नमस्कार ! देखते देखते ये साल भी बीतने जा रहा है ......... और अब सब नए वर्ष की प्रतीक्षा में कुछ नए संकल्प ले कर प्रारम्भ करेंगे नया वर्ष ........ कौन अपने संकल्पों पर खरा उतरेगा ये भी वक़्त ही बताएगा ...... लेकिन कुछ बातें साल दर साल नहीं बदलतीं ....... इसी से सम्बंधित पढ़ लीजिये ये रचना .....
साधन बने मदारी
सोच मशीनी बनती सबकी
भावों का है सूखा
लिप्साएँ हों मन पर हावी
कैसा बनता भूखा
बंदर जैसे मानव नाचे
साधन बने मदारी।
कितनी सरलता से यह बात समझा दी गयी है कि आज मानव साधन रुपी मदारी की उँगलियों पर नाचता है ....... यदि अभी भी समझ नहीं आया तो चलिए एक और पोस्ट पढवाते हैं कि आज के युग में लोग जितना अधिक कमा रहे हैं उतना ही अपने बच्चों के प्रति विमुख होते जा रहे हैं .....
मॉर्निंग वॉक – बाल हठ
हाँ तो आधुनिक बच्चे, चूँकि अधिक एक्स्पोसेड़ हैं, उनमें जागरूकता या कहें
अंतर्जाल पर उपलब्ध ज्ञान भी अधिक है। जो बड़ों की निगरानी के अभाव में
उन्हें अनचाहे रास्तों पर धकेल सकते हैं। कच्ची उम्र में जब उन्हें मार्गदर्शन
की ज़रूरत होती है, तब उन्हें नौकरों और आयाओं के सुपुर्द कर दिया जाता है।
इस पोस्ट का शीर्षक मॉर्निंग वॉक क्यों रखा है ? मैंने पूछा है सरस जी से ...... जवाब मिलते ही बताउँगी . ......मुख्य मुद्दा शीर्षक नहीं है ...... बात है कि हम बच्चों के प्रति कितने जागरूक हैं ....... अब जागरूक होने की बात करें तो ऐसा नहीं है की लोगों को अच्छे बुरे का ज्ञान नहीं होता ...... सब होता है लेकिन कब किस संगत में पड़ कर बुरी आदतों का शिकार हो जाते हैं और अपना ही नुकसान करते रहते हैं ...... लेकिन जानते हुए भी उनको छोड़ नहीं पाते . बात केवल बुरी आदतों की नहीं है , बात व्यवहार की भी है ...... ज़िन्दगी की तल्खियाँ मन पर किस कदर हावी हो जाती हैं उनको महसूस कीजिये इस कहानी में .....
मन के घेरे ( कहानी )
'ओहो! कितना प्यार करती हो न तुम उनसे..! ' न जाने मन के किस कोने से एक तंज भरी आवाज आई थी।
साथ रहते-रहते तो सभी को प्यार हो जाता है...क्या हुआ जो उनके बीच का प्रेम चुक गया। न, चुका नहीं था, सच तो यह है कि प्यार जैसा लगा था, पर प्यार था ही नहीं... प्यार न हो, न सही, मगर एक बंधन तो है, जिसमें बंधे है दोनों। वैसे भी कितने शादीशुदा जोड़े हैं, जिनके बीच प्यार नदी सा बहता और सागर सा उफनता है! मगर रहते हैं न साथ... और इस रिक्तता की भरपाई के लिए ही तो सब बच्चे पैदा करते हैं। सहसा उसे अपने बेटे अंशु की याद हो आई।
अंशु का चेहरा आंखों में कौंधते ही भय की एक तेज सी लहर कृतिका की रीढ़ में दौड़ गई।
उम्मीद है कि मन के घेरे से निकल एक लम्बी साँस तो ज़रूर ली होगी ....... अब इस गंभीर कथानक के बाद लग रहा है कि कुछ मन को प्रफ्फुलित करने के लिए हल्का - फुल्का विषय लाया जाय ........... हँसी ख़ुशी का माहौल रहे ...... तो चलिए ले आई हूँ एक बतकही ...... मजेदार कहानी ......
मिर्ज़ा चाचा की सवारियां
इस किस्से को पढ़ते हुए मैं सोच रही थी कि लेखक की कल्पनाशीलता भी कितनी कमाल की है ....किस तरह बात से बात निकालते हुए कहानी बुन डाली है ....... चलिए कल्पना को छोड़ अभी यथार्थ की बात करें ........उम्र दर उम्र बीतते हुए कितनी स्मृतियाँ संजो ली जाती हैं और उनको एक धरोहर की तरह ही सहेज ली जाती हैं ..... पढ़िए इस रचना में ...
बटुआ
एहसास भर से स्मृतियाँ
बोल पड़ती हैं कहतीं हैं-
तुम सँभालकर रखना इसे
अकाल के उन दिनों में भी
खनक थी इसमें!
क़र्ज़ - -
मंज़िल नहीं आएगी कभी ग़र अपने ही में ठहर गए,
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंसिलसिलेवार सब पढ़ी
और साढ़ेचार बजे से पढ़ ही रही हूँ
अब छः अट्ठाईस हो गए
इच्छा तो नही कि पढ़ना छोड़ दूँ
आभार
सादर
आभार , यशोदा ।।
हटाएंशुभ प्रभात आदरणीया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अंक, आपकी प्रस्तुति हमेशा ही बेजोड़ होती है।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार सादर
सराहना हेतु आभार अभिलाषा ।।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ।।
हटाएंसरस जी ने बताया कि मॉर्निंग वॉक शीर्षक नहीं है ये एक श्रृंखला है । शीर्षक तो बाल हाथ है । मॉर्निंग वॉक करते हुए जो विचार आते हैं उनको सरस जी इस श्रृंखला में शामिल करती हैं । सरस जी आभार , मेरी जिज्ञासा को शांत करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंबाल हठ **
हटाएंरोचक एवम पठनीय सूत्रों से सजी सुंदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जिज्ञासा ।
हटाएंआपने मुझे पुकारा संगीता जी, अच्छा लगा, पिछले दिनों दो यात्राओं का अवसर प्राप्त हुआ, जहाँ विवाह समारोहों में सम्मिलित होना था, और एक बार फिर असम जाने का अवसर मिला, जहाँ हम तीन दशकों से अधिक रह चुके हैं। आपकी पारखी नज़र के साथ आज का अंक बहुत शानदार है, आभार !
जवाब देंहटाएंअनिता जी ,
हटाएंआप यात्राओं का आनंद उठा रहीं थी , अच्छा लगा जान कर । अंक की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।।
एक से बढ़कर एक रचनाओं को संजो लाई है आप। अभी सब पर जाना तो नहीं हुआ मगर जाऊंगी जरुर क्योंकि आप की व्याख्यात्मक टिप्पणी ने उत्सुकता बढ़ा दी है।आपके श्रम को सादर नमन दी 🙏
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार । पढ़ना सब ही अच्छी रचनाएँ हैं ।
हटाएंआज की विशेष एवं उत्कृष्ट प्रस्तुति में मेरी रचना 'आजकल' को शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीया दीदी। आपके द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले अंक का निस्संदेह पाठक बेसब्री से इंतज़ार करते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रविन्द्र भाई ।
हटाएंप्रिय दी,
जवाब देंहटाएंये जो ब्लॉग सागर में घंटों घूम-घूमकर,इतनी मेहनत से अपना कीमती समय लगाकर
चुन-चुनकर पन्ना,मूँगा औ सच्ची मोती का खज़ाना इकट्ठा करके और स्नेहिल धागों में गूँथकर जो सुंदर माला पिरोई है सचमुच अनूठी छटा बिखर रही है।
बेहतरीन अंक दी
सारी रचनाएँ पढ़े पर प्रतिक्रिया नहीं लिख पायें हैं कोशिश करेंगे कल लिख आयें।
रचनाओं के लिए क्या कहें दी
आजकल
साधन बने मदारी
मार्निंग वॉक का बाल हठ
बटुआ ख़ाली
कर्ज़ लें, बँटवारा करें,
करें मिर्ज़ा चाचा की सवारियाँ...।
तुम्हारा मौन
मन को घेरे
देखो उसने पुनः पुकारा
इस भ्रम से हमें निकलना होगा ...।
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अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में-
सप्रेम प्रणाम दी।
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंव्यस्तता के बीच भी समय निकाल कर सारे लिंक्स पढ़े यही प्रस्तुति की सार्थकता है ।
आभार । प्रोत्साहित करने के लिए ।
प्रिय दीदी, समग्रता से संजोये आपके श्रम साध्य अंक से पठन-पाठन का अनूठा आनन्द मिला।रश्मि जी की कथा झझकोर गयी।लम्बी टिप्पणी भी लिखी पर प्रकाशित होने से पहले ही मिट चली।पर जो भी हो कहानी का मार्मिक चित्रण बहुधा कृतिका सरीखा जीवन जी रही है अनगिन बहुओं की कहानी कहता है।शेष सभी रचनाओं को पढ़ कर अच्छा लगा।गद्य रचनाओं के माध्यम से कहानियों और लेख के सुन्दर शिल्प सामने आये।मेरी पुरानी पोस्ट को यहाँ सम्मिलित करने के लिए आभारी हूँ।मौन मेरा भी प्रिय विषय है।मौन चिंतन की ऊर्जा को बढ़ाता है तो सृजन की उर्वर भूमि भी है।मौन स्वयं से साक्षात्कार कराता है।बीत रहे साल में कैलेंडर बदलने के अलावा कुछ बदलने वाला नहीं है।पर फिर भी एक काल खण्ड का विदा होना कहीं न कहीं भीतर कसक जगाता ही है।एक प्रेरक और शानदार प्रस्तुति के लिए आभार प्रणाम प्रिय दीदी।आपकी प्रस्तुति में ब्लॉग के प्रति आत्मीयता देखते ही बनती है।🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु ,
जवाब देंहटाएंब्लॉग्स के प्रति मेरी आत्मीयता को तुमने महसूस किया , मन तृप्त हुआ ।
गद्य रचनाएँ थोड़ा ज्यादा समय माँगती हैं , लेकिन उन पर विमर्श होना चाहिए । इसी लिए लंबी कहानियाँ होने के वावजूद कभी कभी उनको शामिल करती हूँ ।
इस प्रस्तुति पर इतना समय देने के लिए आभार ।
उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।कल तो लिंक पढ़ते पढ़ते मौन परजाकर मौन हो गयी आज देखा तो अत्यधिक मौन भी उचित नहीं कहा गया है आगे बढ़े तो अब जाकर मंजिल मिली ।क्या करें लिंक से जुड़ी आपकी समीक्षाएं इतनी कमाल होती हैं कि दो तीन बार तो उन्हें ही पढ़कर मन नहीं अघाता ।
जवाब देंहटाएंकमाल की प्रस्तुति हेतु साधुवाद🙏🙏🙏
प्रिय सुधा ,
हटाएंहृदयतल से आभार ।
इतना मन लगा कर पद्धति हो कि मन तृप्त हो जाता है । 😍😍 बहुत स्नेह ।
पढ़ती**
हटाएंबढ़िया लिंक्स चुने हैं ....
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार मोनिका ।
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