सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए आपको आज की पसंदीदा रचनाओं की ओर ले चलें-
साथ तुम्हारे दौड़ रहा है, बुड्ढा अढसठ साल का-सतीश सक्सेना
ना तो हम जान पाए
नही सर पैर मिला किसी बात का
अपनी बातों पर अड़े रहे
अपनी बात ही सही लगी
दूर हुए आपसी बहस बाजी से
जब अन्य लोगों ने भी दखलंदाजी की
उन ने भी बहस में भाग लिया |
वो तो, कैद कर गया, बस परिदृश्य सारे,
बे-आस से वो, दोनों किनारे,
उन, रिक्तियों में पुकारे,
क्षणभंगुर क्षण ये, जिधर थी ढ़ली,
बिखरा, वो सागर जाम का!
वही इक झरोखा...
मेरे काम का!
हमारा अंत है।
नदी
सभी की है
और
हमेशा रहेगी या नहीं
यह पहेली अब सच है।
अप्रतिम वजनदार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति और मेरा सौभाग्य
जवाब देंहटाएंनदी
जवाब देंहटाएंपहले विचारों में
प्रयासों में
चैतन्य कीजिए
उसकी
आचार संहिता है
समझिए
वरना शून्य तो बढ़ ही रहा है
क्रूर अट्टहास के साथ।।।
- बेहतरीन रचना। जितनी भी तारीफ करूं कम होगी। संदीप जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।।।।
अति उत्तम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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