शीर्षक पंक्ति: आदरणीया रेखा जोशी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पढ़िए पाँच पसंदीदा रचनाएँ-
था सुहाना बचपन
बेफिक्र मौज मस्ती का आलम
कब आई जवानी कब बीता बचपन
हवा के झोंके सी उम्र निकल गई
वाणी का आदर करें, करें न इससे चोट
अपने जन ही ग़ैर बन, व्यर्थ निकालें खोट
वाणी जोड़े दिलों को, सुख का है आधार
वाणी ही संबल बने, बन जाती है प्यार
वो बचपना
आज कहीं खो गया,
बस्तों के
नीचे दबा लिया लगा।
कंप्यूटर
मोबाईल लत चाटने लगा,
बाल मन
डिजिटल डाटा कब्ज़ाने लगा।
वृद्धाश्रम वालों ने नगद राशि की माँग रखी थी।
तुम्हारी माँ की ज़िद थी कि वृद्धावस्था वृद्धों के संग गुजारेंगे। पहले वृद्धाश्रम
का स्वाद नहीं चखी थी। वहाँ की स्थिति देख जिद पकड़ ली वहाँ से निसंतान वृद्ध को घर
लानी चाहिए।
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उसका सपना तो अब धरा का धरा नहीं रह गया।
हमलोग निसंतान दम्पत्ति को घर ले आने वाले हैं। वे अनाथाश्रम में पले थे। हमारे
साथ रहने से,
वहाँ से मुक्त हो जाने से वृद्धाश्रम ग्रह
गया।
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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