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मंगलवार, 25 जुलाई 2023

3829 इश्क़ में रोज़ वजूहात बदल जाते हैं

 

सादर नमस्कार ..
बोर  हो गया मैं
अपनी देवी जी से
कभी शिव मंदिर
कभी बजरंग मंदिर
तो कभी गणेश मंदिर
ये सावन भी ना
डबल क्यों आता है
खैर खुश रखना है तो
सहना भी होगा
रचनाएं देखिए ....

आग उगलते शब्द स्वयं के

दूजे के लगते अंगार।

आह कराह दिखे बस संगी

निर्मल जल भी लगता खार।

है खटास की नदी बह रही

बीच भंवर में डोले नाव,

ऊपर से आती लहरों का

अपनी धुन पर अपना नर्तन॥






दुशासन के पंजों में
सहमी बेसुध मर्यादा 
सहस्त्र बाहु दुशासनकी 
अट्टहास ,भद्दी टिप्पणियों से
जलती उसकी रूह
पथराई आंखों में 
खौफ का तांडव 
ऐसा भी होगा
सोचा तो न था...??




आपका घूरना, फिर देखना, फिर शरमाना,
देखते देखते ख़तरात बदल जाते हैं.

इश्क़ तसलीम तो कर लेंगे नज़र से पर फिर,
होंठ से कहते हुए बात बदल जाते हैं.




कविता है बड़ी छोटी सी
अर्थ गूढ समझ से बाहर
जब भी गहन अध्यन किया
बड़ा आनन्द  आया |
खेल खेल में ले किताब  हाथ में
पढ़ने का शौक पनपा
धीरे धीरे  बढ़ने लगा 


आज नींद मुझसे खफा सी है, 
क्या मैंने कोई खता की है 
आंखों के बहते पानी की  
क्या कोई दवा भी हैं 





बोधि वृक्ष कहते इसे, पूजन अलग विधान।
दूध धूप दीपक जले, मंत्र का हो अभ्यास।।

दिवस अमावस सोम हो, करते विधि विधान।
परिक्रमा होती फलित, भरता घर उल्लास।।

आज बस इतना ही
सादर

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुनहरी हलचल … अच्छे लिंक्स … आभार मुझे शामिल करने के लिये …

    जवाब देंहटाएं
  2. कई रचनाएं पढ़ आई
    बहुत सुंदर सराहनीय रचनाओं तक पहुंचने के लिए आपका बहुत शुक्रिया आपका आदरणीय।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार। सभी रचनाकारों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹👏👏

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति,सभी रचनाएं उत्तम , रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीय सादर

    जवाब देंहटाएं

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