डॉ राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे और उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था। विकिपीडिया
जन्म की तारीख : 3 दिसंबर 1884, जीरादेई
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
इससे तनाव व दबाव की वे परतें खुलने लगते हैं , जो बोझ बढ़ा रहीं थी,किन चीजों से खुशी मिल सकती है इसके बजाय व्यक्ति यह सोचने लगता है कि - किन वस्तुओं के बिना खुश रहा जा सकता है इच्छाओं के समुद्र में फसने के बजाए,जीवन भर संसाधन जुटाते रहने के अलावा विना कोई संघर्ष के एक छोटा सा प्रयास यदि वह कर लेता है कि वह अपनी सोच ही बदल दे।
बौद्ध धर्म से सम्बंधित जो शोधकार्य वह कर रहा है,वह भी अर्थपूर्ण नहीं लगता और न साकार रूप ले पाता है|वह दुनियादारी के लिहाज से अनुपयोगी है |उसके न रहने से किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता|कहानीकार भीष्म साहनी उस अनुपयोगी-से वांगचू को ऐसे रचते हैं जैसे वे उसे जी रहे हैं| रचते हुए कोई भावुकता ,रोमानीपन नहीं|कहानीकार निर्वैयक्तिक ढंग से वांगचू को इस रूप में हमारे सामने लाता है कि वह चुपचाप हमारे संवेदना का हिस्सा हो जाता है|
शुक्ल जी इतने अंतर्मुखी व्यक्तित्व के हैं कि किसी से जल्दी खुलते नही,बात करने में झिझकते हैं,अपने मे ही खोए हुए से रहने वाले। शायद कम बोलने और अपने में खोए हुए रहने का ही असर है कि वह ऐसी उत्कृष्ट रचनाएं लिख पाते हैं। वो नही बोलते, उनकी रचनाएं बोलती हैं। अब बात करें समीक्षक राजेंद्र मिश्र की किताब "गांधी अंग्रेजी भूल गया है" की,यह किताब दरसल पिछले कुछ बरसों में जनसत्ता और लोकमत समाचार अखबारों में छपे राजेंद्र मिश्र के कॉलम को संग्रह कर किताब के रूप में प्रकाशित है।
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में व्यावहारिक कला के शिक्षक होने के बावजूद वे चित्रकला के एक प्रयोगधर्मी कलाकार हैं। उन्होंने प्रचुर चित्रों का निर्माण किया एवं कर रहे हैं तथा कई सुन्दर मूर्तिशिल्प उकेरे हैं। श्वेत श्याम रेखांकन-चित्रों के लिए उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त हुई। श्वेत श्याम छवियों में उन्होंने पैन एवं इंक की सहायता से विभिन्न प्राकृतिक दृश्य एवं अन्य संयोजन निर्मित किए है जो अपने त्रिआयामी प्रभाव और रूपाकारों की विशेषता के कारण ध्यान आकृष्ट करते हैं। प्राकृतिक रूपाकारों से भी उन्होंने विभिन्न आकल्पन (डिजाइन) निर्मित किए जिनके संयोजन विशेष रूप से प्रभावी रहे।
उसके मन में जो भाव आप ही आप पैदा होता हैं उन्हें जब वह निडर होकर अपनी कविता में प्रकट करता है तभी उसका असर लोगों पर पूरा-पूरा पड़ता है। बनावट से कविता बिगड़ जाती है। किसी राजा या किसी व्यक्ति विशेष के गुण-दोषोको देख कर कवि के मन में जो भाव उद्भूत हों उन्हे यदि वह बेरोक-टोक प्रकट कर दे तो उसकी कविता हृदयद्रावक हुए बिना ना रहे, परन्तु परतन्त्रता या पुरस्कार प्राप्ती या और किसी कारण से, यदि उसे अपने मन की बात कहने का साहस नहीं होता तो, कविता का रस जरूर कम हो जाता है। इस दशा से अच्छे कवियों की भीरविता नीरस, अतएव प्रभावहीन हो जाती है।
दिसंबर की ठण्ड जानलेवा होती है
जवाब देंहटाएंशायद चही सोच कर मेरे मोबाईल का कीबोर्ड
सिकुड़ गया है
इसीलिए आज डेस्कटॉप पर आ गई हूँ
एक जागरूक प्रस्तुति
आभार
सादर नमन
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादगी पर सादगी भरे व्यक्तित्वों के साथ कवि होने की खूबियों को दर्शाता बहुत प्यारा सा अंक प्रिय दीदी।एक आध ब्लॉग बहुत पुराना है तो कहीं फॉलो का विकल्प नहीं है।शायद इसी वजह से पाठकों की दृष्टि से दूर हैं ये ब्लॉग।सादगी महापुरुषों का शृंगार और अहम नैतिक गुण रहा है।ज्यादा विकल्प ना होना जीवन का सबसे बड़ा सुकून है।पर प्रगति की चकाचौंध में सादा जीवन उच्च विचार का संस्कार कहीं विलुप्त सी होती जा रही है।एक लाजवाब अंक के लिए बधाई और शुभकामनाएं प्रिय दीदी।अस्वस्थता के दौरान मंच और पाठकों के प्रति आपकी प्रतिबद्धता को नमन है 🙏🙏
जवाब देंहटाएंआदरणीया विभा दी, आपका रचनाओं का चुनाव और आपकी पसंद मुझे आश्चर्यचकित कर जाते हैं। अंतिम लिंक तो बेहद उपयोगी, संग्रहणीय लेख। सादर।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद, आपने हमारे लिंक को सराहा...
हटाएंआपने हमारे प्रयास को अपने ब्लॉग पर उधृत किया....साधुवाद
जवाब देंहटाएंcdtripathi.blogspot.com छात्रहित के लिए किया गया एक छोटा सा प्रयास है ।