अभी समय है एक लम्बी कहानी पूरी हो जाएगी
रविवार ,सोमवार और मंगलवार तीनों दिन प्रस्तुति मुझे ही लगानी है
अपनी बेटी की शादी की खुशी
गतांक से आगे
काफी देर तक उसे देखने के बाद अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाया और उस लड़के के पास जा कर खड़ा हो गया. वह लड़का कुछ सामान्य सी विज्ञान की पुस्तकें बेच रहा था. मुझे देख कर उस में फिर उम्मीद का संचार हुआ और बड़ी ऊर्जा के साथ उस ने मुझे पुस्तकें दिखानी शुरू कीं. मैं ने उस लड़के को ध्यान से देखा. साफ सुथरा, चेहरे पर आत्मविश्वास लेकिन पहनावा बहुत ही साधारण. ठंड का मौसम था और वह केवल एक हलका सा स्वेटर पहने हुए था. पुस्तकें मेरे किसी काम की नहीं थीं फिर भी मैं ने जैसे किसी सम्मोहन से बंध कर उस से पूछा, ‘बच्चे, ये सारी पुस्तकें कितने की हैं?’
‘आप कितना दे सकते हैं, सर?’
‘अरे, कुछ तुम ने सोचा तो होगा.’
‘आप जो दे देंगे,’ लड़का थोड़ा निराश हो कर बोला.
‘तुम्हें कितना चाहिए?’ उस लड़के ने अब यह समझना शुरू कर दिया कि मैं अपना समय उस के साथ गुजार रहा हूं.
‘5 हजार रुपए,’ वह लड़का कुछ कड़वाहट में बोला.
‘इन पुस्तकों का कोई 500 भी दे दे तो बहुत है,’ मैं उसे दुखी नहीं करना चाहता था फिर भी अनायास मुंह से निकल गया.
अब उस लड़के का चेहरा देखने लायक था. जैसे ढेर सारी निराशा किसी ने उस के चेहरे पर उड़ेल दी हो. मुझे अब अपने कहे पर पछतावा हुआ. मैं ने अपना एक हाथ उस के कंधे पर रखा और उस से सांत्वना भरे शब्दों में फिर पूछा, ‘देखो बेटे, मुझे तुम पुस्तक बेचने वाले तो नहीं लगते, क्या बात है. साफसाफ बताओ कि क्या जरूरत है?’
वह लड़का तब जैसे फूट पड़ा. शायद काफी समय निराशा का उतारचढ़ाव अब उस के बरदाश्त के बाहर था.
‘सर, मैं 10+2 कर चुका हूं. मेरे पिता एक छोटे से रेस्तरां में काम करते हैं. मेरा मेडिकल में चयन हो चुका है. अब उस में प्रवेश के लिए मुझे पैसे की जरूरत है. कुछ तो मेरे पिताजी देने के लिए तैयार हैं, कुछ का इंतजाम वह अभी नहीं कर सकते,’ लड़के ने एक ही सांस में बड़ी अच्छी अंगरेजी में कहा.
‘तुम्हारा नाम क्या है?’ मैं ने मंत्रमुग्ध हो कर पूछा?
‘अमर विश्वास.’
‘तुम विश्वास हो और दिल छोटा करते हो. कितना पैसा चाहिए?’
‘5 हजार,’ अब की बार उस के स्वर में दीनता थी.
‘अगर मैं तुम्हें यह रकम दे दूं तो क्या मुझे वापस कर पाओगे? इन पुस्तकों की इतनी कीमत तो है नहीं,’ इस बार मैं ने थोड़ा हंस कर पूछा.
‘सर, आप ने ही तो कहा कि मैं विश्वास हूं. आप मुझ पर विश्वास कर सकते हैं. मैं पिछले 4 दिन से यहां आता हूं, आप पहले आदमी हैं जिस ने इतना पूछा. अगर पैसे का इंतजाम नहीं हो पाया तो मैं भी आप को किसी होटल में कपप्लेटें धोता हुआ मिलूंगा,’ उस के स्वर में अपने भविष्य के डूबने की आशंका थी.
उस के स्वर में जाने क्या बात थी जो मेरे जेहन में उस के लिए सहयोग की भावना तैरने लगी. मस्तिष्क उसे एक जालसाज से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं था, जबकि दिल में उस की बात को स्वीकार करने का स्वर उठने लगा था. आखिर में दिल जीत गया. मैं ने अपने पर्स से 5 हजार रुपए निकाले, जिन को मैं शेयर मार्किट में निवेश करने की सोच रहा था, उसे पकड़ा दिए. वैसे इतने रुपए तो मेरे लिए भी माने रखते थे, लेकिन न जाने किस मोह ने मुझ से वह पैसे निकलवा लिए.
‘देखो बेटे, मैं नहीं जानता कि तुम्हारी बातों में, तुम्हारी इच्छाशक्ति में कितना दम है, लेकिन मेरा दिल कहता है कि तुम्हारी मदद करनी चाहिए, इसीलिए कर रहा हूं. तुम से 4-5 साल छोटी मेरी बेटी भी है मिनी. सोचूंगा उस के लिए ही कोई खिलौना खरीद लिया,’
मैंने पैसे अमर की तरफ बढ़ाते हुए कहा. ....
अगले अंक मे समापन किश्त
रचनाएँ ......
न उम्र देखें न सलीका ,
जहां देखा चेहरा हंसी सा ,
बस हो जाये उसी का ।
न आसमां न जमीं का ,
न ख्याल दुनिया की रस्मों का ,
जब देखें रंग बिरंगी तितलियां ,
बस हो जाये उन्हीं का ।
बेकरार है कोई हमसे
मोहब्बत करने को इस तरह से।
जैसे कुछ लताएँ
चढ़ती हैं दीवार पे जिस तरह से।
चीलों के घर ही मिले, बन्धु! अस्थियाँ-माँस।
खरगोशों का कुटुम्बी, कठिन बचानी साँस।।
द्वेष नहीं है रंच भी, अपनी अपनी राह।
मुँह तो केवल एक है, आह करे या वाह।।
मंचों की चिंता नहीं, कवि हूँ भाँड़ न मित्र।
भगीरथ- सी पीर है, अब तो दपेट दो तुम
विह्वल व्यथा अधीर है, अब चपेट दो तुम
ये व्याधि ही परिधीर है, अब झपेट लो तुम
बस तेरी जटा में ही, बँध कर रहना है मुझे
अपने उस एक लट को भी, लपेट लो तुम
जब जन्मा ढोल बजे घर में
फिर मातम इक दिन छाएगा,
जो जीवन हँसता था जग में
खामोश कहीं खो जायेगा !
बहुत दिनों पर आई आज
इस पनघट पर मेल हुआ था,
हँसी - खुशी का खेल हुआ था।
साँझ हुई, पनघट के साथी
अपनी - अपनी राह चल दिए।
मैं पनघट को छोड़ ना पाऊँ,
अपना नाता तोड़ ना पाऊँ।
ये जो पत्तों का बिछौना है
दरअसल
हरेक फूल को
नसीब नहीं होता।
सूख कर गिरना
और
जमीन में
खाद हो जाना
एक सच है
लेकिन
रोज असंख्य फूल टूटते हैं
आत्मकथ्य .....
आज बाल दिवस है
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
भारतरत्न स्वर्गीय पं. जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिन
अनन्त यादें समर्पित
आदरणीय यशोदा मेम,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना ब्लॉग को "आवारा सा दिल कहीं का" को इस अंक में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
सभी साझा की गई रचनाएं बहुत ही उम्दा है सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां ।
सादर ।
हटाएंआभार,
लिखते रहिए
सादर
सुप्रभात! सुंदर कहानी तथा सभी रचनाकारों को बधाई, हृदय से आभार मुझे आज के अंक में शामिल करने हेतु !
जवाब देंहटाएंआभार,
हटाएंक्या लिक्खा जाए
अनीता निहलानी या फिर
अनीता सचदेव
सच बताइएगा
कौन सा मायका है
कौन सा ससुराल
नितान्त व्यक्तिगत प्रश्न है
पुनः आभार
सादर
बहुत सुंदर, पठनीय अंक।
जवाब देंहटाएंपढ़ती हूं सारे लिंक्स पर जाकर ।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 💐💐
आभार
हटाएंकहानी जरूर पढ़िएगा
काफी से अधिक लम्बी है
अगले अंक में क्लाइमेक्स है
सादर
अति सुन्दर कथा प्रवाह। समापन की प्रतीक्षा...
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक सँजोए हैं आदरणीया दीदी। मेरी रचना को पाँच लिंकों में स्थान देने के लिए सादर आभार। बहुत समय बाद कुछ लिखा ब्लॉग पर। पता नहीं क्यों, नीरसता ने घेर रखा है। अब नियमित होने की कोशिश करूँगी।
जवाब देंहटाएंमेरे शिव... लगाया गया चित्र हृदयाभिराम है। हार्दिक आभार पूर्णता प्रदान करने के लिए। अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात दीदी,
हटाएंआभार,
सोमवार का अंक ,
अब आदरणीय संगीता दी के जैसा लगा
अगला अंक वे लगाएंगी
सादर
सच तो ये है कि प्रतिदिन का अंक स्वयं में अनूठा होता है पर स्नेहिल पाठकों की अल्प उपस्थिति और संवादहीनता से उसके अनूठेपन में अतिरिक्त ऊष्मा समाहित नहीं हो पाती है। किन्तु आप सभी चर्चाकारों को कृतज्ञतापूर्वक हार्दिक नमन प्रतिदिन के लिए।
हटाएंबहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर धारावाहिक कथा के साथ अत्यंत भाव-पूर्ण और हृदयस्पर्शी रचनाओं से सजी प्रस्तुति के लिये बधाई और आभार प्रिय दीदी। बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन।बाल दिवस पर उनका स्मरण बहुत मायने रखता है।वे बच्चो को बहुत प्यार करते थे।उनकी बचपन के साथ इस अनूठी आत्मीयता ने उन्हें सदैव के लिए बच्चों के साथ जोड़ दिया।आज के दिन बरबस अपने स्कूल के वे दिन स्मरण हो आते हैं जब तिरंगे के स्टिकर सीने पर चिपका कर शान से स्कूल के बाल मेले में घूमते थे।बाल दिवस उन्ही यादों को ताजा कर देता है।सुन्दर रचनाओं के मेधावी रचनाकारों को सस्नेह आभार और शुभकामनाएँ।सभी को बाल दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।कहानी की समापन किश्त का इंतज़ार है 🙏🙏
जवाब देंहटाएंसुन्दर धारावाहिक कथा के साथ अत्यंत भाव-पूर्ण और हृदयस्पर्शी रचनाओं से सजी प्रस्तुति के लिये बधाई और आभार प्रिय दीदी। बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन।बाल दिवस पर उनका स्मरण बहुत मायने रखता है।वे बच्चो को बहुत प्यार करते थे।उनकी बचपन के साथ इस अनूठी आत्मीयता ने उन्हें सदैव के लिए बच्चों के साथ जोड़ दिया।आज के दिन बरबस अपने स्कूल के वे दिन स्मरण हो आते हैं जब तिरंगे के स्टिकर सीने पर चिपका कर शान से स्कूल के बाल मेले में घूमते थे।बाल दिवस उन्ही यादों को ताजा कर देता है।सुन्दर रचनाओं के मेधावी रचनाकारों को सस्नेह आभार और शुभकामनाएँ।सभी को बाल दिवस की बधाई और शुभकामनाएं।कहानी की समापन किश्त का इंतज़ार है 🙏🙏
जवाब देंहटाएंआभार सखी
हटाएंसादर