।।प्रातःवंदन।।
"सावन का हरित प्रभात रहा
अम्बर पर थी घनघोर घटा।
फहरा कर पंख थिरकते थे
मन हरती थी वन–मोर–छटा॥
पड़ रही फुही झीसी झिन–झिन
पर्वत की हरी वनाली पर।
'पी कहाँ' पपीहा बोल रहा
तरु–तरु की डाली–डाली पर॥"
श्याम नारायण पांडेय
बुधवारिय प्रस्तुतिकरण और चंद वैचारिक शब्लिशब्द कोश लिए हम..✍️
बड़े बेआबरू होकर ......!
बुक शेल्फ से किताबें उठा उठा कर जमीन पर पटकी जा रही थी। कबाड़ियों को क्या सब धान बाइस पसेरी लेना है। घर वाले भी इस रद्दी से मुक्ति पाएंगे और सेल्फ उनके शो पीस रखने के काम आएगी या फिर क्रॉकरी।..
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खजूर तले जा रहे हैं
खजूर एक फल होता है— यह सभी जानते हैं, लेकिन कुरकुरे, हल्के मीठे, तले हुए बिस्कुट-जैसे एक व्यंजन का नाम भी “खजूर” होता है— यह बहुतों को शायद नहीं पता होगा।
हम लोग जब छठी कक्षा में हाई स्कूल गये, तब हमने इसके..
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होती हूँ जब-जब निराशा के गर्त में
तुम आ कर सहला जाती हो
कौन आस-पास घूमा करता है
दुआएँ तुम्हारी मेरा माथा चूमा करती हैं
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छुने से अल्फाजों को मेरे पंख लग गये अर्ध चाँद नयनों को तेरे l
लहरें दीवानी कहानी रचने लगी घटाओं की जज्बाती तरंगों पे ll
साँझ गुलाबी रिमझिम सिंदूरी बारिश खत लिखे बादलों कागज ने l
काजल गलियाँ आईना वो रंजिशें रक्स साँझा हो गयी फिर चाँद से ll
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह ' तृप्ति '..✍️
बेहतरीन अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मुझे शामिल करने का बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी
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