटाएंअब खुल रहा है देखिए
सादर