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मंगलवार, 6 दिसंबर 2022

3599 ...आज 6 दिसंबर है, मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है

 सादर नमस्कार

कैसी थी 29 वर्ष पहले अयेध्या की वह सुबह, छः दिसम्बर 1992 के दिन क्या-क्या हुआ था
कैसे श्रीराम जन्मभूमि परिसर को मुक्ति मिली

मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम भारतीयों के व्यक्तित्व के संविधान हैं। उनका “राम राज्य” एक शासक के लिए सर्वोत्तम आदर्श है। परन्तु, मानवता के लिए 14 वर्ष का वनवास भोगने वाले प्रभु राम को हम लोगो ने 450 वर्षों का वनवास दिया। अंततः “होईहि सोई जो राम रची राखा” की कहावत चरितार्थ हुई और लोगों ने 6 दिसम्बर 1992 को रामजन्म भूमि को उनके आशीर्वाद से मुक्त करा लिया। यह दिवस भारतवर्ष  के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आरंभ था। आज 6 दिसंबर है, मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है। और लगभग पूर्णता की राह पर है
शौर्य दिवस.....
फिलहाल 6 दिसंबर पर आते हैं, इस दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे। जिसके बाद वो विवादित स्थल की ओर रवाना हुए। मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ आडवाणी उस जगह पर पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी। वहां, उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया। इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए, जो उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था। वहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था, यह स्थल विवादित ढांचे के ठीक सामने था। उल्लेखनीय बात है कि उस समय तेजी से उभरती भाजपा की युवा नेता उमा भारती भी वहां उपस्थित थी। वो सिर के बाल कटवाकर आई थी, ताकि सुरक्षाबलों से बच सकें।

श्रीराम जी का मंदिर उसी जगह पर पूर्णता की ओर है 




कुछ चित्र नए निर्माणाधीन मंदिर का दिखा रही हूँ



निर्बंध हवाएं अपने ही शर्तों पर बहती हैं,
वो किसी का निर्देश नहीं सुनतीं, हमें
पाल समायोजित करने का तरीक़ा
खोजना होगा, अंधेरे में भी हम
उम्मीद की सुबह देख सकते
हैं, भले ही हमारे पास कुछ
भी न हो, फिर भी इस
अमूल्य जीवन को
मुस्कराहटों के
साथ,



शिल्पा सोचने लगी कि जिनको ये ही नहीं पता कि हम शादी में आए थे या नहीं, उन्हें हमारे द्वारा (महीने का बजट बिगाड़कर) दिए 5100 रुपए कहां याद होंगे! काश, इतने रुपए हमने सुनिता के बेटी की शादी में दिए होते तो वो उस उपहार को जिंदगी भर याद रखती!!



तस्वीर थी कोई जो, बसा रखी थी दिल में
उतरा जो रंग, यार की सूरत बदल गई ।

मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।




एक थे नव्वाब,
फ़ारस से मंगाए थे गुलाब।
बड़ी बाड़ी में लगाए
देशी पौधे भी उगाए
रखे माली, कई नौकर
गजनवी का बाग मनहर
लग रहा था।


आज इतना ही
सादर

9 टिप्‍पणियां:

  1. 6 दिसंबर कई मायनों में यादगार दिन । बेहतरीन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. 6 दिसम्बर का महत्व बतलाती सुंदर पोस्ट। मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद यशोदा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. कुकुरमुत्ता कालजयी रचना है। स्कूल में पढ़ी थी। पढ़ानेवाले शिक्षक भी उस समय ऐसे थे कि जो कविताएँ स्कूल में पढ़ी थीं, वे कभी स्मृति से ओझल नहीं हुई। अच्छे लिंक्स का संग्रह।
    मेरी रचना को पाँच लिंकों में लेने के लिए आदरणीया यशोदा दीदी का बहुत बहुत आभार। आँखों में तकलीफ होने की वजह से ब्लॉग जगत से कुछ समय के लिए मुझे दूर जाना पड़ेगा। शायद एक महीने बाद वापसी हो।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आँखें हैं तो जहान हैं
      भाई कुलदीप से पूछिएगा
      सम्हालिए आँखों को
      शीघ्र स्वस्थ हों यही कामना है
      सादर

      हटाएं
  4. निर्माणाधीन मंदिर की सुंदर तस्वीरों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति। सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय ।

    जवाब देंहटाएं

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