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मंगलवार, 8 नवंबर 2022

3571 ....सच में जो प्रेमी है, चुप होना ही काफ़ी है

सादर अभिवादन


दिव्य प्रेम - जितना कम प्रेम
उतना ज्यादा गुहार मचाए रखता है
कि मैं प्रेम करता हूँ, मैं प्रेम करता हूँ।
सच में जो प्रेमी है
चुप होना ही काफ़ी है
और अगर चुप्पी न कह सके प्रेम को
तो शब्द कभी भी नहीं कह पायेंगे।
भाव जब होता है
तो रोआं रोआं भी कहता है
उपस्थिति कहती है ।
_ओशो

रचनाएँ ......



सोचे, अब, कैसे ये ख्वाब!
कैसा ये पागलपन, पाले क्यूं, उलझन!
टूट जाते, सावन में ही ये घन,
बिखर जाते हैं, तन,
क्यूं दीवानापन!





जो स्वयं को ही बोधित करती है
अंतस की सुंदर जमीन पर
ज्ञान तरू बनकर फलती है.
हर कोई शिक्षा पाता है
कौशल निपुण बन जाता है
सिर ऊंचा करता समाज में
उत्थान में होड़ लगाता है.
लेकिन विद्या व्यवहार सिखाती




पहला कदम  सजगता की ओर ..........
सबसे पहले दैनिक कार्य  सजगता से करना शुरु करें ।बच्चों में शुरु से ही इस बीज को बोना प्रारंभ  करें ।छोटी -छोटी बातें जैसे चलना ,खेलना ,खाना सब सजगता के साथ  करना सिखाएं ..आगे चलकर  सफलता अवश्य  मिलेगी




एक स्त्री
जब उदास होती है..;
धीमी हो जाती है..
धरती के
घूमने की गति..!

एक स्त्री
जब मुस्कराती है..;
आसमान
थोड़ा झुक जाता है..!




नयनो की भाषा समझी तो ,
प्रेम अबूझ रहा ना
द्वैत मिटा,एकत्व घटा कब,
ये भी अब सूझ रहा ना
छाया बन कर साथ हो पल पल,
बीता दिन यूँ सारा
दृढ बंधन बाँहों का पा कर
सर्वस्व स्वयं ही हारा ...........


आज बस

सादर 

6 टिप्‍पणियां:

  1. इस बेहतरीन अंक का हिस्सा बन पाना सुबह की लाली जैसी अनुभूति पाने जैसा है।
    आदरणीया मुदिता जी की रचना ने खासा प्रभावित किया है।।।
    घुलनशील कर गया रूह को,
    स्नेह स्पर्श तुम्हारा.
    दृढ बंधन बाँहों का पा कर ,
    सर्वस्व स्वयं ही हारा...
    - बहुत ही प्यारी सी रचना।।। समर्पित प्रेम को परिभाषित करती हुई बेहतरीन।।।।
    अन्य समस्त रचनाकारों को नमन।।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को शामिल करने के लिए यशोदा जी 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. इस खूबसूरत संकलन में मेरी कविता भी शामिल है, बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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