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मंगलवार, 13 दिसंबर 2022

3606 ...जब सत्य की खोज करोगे तो जो सत्य है वह अवश्य मिलेगा

आज का अंक
हम सभी की प्रिय
आदरणीया  रेणु जी के द्वारा संयोजित है-
चलिये फिर आनंद लेते हैं-

मेरे स्नेही पाठकवृन्द को मेरा सप्रेम अभिवादन! एक बार फिर से मंच पर हाजिर हूँ आज की  प्रस्तुति के साथ! सबसे पहले हिन्दी के यशस्वी और मंचों के सर्वाधिक लोकप्रिय  कवियों में से एक 'प्रियांशु गजेन्द्र की एक कालजयी और शान्ति और न्याय के लिए हो रहे  युद्ध पर प्रश्न उठाती   प्रासंगिक रचना---

क्या अब कर्ण नहीं बहते हैं गंगाजल में,
क्या निश्चिन्त हो गयी जग में कुन्ती मायें,
सर्वनाश हो गए कहो कुल दुशाशनों के,
या लुटती रहती हैं अब भी द्रुपद सुताएँ।
कहो युधिष्ठिर भोर हो गयी क्या भारत में,
या सूरज हो रहा अस्त कैसा लगता है?


 अब आज की चुनिंदा रचनायें---


 किसी की मधुर  स्मृतियों के साथ जीना और उन्हें अपने भीतर जीवंत देखते रहना जीवन जीने का बहुत बड़ा संबल होता है।  बरामदे की धूप में  , आत्मा से लिपटी  किसी बहुत खास  की सुहानी यादों से संवाद करती रचना   आदरणीय शान्तनु जी की लेखनी से एक मोहक अंदाज में -----
यूँ तो ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति होती
है अपने आप में उलझी हुई, फिर भी
हम ढूंढते हैं जटिल समीकरणों
का हल एक दूसरे के अंदर,
इक अदृश्य रसायन ,
जो जोड़े रखता है  हमारा वजूद//

अहाते की धूप - -


यूँ तो ज़िन्दगी की त्रिकोणमिति होती
है अपने आप में उलझी हुई, फिर भी
हम ढूंढते हैं जटिल समीकरणों
का हल एक दूसरे के अंदर,
इक अदृश्य रसायन
जो जोड़े रखता
है हमारा
वजूद,



 जहाँ आम आदमी की सोच समाप्त होती है, 20 वीं सदी के प्रखर विचारक ओशो का चिंतन  वहाँ से शुरु होता है। विषय धार्मिक हो या सामाजिक, आध्यात्मिक हो अथवा बौद्धिक, ओशो की सारगर्भित और प्रचंड  व्याख्या ने उसे नये आयाम तक पहुँचाया।उनके निर्भीक  विचारों में धर्म में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रचलित पाखंड़ उजागर हुये जिससे उन्हें  सबसे विवादित आध्यात्मिक गुरु  माना गया।ओशो की जयंती पर उन्हें समर्पित आदरणीय
अरुण साथी जी का भावपूर्ण लेख--

आचार्य ओशो रजनीश 


इस छोटी सी कहानी के माध्यम से ओशो रजनीश ने यह बताया कि ढल को खुद महसूस करो। तब उसे मानो। जब सत्य की खोज करोगे तो जो सत्य है वह अवश्य मिलेगा। बशर्ते उसे कोई खोज करने वाला हो। इसलिए वह व्यक्ति पहले इस सत्य को खोजने गया कि दरवाजा बंद है अथवा खुला हुआ।


बालमन की कल्पना बहुत मासूम और कोमल होती है।उसके भीतर हर जिज्ञासा का समाधान ढूँढने की प्रबल  लालसा छिपी रहती है। उसके लिए दुनिया की हर गतिविधि रोमांचक और अनूठी है।वह अपने प्रश्नों का उत्तर पाये भी तो किससे! इसी तरह के  बाल मन की जिज्ञासाओं का एक सरल-सा संसार सहेजता बालकवियों का सुन्दर ब्लॉग है---'बाल सजग'।मेरा विनम्र निवेदन है कि कृपया  नन्हे शब्द शिल्पियों की  कविता के अस्फुट स्वरों को अपना आशीष प्रदान कर प्रोत्साहित करें। कक्षा  छह के छात्र और नन्हे कवि नीरू कुमार की एक रचना----
कौन है वो जिसने बनाया है मेरा संसार,
कौन है वो जो सिखाता जीने को संसार । ///


किसी समय कुएँ मात्र एक  जल व्यवस्था के संवाहक नहीं थे, एक  सामाजिक ,सांस्कृतिक  आस्था और आपसी मेलजोल का सशक्त माध्यम थे। ना जाने कितनी कहानियाँ ,कितने किस्से इन कुओँ  से जल भर कर लाने के   बहाने परवान चढ़े।आज ये लोक जीवन की स्मृतियों का हिस्सा भर बन कर रह गये हैं।पर कहीं आज भी कोई कुआँ जिन्दा है और अपने अमृतजल से पथिकों की प्यास बुझा रहा है। इस कुएँ का मधुर प्रसंग पढें

आदरणीय देवेन्द्र पाण्डेय जी के ब्लॉग 'बेचैन आत्मा'पर -----

साइकिल  की सवारी

इस कुँए के पानी को अमृत माना जाता था। पुरनिए कहते थे कि जो इस कुएँ का पानी पेट भर पी ले उसे कोई रोग हो ही नहीं सकता। आज भी इसके कुँए पर लिखा है, 'अमृत कुण्ड'।आज के आधुनिक समय में जब अधिकांश कुएँ सूख चुके हैं, इसे जिंदा देखकर खुशी होती है 



भावनाओं और स्मृतियों  का जीवन्त दस्तावेज है डायरी।पुरानी डायरी के पन्नों से जब  बीते लम्हे झाँकते हैं तो बचपन के  अनगिन भूले-बिसरे  दृश्य  सजीव हो सामने आ खड़े होते हैं।उन्हीं में अनंत यात्रा पर गये  स्नेही पिता सहसा लौट आते हैं और इस  निष्कलुष  स्नेह के  तानेबाने  में उलझ जाती है आत्मा और  तनिक भी विलग नहीं होना चाहती स्मृतियों के इस हरे भरे संसार से,आदरणीय संदीप जी की लेखनी से---

पुरानी डायरी

बाबूजी नहीं हैं,लेकिन डायरी है, 
उस पर अब भी उनके भाव में लिपटे शब्द हैं
सीख दे जाते हैं 
उम्र के थकान वाले मौसम में।
हां डायरी पीली हो गई है
शब्द पीले हो गए हैं,हां यादें अब भी हरी हैं
जैसे कि बाबूजी की मुस्कान।///


और अन्त में बिहार के सुरीले सुत यशस्वी संगीतकार चित्रगुप्त जी के अमर संगीत और जीवन संघर्ष की  यात्रा को संजोती पुस्तक ' चल उड़ जा रे पंछी '

की सुन्दर , सारगर्भित और भावपूर्ण समीक्षा

 आदरणीय विश्वमोहन जी के ब्लॉग से---------- 

चल उड़ जा रे पंछी!

अब इसे लेखक का वैचारिक लालित्य ही कहेंगे कि हिंदी धुनों की इस चित्र-कला का चित्रण करते समय समानांतर लोक-भाषा की लोक-धुनों के उद्भव की कला से वह किंचित बेख़बर नहीं रहता। भोजपुरी फ़िल्म के इतिहास का रचना-काल होता है १९६२। और, इतिहास के इस आँगन को चित्रगुप्त अपने संगीत की रस-माधुरी से सराबोर कर देते हैं। ‘हे  गंगा मैया तोहे पीयरी चढ़इबो’ में चित्रगुप्त ने गीत-गंगा को अपने मोहक संगीत की पीयरी ही तो चढ़ायी है। 

--------/////-------

आशा है आज का अंक आपको अच्छा लगा होगा
आज के लिए इतना ही 
- रेणु




25 टिप्‍पणियां:

  1. अब तो आप आ ही जाइए सखी
    दिल्ली दूर नहीं
    वहां पर आदरणीय संगीता दीदी, पम्मी सखी ,और रवींद्रसिंह जी है
    एक दिन में सीख जाइएगा,
    एतना सुन्दर अंक.....
    सच में मन रम गया
    आभार सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रणाम प्रिय दीदी 🙏
      आपको प्रस्तुति पसंद आई सन्तोष हुआ। थोडा इन्तजार करें,अभी थोडा कुछ उलझने बाकी हैं।पर जब आप याद करेंगे हाज़िर हो जाऊँगी।श्वेता का सहयोग अतुलनीय है।मैने तो बस सब लिखकर उसे सौंप दिया था।हार्दिक आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए 🙏

      हटाएं
    2. जी दी,
      आपका स्नेह है हम कुछ भी नहीं किये है आपने जो भी रचनाएँ भेजी उसे बस लगा दिये है। इतनी सराहना न करिये दी संकोच होता है। स्नेहाशीष बना रहे आपका।
      सादर।

      हटाएं
  2. बहुत सुन्दर सूत्रों को समाहित किये लाजवाब प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  3. खुबसूरत प्रस्तुति ! उम्दा !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही मोहक प्रस्तुति। पहला और अंतिम वीडियो लाजवाब। यूं ही आना जाना लगा रहे और पांच लिंकों का आनंद हलचल मचाता रहे।
    बधाई और अत्यंत आभार!!!!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय विश्वमोहन जी।आपकी उपस्थिति से अपार हर्ष हुआ और चित्रगुप्त जी के गीत के वीडियो के चयन का श्रेय प्रिय श्वेता को जाता है 🙏

      हटाएं
  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय रेणु ,
    हलचल मचा देने वाली हलचल।
    सभी लिंक्स बेहतरीन । पढ़ लिए सब। हर रचना पर तुम्हारी अपनी सोच चस्पां है । इसलिए रचनाएँ पढ़ने का आनंद दुगना हो गया । सुंदर संकलन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दीदी,आपको प्रस्तुति पसंद आई,सन्तोष हुआ! आप सब को देखकर अनुशरण किया।बहुत आभारी यूँ आपकी स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया के लिए 🙏

      हटाएं
  7. प्रिय दी,
    मंच पर आपकी रचनात्मक उपस्थिति,आपकी मुखर लेखनी का बौद्धिक स्पर्श एवं भावनात्मक दृष्टिकोण का सतत प्रवाह आपके द्वारा संकलित अंक को विशिष्टता प्रदान कर रही है।
    सभी रचनाओं पर आपकी गहन विश्लेषात्मक एवं समीक्षात्मक प्रतिक्रिया बेहद प्रभावशाली है।आपके द्वारा चयनित सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक है।
    'कहो युधिष्ठिर' अनेक बार सुन चुके हैं और हर बार नये वैचारिकी मंथन को विवश हो जाते है।
    अंत में लगा गीत बेहद मधुर है।
    दी सुविधानुसार आते रहे मंच की शोभा बढ़ाते रहें।
    एक लाज़वाब संकलन पढ़वाने के लिए बहुत बहुत आभार आपका।
    सस्नेह प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन करती इतनी विस्तृत प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय श्वेता! तुम्हारे सहयोग बिना कुछ सम्भव न था।और यदि हम आज के सृजन को देखें तो आज कालजयी रचनाओं का अभाव सा मिलता है पर प्रियांशु गजेन्द्र एक ओजस्वी युवा कवि हैं जिनकी मधुर कविताएँ झझकोरती हैं तो रस, लय और प्रासंगिक विषयवस्तु के साथ उनके अपने स्वर में उनका गायन एक अनिर्चनीय आनन्द की अनुभूति करवाती हैं।सस्नेह♥️

      हटाएं
  8. बेहद खूबसूरत अंक है...। खूब बधाईयां आपको...।

    जवाब देंहटाएं
  9. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सखी

    जवाब देंहटाएं
  10. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सखी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हार्दिक स्वागत और ढेरों आभार अभिलाषा जी 🙏

      हटाएं

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