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शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

3839.....विष तो आख़िर विष होता है ...

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
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पता है इस दुनिया को सुनाई कम और दिखाई ज्यादा देता है। आत्ममुग्धता से भरे हुए लोग बोलने में इतने मशरूफ़ होते है कि सुनना पसंद नहीं करते हैं शायद इसलिए गीता में कहा गया है-
 "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। 
  मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
   अर्थात् कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, कर्म के फलों में कभी नहीं... इसलिए कर्म को फल के लिए मत करो।
   
वैसे भी किसी उम्मीद या फल की आशा सदैव हमारे जीवन के दुःख और असंतोष का कारण बनती है।
हमें तो बस इतना याद रखना है कि हमारे कर्म ही हमारी पहचान और हमारा चरित्र हैं।
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आइये दुनिया को देखते हैं
हमारे आज के रचनाकारों की दृष्टि से 


खुद को स्थापित करना
स्वयं को सर्वज्ञ समझना
है पीले पत्तों की भूल
परंपराओं की रूढ़ियां
और उनका अहम
कोंपलों में भर देता है रोष
टकराव और दूरियों के जनक
उदारवादी बनो
समय के साथ बहो
स्वीकारो सत्य
ये संसार किसी का नहीं


तन कातिक
मन अगहन
बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुँआर
जैसे कुछ बो रहा
रहने दो
यह हिसाब
कर लेना बाद में
फूले तो...


मैं मौन था, भाषा से अनभिज्ञ नहीं 
वे शब्दों के व्यापारी थे, मैं नहीं 
मुझे नहीं दिखता!
वह सब जो इन्हें दिखायी देता  
नहीं दिखने के पैदा हुए भाव से 
मैं पीड़ा में था, परीक्षित  मौन 


भगवा हो या हरे रंग का
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है


इन दिनों, मुझे एक परेशानी यह हो गई है। गला एकदम जाम रहता है। आवाज ठीक से नहीं निकलती है। पत्नी को इससे काफी परेशानी होती है। जो बोलता हूँ, उसे ठीक से पकड़ नहीं पाती है। किसी बाबाजी से सुन रखा था ¾  मूक होय वाचाल। इसे बुदबुदा देती है, उलटकर वाचाल होय मूक। करुणाकर की कृपा से ही दोनों होता है। एक किताब है – मूक नायक।

और चलते-चलते
अब सकारात्मक बदलाव की बात कैसे छेड़ूँ भला .. समाज में लोगों ने कुछ विषय को इतना निषिद्ध बना दिया है कि वो विषय जीवन के लिए जरूरी होते हुए भी आज भी कुंठा का विषय बना हुआ है। ऐसे में इन जैसे विषयों पर तथाकथित सभ्य-सुसंस्कृत लोग सार्वजनिक तौर पर चर्चा करने पर भी सकपकाते या हिचकते हैं। जबकि हर परिवार की युवतियों-महिलाओं को इनसे हर माह गुजरना पड़ता है। मानव सृष्टि को गढ़ने की प्रक्रिया का ही हिस्सा है ये .. पर आज भी इस पर कुंठा और निषेध का 'टैग' चिपका हुआ है .. कुछेक नगण्य संख्या में उपलब्ध व्यापक सोच वाले समाज को छोड़ कर .. "


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 आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।


6 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! .. सुप्रभातम् सह नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपनी प्रस्तुति में स्थान देकर एक सकारात्मक सोच वाली घटना को आगे प्रेषित करने के लिए .. बस यूँ ही ...
    आज की भूमिका यह जताने के लिए काफ़ी है कि हम स्वयं को मौखिक रूप से भले ही कर्मकांड करते हुए तथाकथित सनातनी कह लें, पर वास्तविक रूप से उन आध्यात्मिक ज्ञानों से हम कोसो दूर हैं .. शायद ...
    आज प्रत्येक रचना के पूर्व आपकी चंद अर्थपूर्ण पँक्तियों वाली रचना की सार से रूबरू कराती भूमिका की अनुपस्थिति खल रही है .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  2. शुभ प्रभात सखी
    बदलाव आवश्यक
    फेसबुक व अन्य जगह पर
    मित्रों को टैग करने की सलाह है
    अच्छी प्रस्तुतियां प्रचार-प्रसार मांगती है
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुंदर सराहनीय भूमिका।
    सृजन को स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
    सभी को बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर और सार्थक रचनाओं का संकलन है। मुझे शामिल करने के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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