शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।
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दिसंबर की हाड़ कँपाती सर्दियों में
अनगिनत ठिठुरते दृश्यों के साथ
कुछ अनदेखी कल्पनाएँ
मेरे मन को बैचेन करती है
क्या आपने सोचा है कभी
सरहद के रखवालों की बर्फीली रातों के बारे में
उन्हें हृदय से नमन करती हूँ-
हिमयुग-सी बर्फीली
सर्दियों में
सियाचिन के
बंजर श्वेत निर्मम पहाड़ों
और सँकरें दर्रों की
धवल पगडंडियों पर
चींटियों की भाँति कतारबद्ध
कमर पर रस्सी बाँधे
एक-दूसरे को ढ़ाढ़स बँधाते
ठिठुरते,कंपकंपाते,
हथेलियों में लिये प्राण
निभाते कर्तव्य
वीर सैनिक।
आइये आज की रचनाओं के संसार में चलते हैं।
मन में हर समय हजारों लाखों विचारों जन्म लेते रहते हैं। मानों मन एक सागर की तरह हो, जिसमें विचारों की लहर उठती ही रहती है। इसका कोई ओर कोई छोर नहीं। यह एक पल में ही हजारों मील की दूरी तय कर लेता है। मन बहुत चंचल है। मन कभी आकाश की ऊंचाई तक चढ़कर अनंत आकाश में विचरण करने लगता है, और कभी गहरे पाताल में जाकर गिर पड़ता है। कभी यह श्रेष्ठ विचारों का सृजन करता है तो कभी यह नीच विचारों पर चिंतन करने लग जाता है। कभी यह भी परमात्मा परमेश्वर में खुद को रमा कर विरक्ति भाव लिए गहन चिंतन में लीन हो जाता है, तो कभी इसके ठीक विपरीत सांसारिक विषय वस्तु के चिंतन में डूब जाता है।
पढ़िए एक मननशील रचना
कौन यहाँ किसका साथी है
जान न पाया कोई
कर्म बंधन से बंधे हुए सब
कैसे पाएँ आज़ादी ?
नित बंधन ही काट- काट
मन होगा आह्लादी।
रे मन ! चल तू एकाकी !
हर तस्वीर की अपनी कहानी होती है
अनकहे ख़्यालात की बोलती निशानी होती है
रंग जो पलभर में क़ैद हुए वक़्त के दायरे में
उनमें ज़ज़्बात की ज़िंदा रवानी होती है।
भैंस को कथरी
ओढ़ा रहे हैं
एक अकेली कुतिया
पिल्ले जिला रही है,
एक अकेला
पाड़ा
थर-थर कांप रहा है।
सब हारे से मायूस होंगे बैठे उसदिन
दिशाओं में गूँजेगी तुम्हारी आवाज़
पर्वतों से होगा कविता का शंखनाद
दिन का समूचा प्रकाश भींचकर
रात की आँखों से अंधेरा खींचकर
तुम बदल दोगे हौले से संसार उसदिन
खूब दौड़े थे मगर वक़्त कहाँ हाथ आया,
यूँ ही किस्मत ने हमें खूब छकाया उस दिन.
होंसला रख के जो पतवार चलाने निकले,
खुद समुन्दर ने हमें पार लगाया उस दिन.
दरख़्तों, दीवारों, मयखाने में न मिली
किसी अपने और बेगाने में न मिली
वफ़ा की तलाश में भटकता रहा उम्रभर
उसकी परछाईं भी ज़माने में न मिली।
किस्से भी फाख्ता हुये रांझों के,
कशिश हीर के फसाने में न रही।
बेवजह भटक रहा तू तलाश में,
वो वफा अब जमाने में न रही।
और चलते-चलते परिस्थितियों पर आँसू बहाने से
कोई हल तो नहीं निकलता, जरूरत है दृष्टिकोण
बदलकर बदली हुई परिस्थितियों को
देखने की
क्या तुम्हारा बेटा किसान बनने के लिए तैयार हुआ?"
"बेरोजगारी दूर करने के लिए नौकरी ना मिलने के कारण अपना धंधा शुरू करना गलत नहीं है .. । पढ़ा-लिखा नौजवान है, देश को आगे बढ़ानेवालों में से एक होकर चलेगा। "
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही है प्रिय विभा दी।
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-श्वेता
जवाब देंहटाएंरे मन ! चल तू एकाकी !
मन होगा आह्लादी।
आदरणीय संगीता दीदी
आभार और
आभार सखी श्वेता को
शानदार पठनीय रचनाएं पढ़वाने के लिए
सादर
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुंदर अंक बेहतरीन रचनाएं
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता ,
जवाब देंहटाएंदिसंबर की सर्दी और सरहद पर रक्षा करते सैनिक ,
उनके हौसलों को नमन है ।
इस सुंदर और भवपूर्ण भूमिका के साथ हलचल की प्रस्तुति सराहनीय है ।
रही मन की बात तो रचना से बड़ी प्रस्तावना देख मन कैसे वीतरागी हो पायेगा 😄😄 यूँ भी मन की चंचलता तुमने बयाँ कर ही दी है ।
दिसंबर श्रृंखला में देवेंद्र जी की आत्मा कुछ ज्यादा बेचैन नज़र आ रही है , उनकी दृष्टि से दिसंबर महसूस कर आये ।
आज नासवा जी की ग़ज़ल सोचने पर मजबूर कर रही है ।गुनाहों को जोड़ कर देखें तो आईना देखने में शर्म महसूस होने लगे । सच न जाने कितने गुनाह किये होंगे जीवन में ।
वैसे भी लोग इतने स्वार्थी हैं कि अपने लिए जीते हैं , खुद से वफ़ा कर लें वही बहुत है ।
वक़्त के साथ सोच को बदलना चाहिए , कब तक नौकरियों के लिए भागते रहेंगे । कुछ करने के लिए पता होना चाहिए कि आखिर करना क्या चाहते हैं ।
सारे लिंक्स पढ़ जितना समझ आया सारांश लिख दिया । बाकी हर रचना के साथ दी हुई तुम्हारी टिप्पणियाँ मनमोहक हैं । सुंदर और सार्थक हलचल के लिए आभार
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंभूमिका में वर्फीले पर्वतों पर कर्तव्य निभाते सैनिकों के लिए संवेदना के साथ उत्कृष्ट लिंको से सजी लाजवाब प्रस्तुति ।सभी लिंको पर आपकी सारगर्भित समीक्षा रचना और भी पठनीय एवं आकर्षक बना रही है ।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
सैनिकों के संघर्ष की संवेदना के साथ बहुत सुंदर लिंक्स।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता, सैनिकों की निस्वार्थ सेवा को कुछ लोग उनके कर्तव्य का एक हिस्सा समझते हैं पर उनके ज़ज़्बे का कम मूल्यांकन मानवता के प्रति अपराध है ।बर्फीले पहाडों पर जहाँ पग पग पर मौत की आहट है वे सपरिवार से दूर इस जोखिम भरे जीवन में जान हथेली पर लिये, अपना कर्तव्य निष्ठा से निभाते इन कर्तव्यवीरों को हृदय से सदैव नमन है।उनके लिए भूमिका में लिखी अत्यंत भाव-पूर्ण और हृदयस्पर्शी पंक्तियों के लिए हार्दिक आभार ।आज की अत्यंत सराहनीय रचनाओं से सजी प्रस्तुति में सम्मिलित सभी रचनाकारों को सादर नमन।
जवाब देंहटाएंसैनिकों के सम्मान में बहुत सुंदर अंक प्रिय श्वेता जी ! अभी पढ़ नहीं पाई ! समय मिलते ही पढ़ती हूँ इस सुंदर और परिष्कृत अंक को ! बधाई और शुभकामनाएँ सखी !
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