नमस्कार !
आज कल चुनाव का मौसम ऐसा रहता है कि हमेशा यही लगता है कि कहीं न कहीं हम किसी को चुन ही रहे हैं ......एक राज्य की चुनाव प्रक्रिया ख़त्म नहीं होती दूसरे राज्य की तैयारी शुरू ....... और नेता लोग आपस में एक दूसरे को किस दृष्टि से देखते हैं ये तो आपको इस लेख को पढ़ने पर पता चलेगा ....
एक हमारे कुत्ते हैं, जिस पर भौंकना चाहिये, उस पर भौंकते नहीं मगर कोई गरीब भिखारी दिखा तो गली के कोने तक भौंकते हुए खदेड़ देंगे. जो दो रोटी डाल दें, उसके घर के सामने पूरी सेवा भाव से डटे रहेंगे और उसके मन की कुंठा के पर्यायवाची बने हर गुजरती कार पर भौंक भौंक कर झपटते रहेंगे. अक्सर तो उस घर पर आने वाले परिचतों पर ही झपट पड़ेगे.
हम किसी को कुछ नहीं कह रहे ...... सोचने का क्या है ? इंसान कुछ भी सोच सकता है ...... लेकिन लेखकों की कल्पना शक्ति किस गति से चलती है ..... इसका जायजा लीजिये इस लेख में ....
यह अत्यंत सुखद क्षण था जब मेरी कल्पना(चावला) की आत्मा सजीव हो उठी और मैंनें अपने सहयात्री के साथ यान मे प्रवेश किया. पलायन वेग के साथ यान को वैज्ञानिकों ने उपर फेंका. पृथ्वी के वायुमंडल को चीरते हुए यान अंतरिक्ष मे कुदने को तत्पर हुआ और मैं धरती माता के मोह के गुरुत्व-बंधन से अपने को मुक्त करता हुआ मातुल लोक की ओर लपका |
इस लेख की सार्थकता यही है कि पढ़ते हुए लगा कि लेखक के कदम चन्दा मामा पर पड़ ही गए हों ......... आपको भी यही लगा न कि लेखक महोदय चन्द्र यात्रा से लौटे हैं ? लेखन वो कला है जो असंभव को भी संभव बनाने की सामर्थ्य रखती है ........ हर एक के जीवन में संघर्ष है ...... पल पल हम अपने आप से भी युद्ध करते चलते हैं ..... और एक ऐसी ही बानगी इस रचना में ......
निःसंदेह,
धरती तब भी खून से लाल होती है
लेकिन अभिमन्यु युगों की प्रेरणा बनता है
न मुक्त होता है,
न होने देता है !
तो अपनी जीजिविषा का हुंकार करो
शंखनाद करो .
और जिजीविषा के लिए शंख नाद की बात कर रहीं हैं ये कवयित्री और हमारे स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक ब्लॉगर हैं वो सीधे बात न कर व्यंग्यात्मक तरीके से कुछ कहना चाह रहे हैं ....
घर में पूरे दिन बैठे रहकर टीवी देखते समय मेरी स्पोर्ट्स वाच रिमाइंडर देती रहती है कि अब कम से कम खड़े ही हो जाओ भैया ? इसे फेंक ही दूँगा किसी दिन गुस्से में !
अब आप गुस्सा छोड़िये...... मन को शांत कीजिये और इम्युनिटी बढ़ाइए ...... चलिए कुछ मीठा हो जाये ....... सर्दी का मौसम और हलवे की बात ....... यूँ ही आनंद आ जायेगा ....
मुझे तो यह रेसिपी बहुत पसंद आई ...... एक बार कोशिश तो ज़रूर करुँगी 😅
सर्दी भगाने का उपाय भी हो गया और मन भी मीठा हो गया ....... दिसंबर माह और दिसम्बर को याद न किया जाय , ये तो हो नहीं सकता ....... दिसंबर में क्या क्या याद आ जाता है इस पर एक नज़र ....
ओ दिसंबर !
जब से तुम आये हो
उम्मीदों की ठंडी बोरसी
अंधियारे में
सुलग रही है |
यहाँ तो दिसंबर का यथार्थ चित्रण हो रहा है और हमारे ब्लॉगर साथी कल्पना की उड़ान में न जाने कहाँ कहाँ विचरण करते हैं ......... मन को मोह लेने वाला वर्णन आप भी पढ़ें ...
रूप पुष्पित पुष्प ज्यों
भृंग लट उड़ते मधुप
माधुरी लावण्य है
चाल चलती है अनुप
देख परियाँ भी लजाए
स्वर्ण काया सोहिनी।
पढ़ते हुए जैसे सारा सौन्दर्य आँखों के सामने आ गया हो ....... वैसे सौन्दर्य की व्याख्या भी सब अलग अलग अंदाज़ में करते हैं ........ किसी को कुछ पसंद आता है तो किसी अन्य को कुछ और .....
एक पुरानी विल्स की सिगरेट जैसी है.
ख़ाकी फ्रौक में लड़की सचमुच ऐसी है.
हंसी-ठिठोली, कूद-फाँद, ये मस्त-नज़र,
अस्त-व्यस्त सी लड़की देखो कैसी है.
वाह .... गज़ब ही कल्पना है ......... लड़की को सिगरेट जैसा ही बता दिया ........ वैसे सोच तो मस्त है ....... लेकिन बहुत से लोग शायद डर्टी डर्टी कह देंगे ......याद आया विद्या बालन की मूवी आई थी डर्टी ......... बहुत चला था तब ..... ऊ ला ला ....... आपको भी पढ़वाते हैं ऐसा ही कुछ ......
अब इस बुम्बाट रचना के बाद समझ नहीं आ रहा कि क्या लिखूँ ? ....... बस आप लोग कुछ गलत मत समझ लीजियेगा ....... क्यों की बहुत बार आपको खुश करने के लिए लोग आपसे बात छुपाते हैं उनका इरादा झूठ बोलने का होता नहीं है ...... इसी बात को एक लघु कथा में पढ़िए ....
"अरे मम्मी रुको ! ऐसा मत सोचो (कहकर निधि हाथ जोड़कर बोली "सॉरी पापाजी ! आज आपसे किया प्रॉमिस तोड़ रही हूँ,बहुत बहुत सॉरी ! पर आज ये प्रॉमिस नहीं तोड़ा न, तो यहाँ सास-बहू के रिश्ते में मनमुटाव बढ़ता ही जायेगा , मुझे माफ करना पापाजी" ! ) फिर बोली "मम्मी ! ना तो दुकानदार ने उन्हें ठगा है और ना ही भाभी झूठ बोल रही, झूठ तो आपसे पापाजी कहा करते थे" ।
अच्छा हुआ जो ग़लतफ़हमी जल्दी ही दूर हो गयी और रिश्तों की गरिमा बची रह गयी ....... यूँ तो बचाने को हमें बहुत कुछ बचाना चाहिए ........ लेकिन कहाँ कर पाते हैं ....... गाँव ख़त्म होते जा रहे हैं और शहर के ड्राइंग रूम में हम गाँव बसाने का प्रयत्न करते हैं ......
एक तलैया चर-चर नाव
कब्जा किया जमाया पाँव ।
जलकुंभी के फूल सजे हैं
फूलदान में सजते गाँव ॥
बगुला-बतखें दूर उड़ गए
झटका देकर तगड़ा ॥
अंत में ईश्वर को याद करते हुए आज की इस हलचल को विराम देती हूँ ----
तीनों लोक हुए बलिहारी,
देख छवि वो न्यारी।
ध्यान लगा के ऐसे बैठे,
सुध न रही हमारी।
पत्ता-पत्ता देख रहा है,
लीला राधा-श्याम।
एक सप्ताह बाद फिर मुलाकात होगी ........
नमस्कार
संगीता स्वरुप .
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंकुछ देखा है.....बाकी
कुछ और देखने की तमन्ना है
सादर नमन
प्रिय यशोदा ,
हटाएंआभार , तमन्ना शायद पूरी हुई हो ।
आपके प्रस्तुत करने का ढंग, आपकी पारखी नज़र... दिन बन जाता है
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार । आप प्रतिक्रिया स्वरूप मेरा दिन बना देती हैं ।
हटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स ...फुल ऑफ वैराइटी :)
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मोनिका । आपके ब्लॉग से भी कुछ लेना चाहती हूँ ,लेकिन बीते समय तक पहुँच नहीं पा रही ।
हटाएंबेहतरीन लिंक्स दिए हैं आपने, पढ़ रहा हूँ अभी, आभार रचना पसंद करने के लिए
जवाब देंहटाएंसतीश जी ,
हटाएंआपसे बहुत लोग प्रेरित हो रहे हैं , गुज़ारिश है ब्लॉग की तरफ आने के लिए भी प्रेरित करें । आभार ।
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ।
हटाएंबहुत रोचक लिंकों की माला
जवाब देंहटाएंहम तो पिरो देते हैं , बाकी गृहण करना पाठकों के मन के ऊपर है । तहेदिल से शुक्रिया ।
हटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार अभिलाषा जी ।
हटाएंबहुत रोचक प्रस्तुति … एक कहानी की तरह आगे बढ़ती हुई … अच्छे लिंक्स …
जवाब देंहटाएंसराहना हेतु हार्दिक आभार नासवा जी ।
हटाएंLinks के माध्यम से रचनाओं को प्रस्तुत करने का तरीका बेहतरीन है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ।
हटाएंतीनों लोक हुए बलिहारी,
जवाब देंहटाएंदेख ऐसी ये प्रस्तुति न्यारी।...
सराहना से परे प्रस्तुति अपने अनूठे और बिंदास अंदाज में। आभार और हार्दिक बधाई🌹🌹🌹
विश्वमोहन जी ,
हटाएंसराहना का अनूठा अंदाज़ । हार्दिक आभार ।
प्रिय दी,
जवाब देंहटाएंआपका अनूठा अंदाज़ खींच कर ले ही आती है,
व्यस्त शिड्यूल से कुछ पल चुराने को मजबूर करती है।
सभी रचनाएँ बेहतरीन चुनकर लायी हैं आप और रचनाओं के साथ आपकी विशेष प्रतिक्रिया
मन जोड़ती है।
रचनाओं को पढ़कर-
मोहिनी
ऐसा भी कोई कुत्ता होता है?
चंदा मामा के साथ चार दिन बिताने के बाद
समझ आय
स्वयं को आरंभ बना लो...।
इस दिसंबर
इम्यूनिटी बूस्टर है बादाम और
खसखस का हलवा...।
ऊ ला ला
गलतफ़हमी नहीं है
फूलदान में सजते गाँव...।
रोबो चेयर पर पसरकर
विल्स के धुएँ में खोकर
देखूँ आठों याम...।
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अगले अंक की प्रतीक्षा में
सप्रेम प्रणाम दी
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंप्रस्तुति से ज्यादा अनूठा अंदाज़ तो तुम्हारी प्रतिक्रिया का है , लेकिन विल्स के धुएँ में खो कर आठों याम न देखना , राधेश्याम नाराज़ हो जाएँगे ।
सराहना के लिए तहे दिल से शुक्रिया ।
संगिता दी, आपका लिंको का प्रस्तुतिकरण वाकई लाजवाब है। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति ,
हटाएंसराहना हेतु हार्दिक आभार ।
एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट लिंक कुछ नयी कुछ पुरानी रचनाओं का अनूठा समन्वय साथ ही प्रत्येक रचना में तारतम्य स्थापित करती आपकी अनमोल समीक्षा निःशब्द कर देती है हमें....साधुवाद एवं नमन आपको।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को प्रस्तुति में स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
प्रिय सुधा ,
जवाब देंहटाएंबस ब्लॉग्स से आप सबका भी तारतम्य बना रहे । सराहना हेतु आभार ।
उत्कृष्ट सूत्रों से सजी रोचक प्रस्तुति । आपकी विश्लेषण शैली मन्त्रमुग्ध करती है ।
जवाब देंहटाएंसराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद मीना ।।
हटाएं
जवाब देंहटाएंऐसा भी कोई कुत्ता होता है ??
चँदा मामा के साथ चार दिन
स्वयम् को आरम्भ बना लो
रोबो चेयर एक वरदान
इम्यूनिटि बूस्टर
ओ दिसम्बर
मोहिनी
विल्स…
ऊ ला ला
गलतफहमी
फूलदान में सजते गाँव
देखूँ आठों याम
सभी कविता,कहानी, आलेख पढ़ लिए…बहुत रोचक लिंक्स का संकलन…! कोशिश की कि सभी पर जाकर कमेन्ट करूँ परन्तु कुछ पर संभव नहीं हो सका ।आपको व सभी रचनाकारों को बधाई!
आप जब सब लिंक्स पर जाती हैं तो मेरी मेहनत सफल हो जाती है । आभार ।
हटाएंकुछ लिंक पर कल और कुछ पर आज, भ्रमण कर रसपान कर आई सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, बहुत ही शानदार सृजन।
जवाब देंहटाएंभेलपूरी सी चटपटी प्रस्तुति उस पर एक्स्ट्रा चटनी आदरणीय संगीता जी की अनुभवी कलम कुट्टी से जो और जायका बढ़ा रही है स्वाद का।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
मेरी रचना को इस विशेष प्रस्तुति में चयन करने के लिए हृदय से आभार आदरणीय संगीता जी।
सादर सस्नेह।
कुछ लिंक पर कल और कुछ पर आज, भ्रमण कर रसपान कर आई सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई, बहुत ही शानदार सृजन।
जवाब देंहटाएंभेलपूरी सी चटपटी प्रस्तुति उस पर एक्स्ट्रा चटनी आदरणीय संगीता जी की अनुभवी कलम कुप्पी से जो और जायका बढ़ा रही है स्वाद का।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
मेरी रचना को इस विशेष प्रस्तुति में चयन करने के लिए हृदय से आभार आदरणीय संगीता जी।
सादर सस्नेह।
प्रिय कुसुम जी ,
जवाब देंहटाएंआज तो भरपूर ज़ायका दे दिया आपने अपनी प्रतिक्रिया के द्वारा । इतना ज़ायका मेरी प्रस्तुति में नहीं ।
हृदयतल से आभार ।
बहुत आभार आपका
जवाब देंहटाएं