निवेदन।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 14 जुलाई 2023

3818....अब भी दीपक जल रहा है

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।
-------
प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। मनुष्य के लिए धरती का अर्थ उसके घर का आँगन, आसमान छत, सूरज-चाँद- सितारे उसके लिए दीपक, सागर-नदी पानी के मटके और पेड़-पौधे आहार के साधन हैं। मनुष्य के लिए प्रकृति से अच्छा गुरु नहीं है।
खुला आसमान और विशाल धरती के बीच इंसान प्रकृति का एक अदना सा हिस्सा है। इंसान कितना भी ज्ञान अर्जित कर ले, कितना भी विज्ञान को जान जाये लेकिन प्रकृति हर बार कुछ ऐसा कर जाती है कि हर बार उसके करिश्मे के आगे विज्ञान भी घुटने टेक देता है।
इस दुनिया की सभी नकारात्मक शक्तियां मनुष्य जनित ही हैं। यदि मनुष्य प्रलोभनों, लोभ व स्वार्थ के अंधेरों में न भटकता तो उसे कृत्रिमता पर आधारित जीवन नहीं अपनाना पड़ता। इसी व्यवहार के कारण मानव और प्रकृति के बीच का तारतम्य टूट गया है। परिणामस्वरूप मानवीय विचार, भावनाएँ तथा ज्ञान पारदर्शी न रहकर द्वंद्वात्मक हो गए। अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएँ स्वार्थी मानवीय कृत्यों का दंड ही तो है।
बारिश के मौसम में कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि..।
हमारे शहर में
मानसून के शुरुआत में चंद छींटे और बौछार, उसके बाद तो
पूरा अषाढ़ बीत गया बरखा रानी हमारे शहर 
बरसना भूल गयी है।
घटायें छाती हैं उम्मीद बँधती है कि बारिश होगी पर, बेरहम हवायें बादलोंं को उड़ाकर जाने कहाँ ले जाती हैं,  एक भी टुकड़ा नहीं दिखता बादल का, सूना आसमान मुँह चिढ़ाता है और मन उदासी से भर जाता हैंं।
बहुत चिंतित हूँ, 
 सब कह रहे हैं अभी सावन बीता नहीं  है ,मैं अब भी बेसब्री से बारिश की प्रतीक्षा कर रही हूँ,
खूब झमाझम बरसात हो यही दुआ कर रही हूँ


 इतनी लंबी भूमिका पढ़कर थक गये होंगें
 आइये आज कभी रचनाओं के संसार में -

----///---
दीपक की रोशनी को ज्ञान का प्रतीक माना गया है। पुराणों में दीपक को सकारात्मकता का प्रतीक व हर प्रकार की दरिद्रता को दूर करने वाला भी कहा गया है।
दीपक हमें अज्ञान का अंधकार मिटाकर अपने जीवन में ज्ञान के प्रकाश के लिए प्रेरित करता है। जिस तरह अग्नि गर्माहट और प्रकाश की अपनी विशेषता नहीं छोड़ती। उसी तरह हमें भी दीपक से प्रेरित होकर मुश्किल समय में भी धैर्य के साथ हिम्मत से आगे बढ़ना चाहिए। 

काटता घनघोर तम,

लेकर हथौड़ी ज्योति की।

कसमसाकर निकल आता,

वो सुदर्शन मौक्तिकी।

बंद था जो सीपियों में

एक युग से तिमिर संग,

सज गया माला में शोभित

कंठ में झिलमिल रहा है॥

अब भी दीपक जल रहा है॥


-----
जीवन यात्रा के कुछ मोड़ इतने घुमावदार होते हैं कि आगे बढ़ना बेहद कठिन लगने लगता है किंतु फिर भी अनवरत चलते रहना ही जीवित होने का प्रमाण है।

उस उजले दिन को जो कभी न ढलेगा और न उदय होगा 
- कह न सका "अच्छा तो मैं चलता हूँ" 
इस बीच की स्थिति में अजर हो जाना 
हकीकत में नहीं होना और 
कफ़नों में लिपटी छोटी छोटी उम्मीदों का भार तक दूरियों में बँट जाना   
जीना-मरना भी ना होना 
अकेले बीच में ठहर जाना

------
प्रेम का एक पल ज़िंदगी बदल सकता है
सुकून से भरता है प्रेम तपती दुपहर में भी
ज्यों भींगती हैंं रिमझिम बारिश में नन्हीं चिड़िया 
खिलती हैं बूँदों की छुअन से अधखुली कलियाँ।


पहनती है नहीं, ये तो बता दे,
अंगूठी कब मेरी लौटा रही है.

लचकती सी जो गुज़री है यहाँ से,
लड़ी कचनार की बल खा रही है

------
समय की टिक-टिक अनवरत है
हम नहीं हैं आस-पास ,
जीवन की मुरझती कोंपलें
हमारे बीच का मौन कहना चाहकर भी
ले अलविदा नहीं कह पाए।

हमने ये तय कर लिया था कि
कंधों को आँसुओं का बोझ नही देंगे
क्योंकि छाती का भार काँधे पर रखकर 
जीवन की गाड़ी नही चलाई जाती

---------

एक रोचक कहानी की शुरुआत, जिसमें निश्चित ही अनगिनत 
तथ्यों का वृहद विश्लेषण समाहित होगा।

यूँ तो जाति-धर्म और आर्थिक परिस्थितियों के आधार पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बँटे हुए अपने वर्गीकृत समाज की तरह ही सरकार ने कचरे के यथोचित निष्पादन के लिए कूड़ेदान को भी दो वर्गों में बाँट रखा है। परन्तु मानव समाज अपने शारीरिक ढाँचा में उपस्थित निष्क्रिय 'एपेण्डिक्स' की तरह ही हमारे समाज में बने अधिकांश क़ायदे-क़ानून को निष्क्रिय रखने में ही प्रायः दक्ष दिखता है, जिन वजहों से हम सभी की अंतरात्मा भी हमारे 'एपेण्डिक्स' की तरह ही निष्क्रिय बन चुकी है .. शायद ..

------//////-----

 आज के लिए इतना ही

कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।



10 टिप्‍पणियां:

  1. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को इस प्रतिष्ठित मंच पर अपनी प्रस्तुति में पिरोने के लिए .. आज की भूमिका में प्रकृति और उसकी शक्ति का यथोचित गुणगान, बखान किया है आपने, हम जैसे नास्तिक लोग इसको ही तो विधाता मान कर मन ही मन नमन करते हैं, फूल तोड़ कर मूर्तिपूजन का पाखण्ड नहीं करते .. ख़ैर ! .. बरसात नहीं होने की पीड़ा आपने अपने शहर-राज्य के मद्देनज़र लिखा है, पर मेरे तो वर्तमान शहर-राज्य और उसके आसपास बरसात इतनी ज्यादा हो रही है कि पिछले कई दिनों से प्रशासन ने स्कूल बन्द कर रखा है अगले इस रविवार तक और सोमवार को "हरेला" की राजकिय छुट्टी घोषित है .. पर हम तो ठहरे एक निजी संस्थान के अदना-सा कर्मचारी .. इन छुट्टियों से कये लेना-देना भला ...

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार अंक
    देर हुई
    हुई तो हुई
    भोले बाबा छिमा करें
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. वर्षा पर चिन्तन चिन्ता का कोई असर ही नहीं हो रहा है
    अति विकास का परिणाम
    सुन्दर लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  4. भावपूर्ण हलचल … आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए …

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर समायोजन... मेरी रचना 'आख़िरी बार' को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह!श्वेता ,सुंदर प्रस्तुतीकरण।

    जवाब देंहटाएं
  7. उत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति...
    अप्रत्याशित प्राकृतिक आपदाएँ स्वार्थी मानवीय कृत्यों का दंड ही तो है।
    बारिश के मौसम में कहीं अतिवृष्टि कहीं अनावृष्टि..।
    सही कहा प्रिय श्वेता आपने...यहाँ पंजाब तो इस बार इस अप्रत्याशित दंड को बुरी तरह झेल रहा है ।

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही विचारपरक भूमिका के साथ सुन्दर प्रस्तुति प्रिय श्वेता।प्रकृति से मानव है मानव से प्रकृति नहीं।बहुत अच्छी बातें लिखीं हैं तुमने। वेद पुराण भी मानव और प्रकृति के अक्षुण सम्बंध पर सदा ही पर्याप्त प्रकाश डालते हैं।असल में मानव के अलावा असंख्य दूसरे प्राणी चाहे जलचर हों,नभचर अथवा धरती पर रहने वाले हों,प्रकृति से उतना ही ग्रहण करते हैं जितनी उन्हें जरुरत है पर इन्सान ने पृथ्वी का, आवश्यकता के लिए अथवा अनावश्यक रूप में,दोहन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।सच तो यह कि सही में ये आपदाएँ मानव के कुकृत्यों का ही परिणाम है।असन्तुलन से घरती पर त्राहि त्राहि मची हुई है।आज प्रकृति अपनी तरफ बहुत तवज्जो चाह चाह रही है।इसे फिर से सँवारना होगा दुलारना होगा।तभी शायद कुछ सुधार दिखाई दे।आज की सुन्दर रचनाओं के लिए सभी रचनाकारों बधाई और शुभकामनाएं।तुम्हें हार्दिक आभार इस प्रस्तुति के लिए ❤❤

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रिय श्वेता जी, चयनित रचनाएं निश्चित ही सुंदर और पठनीय हैं। मेरे गीत की पंक्ति को भूमिका में सजी देख अतीव हर्ष हुआ, रचना को इतने लोगों ने पढ़ा। सबकी सार्थक सारगर्भित प्रतिक्रिया ने सृजन सार्थक कर दिया। मनोबल बढ़ाने के साथ साथ आत्मिक खुशी देने के लिए बहुत स्नेहाभार आपका। सभी रचनाकारों को बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  10. आपकी भूमिका सटीक तो है लेकिन हवा बेरहम नहीं होती.....

    दिगम्बर जी की रचना ने ही इस हलचल को लूट लिया है.
    मौन साब की रचना भी खूब रही.

    बाकी मुझ अल्पज्ञ को शामिल करने का रिस्क आपने उठाया सो आभार.

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।




Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...