।। प्रातः वंदन।।
"खुला है झूठ का बाज़ार आओ सच बोलें
न हो बला से ख़रीदार आओ सच बोलें।
सुकूत छाया है इंसानियत की क़द्रों पर
यही है मौक़ा-ए-इज़हार आओ सच बोलें।"
क़तील शिफ़ाई
जल्दी जल्दी में आज की प्रस्तुति...आनंद लिजिए बुधवारिय अंक की...
कल देखा था बारिश को जुल्फों पर फिसलते हुए l
हौले से आँचल को लिपट कंगन डोरी बंधते हुए ll
मदमाती सी भींग रही थी दामन की पतवार l
संग पुरबाई झोंकों से कर्णफूल कर रहे थे करताल ll
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सत्य को छोड़कर हम चैन से जी नहीं सकते
असत्य कितना भी मोहक हो
विष में बदल जायेगा
यह जानते हुए उसे पी नहीं सकते ..
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कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों की
चुभन का जवाब दुर्गंध से दे ।
काँटों में खिलना,
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दिल्ली सेवा-विधेयक को लोकसभा ने पास कर दिया और सोमवार 7 अगस्त वह राज्यसभा से भी पास हो गया। लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के बहुमत..
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संस्कारों का कब्रिस्तान बॉलीवुड
हमारा देश अपनी गौरवमयी संस्कृति के लिए ही विश्व भर में गौरवान्वित रहा है परंतु हम पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में अपनी...
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️
असत्य कितना भी मोहक हो
जवाब देंहटाएंविष में बदल जायेगा
शानदार अंक
सादर
असत्य कितना भी मोहक हो
जवाब देंहटाएंविष में बदल जायेगा
शानदार अंक
सादर
सुप्रभात! कतील शिफ़ाई के बयान से सजी भूमिका और पाँच पठनीय रचनाओं के सूत्रों से सजे संक के लिये बधाई, आभार!
जवाब देंहटाएंसुंदर अंक और प्रभावपूर्ण भूमिका
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को अंक में स्थान देने हेतु हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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