हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
इन कविताओं में बहुत सारे विषय और परिस्थितियां हैं, मूर्त और अमूर्त स्थितियों का मिश्रण है, परिदृश्य की एक स्थानिकता है, एक धीमी लय, एक तलाश और अस्त व्यस्तता है, जगमगाहट के पीछे से झांकते अंधेरे कोने–कुचाले हैं, विद्रूपताएं हैं और स्थिति विपर्यय का एहसास है । सत्ता के नुमाइंदे जिस शक्ति-तंत्र को एक आम आदमी के जीवन में रचते हैं, उन नुमांइदों की आवाज को जानना है, जिसमें ‘‘ न कोई सन्देह, न भय / न भर्राई न कर्कश हई कभी / हमेशा सम पर थिर ।’’
प्रियतम को आंखों का काजल बना कर सपने संजोना भले ही नई बात न हो लेकिन उसे अंतस में शीतल शब्दों की नदी के रूप में प्रवाहित करना रजनी दीप की संवेदना और सामर्थ्य को इंगित करता है. यहां काजल सिर्फ काजल भर नहीं रहता बल्कि शून्य में विलीन होने बाद भी उस तुम तक पहुंचने का माध्यम बन जाता है जिसे इस कृति में प्रियतम माना गया है. सही मायने में 'तुम' से 'तुम' तक पहुंचने की तड़फ ही इस एकालाप का सार है जो प्रेम में होने की सही परिभाषा है.
स्मरण रखो औ’ विश्वास करो,
मानव हो सकता है
मात्र मानव,
अपनी कुशलता-हताशा-पराजय के साथ भी,
और यह गात
होना होगा इसे आत्मा से एकात्म।
आज के इतिहास के अभूतपूर्व दबाव का एहसास उनमें इतना गहरा था कि उन्हें अन्ततः साहित्य की सीमा का भी बोध हो गया था। इसीलिए स्वयं एक साहित्यकार होते हुए भी मुक्तिबोध यह कहने का साहस कर सके कि “साहित्य पर आवश्यकता से अधिक भरोसा करना मूर्खता है।” क्योंकि “साहित्य मनुष्य के आंशिक साक्षात्कारों की बिम्ब-मालिका भर तैयार करता है।” इस कथन से, सम्भव है, हमारे साहित्यिक अहं को कुछ चोट लगे, किन्तु वस्तुस्थिति से इनकार करना कठिन है; और यह भी एक विडम्बना ही है कि साहित्य के अवमूल्यन का आभास देते हुए भी लगे हाथों मुक्तिबोध साहित्य की एक वैज्ञानिक परिभाषा भी दे गये।
निराश मत होओ
क्योंकि
मृत्यु-शैय्या पर
पड़ा रोगी
अभी मरा नहीं है
और आशा की डोर
अभी टूटी नहीं है
सादर नमन
जवाब देंहटाएंसदाबहार प्रस्तुति
हमेशा की तरह
साधुवाद
सुंदर, सराहनीय अंक ।
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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