उसने तो पानी बनाया था कि प्यास बुझे,
कब सोचा कि बाढ़ आये और आस बुझे.
सादर नमन......
कह दो इन नदियों से इतना उफ़ान न मचाये,
और कह दो इन बादलों से इतना तूफ़ान न लाये,
कई मासूम बेघर हो गयें इस बाढ़ में ऐ खुदा
वो बेचारे परेशान है कि अब किधर जाये.
आदमकद शीशा
मोर मोरनी को रिझा सके?
नृत्यांगना सम्मान पा सके?
बेटी का ब्याह हो सके?
इंसान प्रधानमंत्री बन सके
स्वतन्त्रता का नारा है बेकार"
वयोवृद्ध सीधा-सच्चा,
हो जहाँ भूख से मरता,
सत्तामद में चूर वहाँ हो,
शासक काजू चरता,
ऐसे निष्ठुर मन्त्री को, क्यों झेल रही सरकार।
उस कानन में स्वतन्त्रता का नारा है बेकार।।
लौटना होता है परवाज़ से परिंदों को
आसमान ऊंचाई देता है घर नहीं देता।
मुल्तवी होतीं अदालतें,मंसूख तारीखें,
इंसाफ नहीं मिलता जो डर गया होता।
न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए
लोकतंत्र पर लोक प्रियता का भयंकर दबाव रहता है। इस दबाव को जन-उत्तेजक नेता (Demagogue) लोक लुभावन बातों के सहारे लोक विन्यास में भारी उथल-पुथल मचाकर लोकप्रियता
सुनिश्चित करते हैं, भले ही लोकतंत्र उपद्रव-ग्रस्त हो जाये। कभी-कभार, अपवाद स्वरूप, तथा कथित छोटी मछली बड़ी मछली के गले से बाहर निकलने, निगल लिये जाने से
बच जाये। लेकिन तथा कथित बड़ी मछली तो, आखिरकार बड़ी मछली होती है! ऐसे में बड़ी मछली पूरे तालाब में हरबिर्रो मचा देती है। तालाब में मछलियाँ ही नहीं हम जैसे
घोंघाबसंत भी रहते हैं। इन घोंघाबसंतों की हालत सब से ज्यादा दयनीय हो जाती है।
बिछड़े खेत
बिक गए जो खेत
वे रोते रहे
मेड़ बना बाउंड्री
कंक्रीट बिछे
खेत से उपजेंगे
बहुमंज़िला
पत्थर-से मकान,
खेत के अन्न
शहर ने निगले
बदले दिए
कंक्रीट के जंगल,
धन्यवाद....
शानदार चयन
जवाब देंहटाएंआभार आपका
सादर
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंबेहतरीन संकलन..सारगर्भित रचनाएं
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