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शनिवार, 17 जून 2023

3792...हाँ , याद तो आती है पुराने शहर की ...

शीर्षक पंक्ति :आदरणीया शुभा मेहता जी की रचना से।  

सादर अभिवादन.

रविवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ.

आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

रविवार के लिए ...

धोखा

समय  ने धोखा  दिया

मौसम ने साथ ना दिया फसलें बिगड़ी  

आंधी तूफान ने भी झटका दिया

दी आर्थिक हानि बिना जाने |

मायानगरी...

जहाँ हर तरफ है अफरातफरी 
    गगनचुम्बी इमारतें ..
      किया हमनें भी वहीं बसेरा 
        अच्छा लग रहा है ..
          हाँ , याद तो आती है 
            पुराने शहर की 
             पर ठीक है 

             जीवन में आना जाना 

शायरी | लिख दे मनवा एक कहानी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

ताल, तलैया, पोखर, नदिया, पानी से भीगे हर आखर
राग-द्वेष और दुनियादारी की बातें हों आनी-जानी।

बादल हो कान्हा के जैसा, बरसे तो हर पोर भिगोए
सूखे मौसम के बदले हो,  नन्हीं बूंदों की मनमानी।

सबसे अच्छी माँ ..

अपने पाँव मोड़, 
पूरी चादर में हमें सुलाया
धूप, हवा बारिश में, 
अपने आँचल बीच छुपाया
कठिनाई में धैर्य पिता को, 
सम्बल हर मुश्किल में
अपनेपन से, हिलमिल सबसे, 
जीना हमें सिखाया
जीवन दिया, सँवारा बचपन, 
फिर ले गईं विदा
ममता नेहभरी, वत्सल तुम, 
हम को गई रूला
प्रभु ने दी थी..



तप्त धरा पर बरसों भटके,प्रेम गठरिया  हल्की।
रूठ चाँदनी छिटक गयी है,प्रीत गगरिया छलकी।।
इस पनघट पर घट है रीता,भटके मन बंजारा।
तृषा बुझा दो उर मरुथल की,दूर करो अँधियारा।।
*****
फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 



2 टिप्‍पणियां:

  1. आभार भाई रवीन्द्र जी
    सुंदर रचनाओं का ताना-बाना से
    बुना हुआ आज का ये अंक
    पुनः आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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