मीरास : अरबी [संज्ञा स्त्रीलिंग] शब्द; जिसका अर्थ बपौती, वह धन संपत्ति जो किसी के मरने पर उसके उत्तराधिकारी को मिले वंश-परंपरा के गुजारे के लिए.... प्रयोग के आधार पर ये शब्द भिन्न-भिन्न अर्थ प्रकट कर सकते हैं....
निंदोपाख्यान
"राग दरबारी साध रहे हो या भांड दरबारी हो रखा है•••!"
'साहबे मीरास' थे पहले कभी,
आजकल 'भांड' होते जा रहे हैं।
हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
नैन साहब - पहले तमाम अखबारों में चित्रों के लिए भरपूर जगह रहती थी लेकिन अब अखबारों में वैसे चित्र नहीं छपते। चित्रों को अधिकाधिक स्थान देने वाली तमाम पत्रिकाएँ कभी की बंद हो गई। मोबाइल में कैमरे आने के बाद कला छायांकन का काम संकट में पड़ गया है। मोबाइल फोटोग्राफी के अनियंत्रित विस्तार ने उत्कृष्ट एवं कलात्मक छायांकन को एक बारगी ही हाशिये पर धकेल दिया है। अब कला मिशन न होकर व्यवसाय बन गई है किंतु मेरी दृष्टि में कला व्यवसाय की वस्तु नहीं है। दरअसल यह हमारी सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आत्मिक सुख के लिए है।
वे तल्ख लहजे में कहती हैं कि अगर भाई उनसे रिश्ता खत्म करना चाहते हैं, बेशक खत्म कर लें. ऐसे भाई किस काम के, जो अपनी बहनों का हक छीनकर चैन-सुकून की जिन्दगी बसर करते हैं. बहनों को तिहाई देने के मसले पर इनके भाइयों का कहना है कि वालिद की मौत के बाद उन्होंने अपनी बहनों की शादी की है. इसलिए अब तिहाई देने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. इन चार बहनों जैसी न जाने कितनी ही बहन-बेटियां हैं, जिन्हें उनके हक से महरूम रखा गया है.
इतिहासविद् डॉ. रहीस सिंह अपनी पुस्तक मध्यकालीन भारत में लिखते हैं कि “मध्यकालीन दक्कन की मीरासी व्यवस्था भूमि-व्यवस्था में सबसे प्रमुख और प्रथम श्रेणी की थी । यह कृषक स्वामित्व की व्यवस्था थी । भू-व्यवस्था के तहत मीरास का तात्पर्य उस भूमि से है जिस पर व्यक्ति का एकछत्र पुश्तैनी अदिका हो । मराठी दस्तावेजों में इसका प्रयोग ऐसे किसी पुश्तैनी और हस्तान्तरित अधिकार के लिए किया गया है जिसे व्यक्ति ने उत्तराधिकार में खरीदकर या उपहार द्वारा प्राप्त किया हो।”
इस लिए मृतक की बेटी मृतक की माँ की तुलना में उसकी विरासत में अधिक भाग पाती है हालांकि दोनों ही स्त्री हैं। इसी तरह मृतक की बेटी मृतक के बाप की तुलना में अधिक हिस्सा पाएगी भले ही लड़की अभी इतनी छोटी हो कि दूध पीती है और अपने बाप को भी पहचानने की आयु को न पहुंची हो यहाँ तक कि अगर मृतक के धनदौलत बनाने में उसके बाप की सहायता भी शामिल रही हो तब भी मृतक के बाप को मृतक की बेटी की तुलना में कम भाग ही मिलेगा। केवल यही नहीं बल्कि उस समय अकेले बेटी आधा धन लेगी।
इस बेना पर ज़्यादा तर मरहलों में मर्द ख़र्च करने वाला और औरत इख़राजात लेने वाली होती है, इसी वजह से इस्लाम ने मर्द मर्द के हिस्से को औरत की ब निस्बत दो गुना क़रार दिया है ता कि तआदुल बर क़रार रहे और अगर औरत की मीरास, मर्द की मीरास से आधी हो तो यह ऐने अदालत है और इस मक़ाम पर मुसावी होना मर्द के ह़ुक़ूक़ पर ज़ुल्म हैं। इसी बेना पर हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस सलाम ने फ़रमाया:माँ बाप और औलाद के इख़राजात मर्द पर वाजिब हैं।
'साहबे मीरास' थे पहले कभी,
जवाब देंहटाएंआजकल 'भांड' होते जा रहे हैं।
एक नया शब्द मिला
सदा की तरह लाजवाब अंक
सादर वंदे
पता है दी, हमारे यहाँ महाराष्ट्र में ये एक सरनेम होता है - मिरासदार। अब पता चला कि ये लोग कुछ खास रहे होंगे, किसी बपौती के मालिक रहे होंगे। बाकी पूरा अंक पढ़ने के बाद। सादर।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंएक नयी जानकारी मिली दी।
जवाब देंहटाएंविषयाधारित रचनाओं का विस्तृत विश्लेषात्मक संकलन है आज का अंक।
हमेशा की तरह अलग प्रस्तुति।
प्रणाम दी
सादर