शीर्षक पंक्ति:आदरणीय अशर्फ़ी लाल मिश्र जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के
साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
सौ सुत से उत्तम एक , जो होवे वागीश।
जिमि इक चंदा तिमिर हर, कहलाये रजनीश।।2।।
रात के आँसू वही थे
लोक में जो ओस फैली
चाँद की भी देह सीली
व्योम की भी पाग मैली
ये हवाएँ क्यूँ सिसकती
थरथरा कर के चली जो।।
तुममें ऐसे भी मौसम हैं,
जो न मैंने देखे हैं,
न सुने हैं.
इतने सारे मौसम
तुम लाती कहाँ से हो?
जो मैं सोचूँ क्या तुम राधे,
वही सोच रही हो।
मन मंथन कर जग-जीवन से,
अमृत खोज रही हो।
रीते-रीते हिय घट सारे,
दिखे न प्रेम प्रतीति।
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुतै सुन्दर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
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जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति व लिंक, मुझे शामिल करने हेतु,असंख्य आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति. मुझे शामिल करने हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएं🙏🙏
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंgreetings from malaysia
let's be friend