हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
‘विशिष्ट’ की उन्होंने यूं व्याख्या की कि गुण ही विशिष्टता है [विशेषो गुणात्मा] | उनके लिये रीतियों में भी वैदर्भी गुण श्रेष्ठ है क्योंकि वह समग्र गुण है क्योंकि यह वाणी का स्पर्श पाकर मधु-स्त्रावण करने लगती है | यह रीति ही अर्थ गुण सम्पदा के कारण आस्वाद्या होती है। उसकी गुणमयी रचना से कोई ऐसा पाक उदित होता है जो सद्दय-हृंदयरंजक होता है | उसमें वाणी को इस प्रकार स्पंदित कर देने की शक्ति है जो सारहीन भी सारवान प्रतीत होने लगे।
पहले के भक्तिकाल एवं रीति काल की काव्य-परंपरा काफी सम्पन्न थी। इसे छोड़कर एकदम से नये कविता-पथ पर चल पड़ना उस युग के रचनाकारों, कवियों के लिए बड़ा ही असम्भव-सा काम था। इसलिए इस युग में भी भक्ति, श्रृंगार और नीति की कविताओं की भरमार है, भले ही भाषा ब्रजभाषा ही रही। जहां, कवि परम्परा का ही अनुकरण कर रहे थे, वहीं कविता के नाम पर चमत्कार-सृष्टि भी कर रहे थे। महाराज कुमार बाबू नर्मदेश्वर प्रसाद सिंह ने ‘शिवा शिव शतक’ तथा स्वयं भारतेन्दु परम्परागत कविता लिख रहे थे। इन कविताओं में अनुभव की सजीवता और चमत्कार थे।
इस नाम को अपनाने से जहां समसामयिक युग बोध का बोध होता है वहीं पूर्ववर्ती कवियों से विषय-वस्तु और शैली की भिन्नता भी स्पष्ट हो जाती है। वास्तव में यह नाम सन 1930 में लंदन में ग्रियर्सन द्वारा न्यू वर्स(New Verse) नाम से संपादित पत्रिका का अक्षरश: हिंदी अनुवाद है। दूसरे महायुद्ध के कुछ वर्ष पूर्व से ही यूरोपीय साहित्य में,विशेषकर फ्रेंच और अंग्रेजी में परम्परा से मुक्त,नए ढ़ग की कविताओं का चलन शुरु हो गया था। इनमें जहां एक ओर बुद्धिवाद का आधार लिया गया वहीं दूसरी ओर वस्तुवाद पर आधारित भावात्मक प्रतिक्रिया की अभिव्यक्ति भी थी।
शब्द में शक्ति होती है। यदि इसका उचित प्रयोग किया जाये तो शब्दावली काव्य में चमत्कार उत्पन्न कर देती है। अंग्रेजी कवि डब्ल्यू. एच. ऑर्डेन ने भी कहा कि Play with the words अर्थात शब्दों से खेलना सीखो। शब्दों से खेलने का तात्पर्य, शब्दों के भीतर सदियों से छिपे अर्थ की परतों को खोलना, शब्दों के मेल-जोल बढ़ाने से है। कवि अपनी भावनाओं को शब्दों के माध्यम से ही आकार देता है। शब्दों का चयन, उनका गठन और भावानुसार लयात्मक अनुशासन सबल काव्य रचना में विशेष महत्त्व रखते हैं।
आज भी भारतीय समाज में जातिवाद की जकड़न बनी हुई है। हिन्दी क्षेत्र में इसका जोर और आतंक सबसे अधिक है। सामूहिक रूप से हरिजनों की हत्या करने और उन्हें जिंदा जलाने की सबसे अधिक घटनाएं आज भी हिन्दी क्षेत्र में ही हो रही हैं। ऐसी स्थिति में जातिवाद के विरुद्ध जन आंदोलन और वैचारिक संघर्ष की जरूरत आज भी बनी हुई है। जाति प्रथा मूलतः अधिनायकवादी और दमनकारी प्रवृत्तियों से जुड़ी हुई है। इस देश में लोकतंत्र की रक्षा और विकास के लिए जातिवाद का विरोध आवश्यक है।
व्वाहहहहहह...
जवाब देंहटाएंआपको नये-नये विषय मिल ही जाते हैं
आज का अनछुआ विषय सर्वश्रेष्ट है
आभार
सादर नमन
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
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जवाब देंहटाएंvery helpful information thank you Visit RushHours.in!
bahut hi sundar lekhni
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