शीर्षक पंक्ति:आदरणीय शांतनु सान्याल जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
ओ नारी , अब जाग जा, उठ खड़ी हो ! कब तक भरमाई रहेगी? मिथ्यादर्शों का लबादा ओढ़, कब तक दुबकी रहेगी, परंपरा की खाई में ?
नारी हो तुम
शक्ति पुंज कहलाती हो.......
अताताइयों को
क्यों सिरमौर बनाती हो....
प्रेम की
भाषा जो समझ सका न कभी....
उसके ऊपर
क्यों व्यर्थ समय गवांती हो
मां की देहरी
लांघना थी प्रथम भूल तुम्हारी
प्यार आह में
बदला,क्यों नही आवाज उठाई थी
नारी दुर्गा
काली है, क्या खूब
निभाया तुमने....
पैतीस टुकड़ों
में कट कर उस दानव के हाथ
जान
गवाई.....
हर कोई देखना चाहे है, ख़ुद का चेहरा बेदाग़,
ज़ेर ए नक़ाब आइने का राज़े इज़हार बाक़ी है,
नहीं माँगे
सदा देती
नेमतें अपनी
लुटाती,
चेत कर इतना
तो हो कि
फ़टे दामन ही
सिला लें!
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंसुंदर चयन
आभार
सादर
आभार आपका रविंद्र जी हमारी रचना को शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! सराहनीय रचनाओं का सुंदर संकलन, आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स मिले । आभार ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया, सभी रचनाएँ असाधारण, नमन सह ।
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