।। प्रातः वंदन।।
हम भी कितने गजब प्राणी हैं कि यह जानते हुए भी कि हमारा गुजारा इस प्रकृति के बिना नहीं है फिर भी तमाम तरह की नौटंकी करते हुए हम अपना जीवन जी ही लेते हैं, बहानों का हमारे पास अंबार है, हमें अपने आप को धोखा देना सबसे अधिक आता है, जबकि सबसे कठिन यही होता है, बहरहाल हमें जब प्रकृति में सौदर्य देखना..
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टाईटैनिक के डूब लेने का मुहूरत कहीं ना कहीं तो लिखा होता है
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भले कच्चा-पक्का, रुखा-सूखा खा लेना
भले जैसे तैसे करके घर तू चलना
भले किसी के गाय-बकरी चराना
मगर मेरे भाई दारु नहीं..
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एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो
आ जाना
एक फूल माँगने
ढिबरी की लौ
जैसे लीक चली...
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।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️
बेरहम काली-काली घटा घेर-घेर घनघोर
जवाब देंहटाएंआँधी, तूफाँ साथ लिए करती रहती शोर ।
ऐसा कुछ नहीं इस सावन में
अच्छी प्रस्तुति
सादर
अच्छी रचनाएं
जवाब देंहटाएंआभार पम्मी जी |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
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