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गुरुवार, 27 जुलाई 2023

3831...पीड़ा जिसकी वो ही जाने...

 शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अभिलाषा चौहान जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

कल दिल्ली में भोर से पहले तेज़ बारिश हुई। ऑनलाइन समाचार पढ़ा: ...भीगी बिल्ली! ग़ौर से पढ़ा तो 'बारिश से भीगी दिल्ली!' दोष नहीं शब्दों का बल्कि है दृष्टि का क्योंकि दिल्ली में डेंगी (प्रचलित नाम डेंगू) और आई फ़्लू तेज़ी से फैल रहा है। सावधानी रखिए।  

गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

आंसू और पसीना परदोनों पानी हैं- सतीश सक्सेना

पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो

पुरुषों की नजरों में,  सब पानी पानी है!

इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये

नारी इन नज़रों में,  बस बच्चे दानी है!

आजा घर परदेशी करती निहोरा

सावन की पिहके पिरितिया पिया 

संवेदना

हालत पतली जीवन जर्जर

पीड़ा जिसकी वो ही जाने

पर हित धर्म की बातें झूठी

सभ्य समाज का लगा मुखौटा

जाने कितनी नींदें लूटी

सुख की सब परिभाषा भूले

हालत पतली जीवन जर्जर....

विजय दिवस

ऋणी शहीदों के सभीरक्षा का लें भार।

व्यर्थ नहीं बलिदान होलेते शपथ हजार।।

 वीरों के बलिदान सेनतमस्तक हैं आज।

उनके ही सम्मान में ,करें नया आगाज।।

*****

फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 


3 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर सारगर्भित अंक..
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की प्रस्तुति में मेरी रचना को शीर्षक पंक्ति के रूप में चयनित करने के लिए आपका सहृदय आभार आदरणीय सादर।
    सभी चयनित रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत-बहुत आभारी हूँ रवींद्र जी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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