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बुधवार, 12 जुलाई 2023

3816.. नि:शब्द नहीं होना..

 ।। प्रातः वंदन।।

"गा रहे श्‍यामा के स्वर में कुछ रसीले राग से,

तुम सजावट देखते हो प्रकृति की अनुराग से।

दे के ऊषा-पट प्रकृति को हो बनाते सहचरी,

भाल के कुंकुम-अरूण की दे दिया बिन्दी खरी.."

जयशंकर प्रसाद 

चंद अलंकृत शब्दो से कुछ खिलने का अहसास होता है जिसे समेटने की कोशिशें जारी रखते हुए बुधवारिय अंक में..✍️

पीले रंग की साइकिल 


जीवन एक शांत नदी की धारा की तरह सुचारू रूप से चल रहा है। आज दोपहर को उसने गणेश जी की पाँच छोटी मूर्तियों पर रंग भरना आरंभ किया। महादेव में समुद्र मंथन हो गया है, किंतु अमृत का बँटवारा अभी शेष है। गायत्री के संस्थापक आचार्य राम शर्मा जी की पुस्तक

⚜️

दर्द और दवा .....

मुट्ठी भर दवाएं दर्द मिटा तो सकती हैं, मगर

उस दर्द के कड़वे सबक बाकी रह ही जाते हैं।


यूं हम को लगता है अब चलेंगे सीना तान कर

अनचाहे वक्त की बैसाखी बन ही जाते हैं।

⚜️

ख़ामोश नहीं होना --


ख़ामोशी की वाणी से झनझना जातीं दीवारें 

ख़ामोशी और भी संगीन बेहतर लड़ लें प्यारे ।


नाराज भले हो जाना पर निःशब्द नहीं होना

चुप का वार असह्य बहुत,ख़ामोश नहीं होना 

कह सुन लेना पर ख़त्म ना करना वार्तालाप 

लड़ लेना, झगड़ लेना पर ख़ामोश नहीं होना ।

⚜️

शीर्षक विहीन




वो नज़दीकियाँ जो रिश्ते में ढल न सकी,

दोस्ती जो हाथ मिलाने से आगे बढ़

न सकी, वही चेहरे अक्सर

सवाल करते हैं जो

ख़ुद को जवाब

दे न सके,

⚜️

।। इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

6 टिप्‍पणियां:

  1. नाराज भले हो जाना पर निःशब्द नहीं होना
    शानदार अंक
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. वाक़ई कुछ शब्दों से खिलने का अहसास होता है, प्रसाद की कविता उषा की सुंदरता का बोध कराती है, 'एक जीवन एक कहानी 'को स्थान देने हेतु आभार, अन्य रचनाकारों को शुभकामनाएँ ।

    जवाब देंहटाएं

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