।।प्रातः वंदन।।
स्वर्ण-कलश निकल आया री !सखी, स्वर्ण-कलश नभ पर छाया री !
नर्तन करते, द्रुम-तृण अविरल,
नभ नील सुरभी रस आह्लादित
संवेदन मन में है, रवि नभ में,
उज्ज्वल प्रकाश लहराया री !
सखी, स्वर्ण-कलश उग आया री !!
लावण्या शाह
बुधवारिया प्रस्तुति की आगाज..✍️
को है, लेकिन शून्यता में विलुप्त होने
से पहले बहुत कुछ याद आने
लगे हैं, सुबह सवेरे, धीरे
से दरवाज़ा खोल
कर, सावरक..
हर दिवस की आस उजड़ी
दर्द बहता फूट थाली
अब बगीचा ठूँठ होगा
रुष्ठ है जब दक्ष माली।
फड़फड़ाता एक पाखी
देह पिंजर बैठ भोला..
🔶🔶
कुछ भाव बस यूँ ही.....
खिल उठते हैं
गुलाबी फूलों से सपने
मदिर मधुर एहसास
होने का तेरे
उतर आता है
🔶🔶
हताश-निराश युवाओं को लिंकन की जीवनी जरूर पढनी चाहिए
आज के युवा जो किसी कारणवश अपने लक्ष्य से दूर रह हताश हो बैठ जाते हैं, ज़रा सी असफलता मिलते ही तनावग्रस्त हो अपनी जान तक देने पर उतारू हो जाते है, जो समझ नहीं पाते कि एक हार से जिंदगी ख़त्म नहीं हो जाती,?
🔶🔶
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंअद्वितीय अंक
बहुत दिनों बाद लिंकन जी के बारे में पढ़ूंगी
आभार
सादर
असाधारण अंक, मुझे स्थान देने हेतु आपका असंख्य आभार, नमन सह ।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति पम्मी जी सभी रचनाएं पठनीय सार्थक भाव लिए।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों का हार्दिक अभिनन्दन।
मेरी रचना को पाँच लिंक पर स्नेह देने के लिए हृदय से आभार आपका ।
सादर सस्नेह।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचनाओं का संकलन
जवाब देंहटाएं