नमस्कार ! आज करीब एक माह पश्चात यहाँ आना हुआ ........ ब्लॉग जगत की सैर करते हुए एक ही डायलॉग बोलने का मन हुआ कि ----- " इतना सन्नाटा क्यों है भाई " ..... ऐसा लग रहा कि लोगों ने ब्लॉग पर लिखना ही शायद छोड़ दिया है या धीरे धीरे सब चेहरे की किताब ( फेसबुक ) में शामिल हो गए हैं .... खैर ...... प्रयास किया है इस सन्नाटे को तोड़ने का ........लायी हूँ कुछ नयी पुरानी तहरीरें .... शायद पसंद आयें ........
इस लोक में भ्रमण करते हुए पारलौकिक अनुभव यदि मिले तो कैसा अद्भुत संजोग होगा ? ...... वैसे मेरा भी मानना है कि ऐसे अनुभव होते हैं .....ऐसे अनुभव की साक्षी मैं स्वयं भी रही हूँ .
पारलौकिक अनुभव
बस तभी से भोलेनाथ जपने लगी। मेरे प्रत्येक कठिन समय में भी उन्होंने मेरी उँगली थामे रखी और न जाने कितने अनुभव कराये, कभी शिशु भाव से तो कभी मित्र भाव से ... कभी-कभी तो मातृ भाव भी। मुझे लगता कि मुझको तो देवा प्रत्येक कठिनाई से निकाल लायेंगे और सारी तीक्ष्णता स्वयं पर ले लेंगे, परन्तु मैं पीड़ित होती थी कि यदि मैं इतनी परेशान हो जाती हूँ तो उनको कितना कष्ट पहुँचता होगा।
आत्माओं की बात पढ़ती हूँ तो बहुत रोमांच हो आता है , ऐसा भी जाना समझा है कि आत्माएँ अपने परिजनों की आत्मा को लेने आती हैं ...... शायद ऐसा ही कुछ रहा हो और निवेदिता जी को इस तरह का अनुभव हुआ हो ...... लोग इस लोक से परलोक जा कर भी रिश्ते निभाते हैं ,जब कि यहाँ रहते हुए कौन कितने रिश्ते संभालता है ये सोचने की बात है ........ इसी पर आइये पढ़ते हैं दो कवितायेँ .......
शीर्षक एक है लेकिन लेखक और विषय वस्तु अलग अलग .....
रिश्ते
जितना बूझूँ, उतना उलझें
एक पहेली जैसे रिश्ते।
स्नेह दृष्टि की उष्मा पाकर,
पिघल - पिघलकर रिसते रिश्ते।
मेरे रीसायकल बिन में
बहुत से टूटे हुए रिश्ते हैं,
कुछ मैंने तोड़ दिए थे,
कुछ ग़लती से डिलीट हो गए.
अब रिश्ते डिलीट हों या न हों , लेकिन आज कल बहुत कुछ ज़िन्दगी से डिलीट हो जाता है अचानक ही ..... जब आर्थिक मंदी हो और नौकरियों पर अचानक गाज गिरे तो कैसा अनुभव होता है उसकी बानगी इस लघुकथा में देखिये .
“मंदी”
“कैसे हो ? बहुत दिन हुए तुमसे बात नहीं हुई ?
हाल - चाल.., ठीक -ठाक ?” आदित्य के फ़ोन उठाते ही दूसरी ओर से उसके मित्र अनुज ने कुशल - क्षेम पूछी ।
कितना कठिन है ऐसी भयावह स्थिति को सहना .....वैसे तो बहुत कुछ जानते समझते भी हम लोग कितनी गलतियाँ करते हैं बिना यह सोचे कि आने वाली पीढ़ी को कितना सहना पड़ेगा ? हमारे एक ब्लॉगर साथी हैं जो प्रकृति से जुड़े हुए हैं , वो मानव को चेता रहे हैं .... काश उनकी बात सब तक पहुँच सके ....
हम जिंदा हैं
परीक्षा
बेटा ! ये जो मेज पर प्लेट में धुले हुए, दो सेब रखे है, जाओ एक दादी माँ को दे दो एक तुम खा लेना ।” शगुन ने बेटे से कहा ।
बेटे ने सेव उठाया और चलते-चलते.. दाँतों से कुतरना शुरू कर दिया दूर बैठी, दादी ने ये दृश्य देखा और ज़ोर-ज़ोर से बड़बड़ाने लगीं ।
कभी कभी बच्चे निःशब्द कर देते हैं न ? ऐसे ही निःशब्द कर देती हैं कुछ कविताएँ / रचनाएँ ...... ज़िन्दगी में बहुत कुछ विरोधाभास होता रहता है लेकिन उसे साधना भी आना चाहिए .....
म्यान
ये म्यान मेरा है
उसकी अपनी मजबूरियां है
तो फिर वायदा - कायदा को
तोड़-ताड़ करने में
कुछ जाता भी नहीं है
ज्यादा चिढेगा वो , भागेगा
और इस खोखले म्यान को तो
खाक होना ही है |
अब मयान में दो तलवार आयें या न आयें लेकिन काव्य की एक विधा ऐसी ज़रूर है जिसमें सोच दो तरह से होती है लेकिन जवाब अलग ही होता है ..... एक झलक आप भी देखें ....
हर पल मेरी लट उलझाए
चूनर मेरी ले उड़ जाए
फिरता वो चहुँ ओर अधीरा
को सखी साजन ?
इस विधा में सखियों का संवाद चलता है ....... हालांकि आज तो आपस में संवाद ही कहाँ हो पाता है ? सब बहुत व्यस्त हैं ? पर किन कामों में व्यस्त हैं ये नहीं पता ....... ऐसे ही भावों को समेटा है इस रचना में ....
बैठे ठाले
स्वेटर की तो बात दूर हैं
घर के काम लगे भारी
झाड़ू दे तो कमर मचकती
तन पर बोझ लगे सारी
रोटी बननी आज कठिन है
बेलन छोड़ कलाई से।।
ये व्यंग्यात्मक रचना को पढ़ थोडा विचार कर लें कि क्या यही सच है? हो सकता है कि कुछ के लिए तो सच ही होगी ......चलिए ज़िन्दगी की एक और सच्चाई से रु -ब - रु करवाती हूँ .....
सादर नमन
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
आप आई
बहार आई
आभार
सादर
आभार यशोदा ।
हटाएंबेहतरीन सूत्रों से सजी बेहतरीन प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आ. दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मीना ।
हटाएंआभार आपका संगीता जी...। रचना को मान देने के लिए आभार... शानदार प्रस्तुतिकरण।
जवाब देंहटाएंसंदीप जी आभार ।
हटाएंउम्दा हलचल
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार विभा जी ।
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति. मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद ।
हटाएंसुंदर -सार्थक हैं सभी लिंक्स |
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ।
हटाएंआदरणीया मैम, सादर प्रणाम। आज इतने दिनों बाद आपकी प्रस्तुति पढ़ कर आनंदित हूँ। सदा की तरह विविधता से भरी हुई प्रेरक और आनंदकर प्रस्तुति। आज की प्रस्तुति जीवन के कई रूपों और वास्तविकताओं को समिति हुई बहुत ही सशक्त प्रस्तुति है, उस पर आपकी टिप्पणियां और संवाद का तरीका चार चांद लगा देता है। आप जब भी प्रस्तुति देतीं हैं, ऐसा लगता है जैसे सामने बैठ कर हर एक रचना पढ़ कर सुना रही हों।पुनः प्रणाम आपको, साथ ही एक अनुरोध भी, मैं ने एक नया ब्लॉग शुरू किया है, चल मेरी डायरी। कृपया उस पर आये एयर अपना आशीष दें। यह एक कृतज्ञता डायरी ब्लॉग है। काव्यतरंगिनी भी चालू है, उस पर सिर्फ कविताएं और कहानियाँ डालूंगी।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता ,
हटाएंबहुत समय बाद पुनः तुमको देख कर अच्छा लगा । डायरी वाला ब्लॉग घूम आयी हूँ । अच्छा प्रयास है ।
प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।
अत्यंत सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल संगीता जी ! मेरी रचना को आपने इसमें स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार ! सप्रेम वन्दे !
जवाब देंहटाएंसाधना जी ,
हटाएंप्रस्तुति पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
यह सच है कि ब्लोग्स लिखना लगभग बंद सा हो गया है. इसकी एक वजह शायद यह भी है कि फ़ोन पर ब्लोग्स लिखना थोडा मुश्किल काम हो जाता है. हालाँकि मैंने देखा है कि अब नए तरह के ब्लोग्स आ रहे हैं. आपने इसे बचाए रखा है कितना सुखद है यह. आपकी मेहनत और लगन को सलाम
जवाब देंहटाएंफिर भी कुछ ब्लॉगर्स ने ब्लॉग को जिलाया हुआ है । मुझे तो आज भी लगता है ब्लॉग जैसा कोई प्लैटफॉर्म नहीं । सराहना हेतु आभार ।
हटाएंबहुत सुंदर रचना संकलन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार ।
हटाएंसच कहा आपने संगीता जी ब्लॉग जगत में अनावृष्टि या फिर पतझर सा मौसम है।
जवाब देंहटाएंफिर भी आप जैसे परिश्रमी प्रबुद्ध लोगों ने बहार को थाम कर रखा है।
आपकी सार्थक टिप्पणियां व भावों के साथ हर रचना बहुत आकर्षक लगी।
सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को आपकी विशेष प्रस्तुति में जो मान मिला उसके लिए अभिभूत हूँ ।
सादर आभार।
सस्नेह।
कुसुम जी ,
हटाएंढूँढ़ लायी हूँ आपकी टिप्पणी ।
एक एक प्रतिक्रिया मनोबल बढ़ाने वाली होती है । मैं तो इस पतझर के मौसम को बदलने का प्रयास मात्र कर रही हूँ लेकिन ये तभी बदलेगा जब सब ब्लॉगर्स प्रयास करेंगे । हवा का थोड़ा ठंडा झोंका मिलता रहना चाहिए ।
सराहना हेतु आभार ।
प्रिय दी,
जवाब देंहटाएंआपके चिर परिचित अंदाज़ के सम्मोहन से खिंची चली आयी हूँ।बहुत दिनों बाद बहुत सारे ब्लॉग पर गयी।
सभी रचनाएँ बहुत अच्छी है दी।
रचनाओं के साथ लिखी आपकी विशेष टिप्पणी आपके द्वारा संयोजित हर अंक को विशेष बनाती है।
अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में।
सप्रेम
प्रणाम दी।
मुझे नहीं मालूम था कि मुझे सम्मोहन की कला भी आती है । 😄
हटाएंप्रस्तुति सराहने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
एक महीने बाद हलचल में ही नहीं सभी ब्लॉग में हलचल महसूस हुई । उत्कृष्ट लिंको से सजी शानदार प्रस्तुति आपकी विशेष प्रतिक्रिया से और भी पठनीय हो जाती है ...मेरी पुरानी रचना को भी मंच प्रदान कर मेरे ब्लॉग में भी हलचल हेतु हृदयतल से धन्यवाद एवं आभार आपका।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।
ब्लॉग जगत में हलचल रहनी चाहिए । यदि थोड़े से प्रयास से हलचल हुई है तो मेहनत सार्थक हुई । आभार ।
हटाएंआदरणीया संगीता दी,
जवाब देंहटाएंआपकी हर प्रस्तुति की तरह बेहतरीन है आज का अंक भी ! कुछ कारणों से आज का पूरा अंक पढ़ नहीं पाई हूँ, परंतु रचनाओं के अंश उन्हें पढ़ने को आकर्षित कर रहे हैं। ब्लॉग जगत में पहले जैसी चहल पहल नहीं रही इसका कारण भी हम ब्लॉगर्स ही हैं। कुछ नया लाना होगा ताकि पुनः पहले वाला माहौल लौट सके।
मेरी आँखों में कुछ तकलीफ आ गई है, इलाज चल रहा है लेकिन पढ़ने का मोह ना छूटना है, ना छूटेगा। अभी देखा, मेरी रचना पर कई टिप्पणियाँ आई हैं, पाँच लिंको का अपना एक अलग ही स्थान है ब्लॉग जगत में। अधिकांश लोग यहीं से अन्य ब्लॉग्स तक पहुँचते हैं। सभी का आभार ! आपका तो विशेष आभार संगीता दीदी !
प्रिय मीना ,
हटाएंआंखों का ध्यान रखो , बहुत बार आंखों में चुभन महसूस होने लगती है ।
वैसे सच है पढ़ने का मोह नहीं छूटता । मैं भी इस दौर से गुज़र रही हूँ ।। सराहना हेतु धन्यवाद ।
प्रिय दीदी, 2017 में जब ब्लॉग जगत में प्रवेश किया था एक अलग तरह का रोमांच था भीतर।पाठकों का उत्साह वर्धन और स्नेह दिल बाग-बाग कर देता था।कहीं न कहीं वो वाही-वाही बहुत कुछ लिखवा गयी वहीं सृजन के लिए घातक भी सिद्ध हुई।आजकल पाठकों की उदासीनता देखकर लिखने का उत्साह जाता रहा है तो दूसरी व्यस्तताएँ भी हावी है।मुखपोथी के व्यर्थ ने भी सृजन को लील लिया।पर यदि उसके कुछ ग्रुपों में रचनाएँ ना साझा करें तो ब्लॉग पर ताला ही पड़ जाये।
जवाब देंहटाएंखैर भीतर यही कामना है कि ब्लॉग के उस स्वर्णिम दौर की वापसी हो।सभी लिखें और दूसरों को पढें, प्रोत्साहित भी करें।यूँ इल्जाम ये भी आता है कि ब्लॉग पर-- मैं तुझे सराहूँ तू मुझे सराहे-- का ही चलन रह गया है ----' यही सही , पर अनगिन अनमोल रचनाएँ इसी के चलते अस्तित्व में आई हैं।इसमें कुछ गलत नहीं।आपकी प्रस्तुति आज भी कमाल है।निवेदिता जी और ओंकार जी की रचनाओं ने स्तब्ध कर दिया।बाकी नयी पुरानी रचनाओं के सभी प्रबुद्ध रचनाकारों को सादर नमन।आपको हार्दिक आभार और प्रणाम 🙏
प्रिय रेणु ,
हटाएंवाह वाही यदि सच्ची हो तो हमेशा सृजन के लिए लाभकारी होती है । संतुलित टिप्पणियां मार्ग को अवरुद्ध नहीं करतीं । यदि कोई आपके लेखन में सुधार के लिए त्रुटि बताए तो उन्हें सकारात्मक रूप से लेना चाहिए । कम से कम मैं तो लेती हूँ । जहाँ मुझे लगता है कि मेरी बात को सही परिपेक्ष्य में लिया जाएगा ,वहीं कुछ सुधारने की बात करती हूँ । अन्यथा बिना कुछ कहे निकल जाती हूँ ।
मुखपोथी का आविर्भाव 2011 में हुआ था । उस समय ब्लॉग जगत खूब फल - फूल रहा था । हालांकि एग्रीगेटर का अभाव हो गया था फिर भी सब अपने अपने प्रयास से ब्लॉग तक पहुँचते थे । लेकिन एक वर्ष में ही फेसबुक ने ब्लॉग के महत्त्व को कम कर दिया ।
ब्लॉग में ये बात कि मैं तुम्हें सराहूं , तुम मुझे तो यह तो हर जगह ही चरितार्थ होती है । मेरे विचार से तो यह एक स्वस्थ परंपरा है । लेन देन हर जगह है । मुझे इसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती ।।
नया सृजन करती रहो । समीक्षा में कर दूँगी 😆😆😆
सस्नेह
समीक्षा मैं कर दूँगी ।
हटाएंमेरी पुरानी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए आभारी हूँ प्रिय दीदी।जो स्नेही पाठक ब्लॉग तक पहुँचे उनको सादर प्रणाम और आभार 🙏
जवाब देंहटाएंमैंने टिप्पणी की थी पर अभी नहीं दिख रही एक बार स्पेम में देख लें कृपया।
जवाब देंहटाएंआपकी सुंदर प्रस्तुति हर ब्लॉग की सार्थक समृद्ध रचना पर पहुंचने का आधार बनती है उसी क्रम में...
जवाब देंहटाएंनिवेदिता जी का आलेख..अलौकिक शक्ति पर गहन विश्लेषण।
मीना शर्मा जी की..रिश्तों की सच्चा अर्थ समझती बहुत सुंदर सराहनीय रचना ।
ओंकार जी की रिश्तों पर मार्मिक अभिव्यक्ति।
मीना जी की.. आज की जटिल समस्याओं के परिदृश्य का बारीक विश्लेषण.. सामयिक लघुकथा ।
संदीप जी की.. प्रकृति और पर्यावरण पर गहन चिंतन के उपरांत निकली रचना ।
सुधा जी का.. स्त्री मन के घर्षण पर संवेदना से परिपूर्ण उत्कृष्ट आलेख ।
अमृता जी की जीवन संदर्भ पर गहन अभिव्यक्ति।
साधना वैद जी की रोचकता लिए सुंदर कहमुकरियाँ।
कुसुम जी की.. आज के परिदृश्य पर बहुत ही रोचक, सुंदर रचना।
शुभा जी का स्त्री जीवन के चिंतनपूर्ण विषय पर हृदयस्पर्शी लेखन ।
रेणु जी की जीवन में निष्णात भाव जगाती सुंदर रचना ।
श्वेता जी की.. बसंत से पहले ही बसंत के आमद का स्वागत करती सुंदर रचना
विश्वमोहन जी की..जीवन संदर्भ पर गहन चिंतनपूर्ण रचना, के साथ ही मेरी लघुकथा को मन देने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
ब्लॉग समाज का आइना है। चिट्ठाकारों के अचानक दूर जाने से रिश्ते की मंदी सन्नाटे के रूप में पसर गई है। लेखनी रूपी तलवार अपने म्यान में विश्राम ले रही है। मौन के इस परीक्षा काल में 'हम जिंदा हैं ' की उद्घोषणा करते हुए थमी कलम को गति प्रदान करने की चेष्टा करता यह अंक आज अखंड सौभाग्य के पलाश रूप में चिट्ठाकारों के चमन में चमत्कृत हुआ है। संगीता जी के इस स्तुत्य प्रयास को शत शत नमन।
जवाब देंहटाएंकभी लेखक की कलम थम जाती है,कभी पाठक की नज़रें कहीं और जम जाती हैं।
जवाब देंहटाएंलेकिन संगीता जी,आप जैसे साहित्य प्रेमियों के प्रयास से इन दोनों में फिर से जान आ जाती है!!व्यस्तता की वजह से ब्लॉग जगत थोड़ा उपेक्षित हो जाता है, लेकिन जब भी पढ़ती हूँ तो खुद को धिक्कारती हूँ,कि क्यों नहीं समय निकालती।
इतनी सुंदर रचनाओं का संकलन किया है आपने।रिश्तों के अलग अलग आयाम को छूती रचनाएं। आपको नमन।,🙏🙏