इस वर्ष के अंतिम
शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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मेरे आँगन के पीले,सफेद,बैंगनी, कत्थई, नारंगी
गुलाबी नाजुक नरम फूलों की तरफ से,
फूलों की हरी-हरी,बिना फूलों वाली
गहरी हरी पत्तियों की तरफ़ से,
पत्तियों की झँवई परछाईंयों की तरफ से,
भोर में आते कबूतरों के बड़े से झुंड की तरफ से
काली मैना,भूरी गौरेया,नन्हीं बुलबुल
मुझसे मेरा हाल पूछने आती
अनाम पीली चिड़ियों और कौओं की तरफ से,
मेरी बालकनी से दिखने वाले पीपल,बड़ की तरफ़ से
जीवन की रोशनी भरते सूरज की तरफ से
थके तन को थपकियाँ देकर सुलाते चाँद की तरफ से
कभी दिखते,कभी नहीं दिखते,
कभी देखकर मुस्कुराते ,कभी बिना देखे
यूँ ही क़तरा के जाने वाले पड़ोसियों की तरफ से...
सड़क पर गुज़रने वाले अनाम मुसाफिरों की तरह
अनदेखे पलों की यात्रा के लिए
आपको और मुझे भी जाने वाले साल की तरफ से
आने वाले नये साल की खुशियों की उम्मीद भरी झोली भरके शुभकामनाएँ ...।
तो आइये चलते हैं आज की रचनाओं की दुनिया में
उम्मीद की बीज मुट्ठियों में भींच लो, आओ इस अंधेरी रात की कोख को सींच दो,भोर की माथे से फूटेंगी नयी राहें,बस कुछ पल के लिए आँखें मींच लो...।
जाते हुए साल की दुआओं का असर हो जाए
आने वाला साल हँसी-खुशी के काँधे पर बसर हो जाए
सारे कर्तव्य हमारे लिए ,
कुछ तुम भी तो निभाओ ।
सदा अपनी ही नहीं ,
औरों की भी सुनते जाओ।
कुछ शब्दों का स्पंदन मन को छूकर गीला कर जाता है क्योंकि ये शब्द भावनाओं की नोंक से लिखे जाते हैं..
यादों की छाँव में बैठे अक़सर सीते हैं कुछ टीसते घाव,
हँसाते कभी रूलाते हैं, नहीं भुलाये जाते क्यों दर्द के पाँव..।
वर्षभर रहता यहाँ है,
अब तो मौसम पतझड़ों का।
रह गए हैं ठूँठ सारे
ले गया सब छाँव कोई !
उदास मन में
कुछ नहीं बदलता अन्तर्मन में
अनवरत विचार मग्न मन
अपना सुख जिसमें पाता
चाहो न चाहो बस वही सोचता है
कहाँ मानता है मन का पंछी
उद्वेलित,बेचैन मन बहुत उदास होकर
कहता है कभी-कभी...।
व्यथित मन
आज भी चाह रहा है
छांव तुम्हारी
यादों के सागर में
बिन पतवार चल रही है
नाव तुम्हारी
मनुष्य की सोच और व्यवहार परिस्थितियों के
अनुरूप अपनी दिशा निर्धारित करते हैं।
देश,समाज,मानव के अनेक विषयों को छूता एक
बेहतरीन लेख।
फिर मुझे तो कुछ करना ही था आखिर जबाबदेही तो मेरी ही थी , वह भी खुद अपनेआप से । तो कुछ सोच विचार कर मैंने इसकी जगह बदल दी । अब मैंने इसके गमले को उस स्टैंड से हटाकर अलग-थलग कुछ दूर अकेला रख दिया , कि जा ! जाकर अकेले पड़ा रह। बड़ा आया दूसरों के घर घुसपैठ कर दूसरों का हिस्सा हड़पने वाला। बड़ा भटकने का शौक है न तेरी टहनियों को , तो जा अकेले इस बीरानी में भटक कर दिखा ।
और चलते-चलते पढ़िए आज के इस दौर में जब खून के रिश्ते भी शर्मसार करने वाले व्यवहार करते हैं वहाँ ऐसी घटनाएँ इंसानियत और अच्छाई आज भी जीवित है यह एहसास दिलाते है। सकारात्मकता से भरपूर एक सुंदर संदेशात्मक संस्मरण-
दवाई की दूकान आगे है, इतना कह कर वह अपना पल्लू झाड़ सकता था ! क्या था जो अनजाने लोगों के लिए कोई अपना समय दे रहा था ! क्या था जो बिना किसी अपेक्षा के कोई अनजान लोगों की जरुरत पूरी करने पर उतारू था ! क्या था जो कोई दूसरे की तकलीफ को अपनी समझ उसको दूर करने की सोच रहा था ! यही इंसानियत है ! यही मानवता है ! यही हमारी संस्कृति है ! यही हमारे संस्कार हैं ! यही वह सोच है कि सारी वसुंधरा ही हमारा परिवार है !
आज के लिए इतना ही कल का विशेष अंक लेकर आ रही है प्रिय विभा दी।
कितना सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंअभी तो सिर्फ बापू के दर्शनलाभ प्राप्त हुए हैं,दिन पूरा बाकी है
आभार सखी
सादर
कितना सुंदर सुंदर बातें बता देती है छुटकी
जवाब देंहटाएंपूरे साल मुस्कुराती खिलखिलाती रहो
2023 हेतु शुभकामनाएँ
उम्दा प्रस्तुति
प्रकृति के सान्निध्य में उपजे शुभेच्छा सम्पन्न हृदयोद्गारों से सुसज्जित भूमिका ने मन मोह लिया श्वेता जी ! सभी सूत्र लाजवाब एवं बेहतरीन ।नववर्ष की असीम शुभकामनाओं सहित हृदयतल से बहुत बहुत आभार ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआपको और
जवाब देंहटाएंमुझे भी
जाने वाले साल की तरफ से और
आने वाले नये साल की खुशियों की
उम्मीद भरी झोली भरके शुभकामनाएँ ...।
सादर
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंनये साल की खुशियों की उम्मीद भरी झोली भरके शुभकामनाएँ ...इतने प्यारे करीबियों की झोली भर शुभकामनाओं पाकर मन बाग-बाग हो गया । खुशियों भरी भूमिका के साथ सारगर्भित समीक्षा ने प्रत्येक लिंक को और भी आकर्षक और पठनीय बना दिया । सम्पूर्ण प्रस्तुति बहुत ही लाजवाब । मेरी रचना की भी यहाँ स्थान देने हेतु दिल से धन्यवाद एवं आभार आपका एवं सभी को नववर्ष की अनंत शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता, साल के अन्तिम शुक्रवार की इस अनमोल प्रस्तुति बहुत नायाब है।एक कवि दृष्टि साधारण दृश्य को भी असाधारण करने में सक्षम है।बहुत ही जीवन्त और मोहक शब्द चित्र प्रस्तुत किया है भूमिका में।इतने मुखर और मौन तत्वों की तरफ से इतनी शुभकामनाएं कोई छोटी बात है क्या??
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचनाओं का अभिनव संग्रह, जिन पर यहाँ होने के कारण पहुँचना बहुत आसान हो जाता है ,के लिए हार्दिक आभार।समस्त ब्लॉग परिवार को नववर्ष की बधाई और शुभकामनाएं प्रिय।सभी स्वस्थ रहें और प्रसन्न रहें साथ में साहित्यिक रचनाधर्मिता का भी सहजता और सजगता से निर्वहन करते रहें यही कामना है।तुम भी अपनी नयी रचनाओं की पोटली नववर्ष में खोलो यही कामना है।आज के सम्मिलित सभी रचनाकारों को सादर नमन ♥️
बहुत सारा प्यार, स्नेह और आभार प्रिय श्वेता। अभी मोबाइल व स्क्रीन पर पढ़ना नहीं हो पा रहा है। फिर भी, एक रचना ब्लॉग पर डाली, उसे आपने पसंद किया, लिंकों में भी चुना, बहुत बहुत शुक्रिया तहेदिल से।
जवाब देंहटाएंअंक की भूमिका मनमोहक है, सजीव, सचित्र !
जवाब देंहटाएंअनमोल पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंवर्षभर रहता यहाँ है,
अब तो मौसम पतझड़ों का।
रह गए हैं ठूँठ सारे
ले गया सब छाँव कोई !👌👌👌♥️♥️
विविध रंगों से सराबोर भूमिका सहित, बहुत ही सुंदर सार्थक अंक । मेरी तरफ से भी आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई प्रिय श्वेता जी ।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता ,
जवाब देंहटाएंप्रकृति के हर रूप से भेजी तुम्हारी शुभकामनाएँ सहेजने के लिए बड़ा सा झोला तैयार का रही थी । इस तरह कभी शुभकामनाएँ मिली नहीं न , इसलिए ।
तुमने ही तो बताया आवश्यता आविष्कार की जननी है तो मैंने भी झोला रूपी दिल को तैयार किया , और अब व्याकुल आँखें इंतज़ार में हैं नए वर्ष के स्वागत में ।पीछे मुड़ कर देखें तो याद आता है कि न जाने कितने अनजान सहायक मिल जाते हैं जीवन में । जिनको हम कभी भूल नहीं पाते ।
हमेशा की तरह विशेष भूमिका के साथ हर रचना पर मंत्रमुग्ध करती प्रतिक्रिया इस प्रस्तुति को खास बना रही है ।
इस मंच के माध्यम से तुमको और सभी पाठकों को नव वर्ष की शुभकामनाएँ।