शुक्रवार के अंक में आप सभी का स्नेहिल अभिवादन !
भूमिका के रूप में मैं आपको कौन सा मुद्दा दूँ ? पग पग पर मुद्दे ही मुद्दे हैं ...... जानते सब हैं लेकिन सब किनारा करके चले जाते हैं .....शायद खुद से भी आँखें नहीं मिला पाते और मिलाने की हिम्मत भी कैसे करें जब संवेदनहीनता की पराकाष्ठा हो गयी हो ........लोगों की सोच , चाहे राजनीति से सम्बंधित बात हो या समाज से सम्बंधित निम्न से भी अधिक निम्न स्तर पर पहुँच चुकी है . लोग सोचते हैं की नफ़रत के बीज अभी डाले गए हैं ..... लेकिन मुझे लगता है की बीज तो न जाने कब के हैं जो पेड़ बन कर अब लहलहा रहे हैं ....... सब पढ़े - लिखे लोगों की भाषा ऐसी हो गयी है कि समझ नहीं आता कि पढ़ लिख कर क्या सीखा ? खैर ..... एक गुज़ारिश है कि निष्पक्ष भाव से कभी सोचियेगा कि कहाँ आ गए हम .......
एक बात मैं अपने ब्लॉगर साथियों से कहना चाहूँगी कि इस मंच पर लिंक्स लगाने का मकसद यह है किअधिक से अधिक पाठकों को लिंक पर पहुँचने की सुविधा मिले न कि केवल वही लोग शिरकत करें यहाँ जिनकी पोस्ट यहाँ लगायी जाती है . इस लिए आप सभी को सूचनार्थ बता रही हूँ कि जिस दिन मैं इस मंच पर प्रस्तुति लगाऊँगी उस दिन जिसकी पोस्ट का लिंक लगाऊँगी उसकी कोई सूचना आपके ब्लॉग पर छोड़ कर नहीं आऊँगी . क्यों कि जिसकी पोस्ट है वो तो उसके बारे में जनता ही है न कि क्या लिखा है ........... बात है दूसरे लोगों के पढने की .......
आइये चलते हैं मेरे द्वारा पसंद किये गए कुछ चिट्ठे ....... चिट्ठे लिखते हुए मुझे चिट्ठा जगत याद आ गया ...... एक समय था कि चिटठा जगत सभी ब्लॉगर्स की पोस्ट का एक तरह से विज्ञापन किया करता था ...... विज्ञापन का अलग ही अंदाज़ था ..... जैसे ही चिटठा जगत खोलिए तुरंत सारी नयी पोस्ट दिखाई दे जाती थीं चलिए आपको पढवाते हैं विज्ञापन की मार क्या क्या गुल खिलाती है ....
शुभेक्षु
"आपको सर्वोच्च शैक्षिक डिग्री अनुसन्धान उपाधि प्राप्त किए इतने साल गुजर गये! अब आप नौकरी करना चाहती हैं। आपने अब तक कहीं नौकरी क्यों नहीं कीं?"
"बहुत जगहों पर आवेदन फ़ार्म भरा लेकिन साक्षात्कार के समय छँटनी हो जाती रही।"
चलिए कहीं तो उसकी योग्यता के अनुरूप शायद काम मिला वरना तो सब रूप ही देखते हैं ....... जैसे जैसे उम्र बढती जाती है न जाने मन क्यों बचपन की गलियों में भटकता है ....... इसी को एक खूबसूरत कविता के रूप में पढ़िए ....
वो मेरे बचपन का आँगन
खेलती खातीं वो नन्हीं,
चहकतीं किलकारियाँ।
खेलतीं सिकड़ी व कंचे,
साथ में फुलवारियाँ।
अभी हम बचपन में लौटने की बात कर रहे हैं और ये बचपन कितनी जल्दी बड़ा हो गया है ....... मार्मिक लघु कथा .....आप भी पढ़ें ...
हम फल नहीं खायेंगे
अरे ! ऐसे कैसे ? क्या हुआ तुझे ? माँ ने बामुश्किल बैठते हुए उसके माथे को छुआ । फिर बाबा की तरफ देखकर पूछा "खाना तो खाया था इसने ? देखो जी ! बच्चों का और अपना ख्याल ठीक से रखो तुम" ! लड़खड़ाती मरियल सी आवाज में कहकर माँ खाँसने लगी तो बाबा ने झट से आकर माँ की पीठ थपथपाते हुए कहा , "अरे ! ठीक है वो ! क्यों चिंता करती है ! ऐसे ही मन नहीं होगा , बाद खा लेगी । तू खा ले न" !
आखिर कब तक रोएगी सिसक-सिसक कर मानवता…
इंसानों की इस बस्ती में
इंसान नहीं ढूँढ़े मिलता
खुल कर नंगा नाच करे
हर रोज यहाँ पर दानवता
जहाँ इतने गंभीर मुद्दे हैं वहीँ कोई कोमल मन चाहता हैसोचने की स्वतंत्रता .....सब अपने अपने वितान में आज़ाद उड़ना चाहते हैं ....... एक खूबसूरत रचना .....
वितान
वर्षों से
मन की अलगनी पर टंगे
चंद विचार..
भूली भटकी सोच के
धागों में
उलझे -पुलझे..
और आज की अंतिम कड़ी ........ सोचियेगा ....... समझिएगा .....
वोट का तुष्टीकरण, चोल साम्राज्य का सेंगोल, नया संसद भवन और ताबूत की कील
विपक्ष के विवादों में सबसे चर्चित तमिलनाडु के चोल साम्राज्य का सेंगोल रहा है परंतु इसका अर्ध सत्य ही सोशल और में स्ट्रीम मीडिया पर आ सका । पूर्ण सत्य है कि 1947 में 14 अगस्त को लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को सेंगोल देकर सत्ता का हस्तांतरण किया। दुर्भाग्य से इसे प्रयागराज के संग्रहालय में रख दिया गया । इसे धर्म दंड भी कहा जाता है। सेंगोल सत्ता और न्याय के प्रतीक के रूप में सत्ता के हस्तांतरण को रेखांकित करता है। जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसी रूप में सत्ता को स्वीकार किया तो फिर आज नए संसद भवन में इसे स्थापित करने की बात को लेकर विपक्ष का विवाद निश्चित रूप से आम जनमानस को निराश करता है।
आज के लिए इतना ही ......... कल की विशेष प्रस्तुति ले कर आएँगी विभा जी
आभार दीदी
जवाब देंहटाएंखाया कहां लिया भर है
सुंदर अंक
सादर नमन
आभार यशोदा
हटाएंबहुत सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआज "पांच लिंकों के आंगन में" मेरी कविता की पंक्ति, जैसे देहरी पर बंदनवार लटक रही हो, दीदी मन खुश कर देती हैं आप।
जवाब देंहटाएंमेरी नज़र में आज का अंक..
विज्ञापन की दौड़ को रेखांकित करती संध्या राठौर जी की सामयिक कविता, समाज की सच्चाई बयां करती विभा दीदी की लघुकथा, बालमन का सुंदर अवलोकन करती सुधाजी की कहानी, सामाजिक पतन पर मंजू मिश्रा जी की कविता, जीवन संदर्भों पर मीना जी की उत्कृष्ट कविता, अरुण साथी जी का संसद भवन पर सुंदर और जानकारी युक्त आलेख के साथ मेरी रचना वो मेरे बचपन का आँगन..
हर रचना कुछ कहती हुई.. सुबह का भ्रमण अच्छा रहा। बहुत सुंदर प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं, आदरणीय दीदी का हृदयतल से आभार।
तुम्हारी टिप्पणी पढ़ कर अपनी प्रस्तुति सार्थक लगी । आभार
हटाएंपुष्प गुच्छ सी बहुत सुन्दर प्रस्तुति में मुझे सम्मिलित करने के लिए हृदयतल से हार्दिक आभार आ . दीदी!
जवाब देंहटाएंप्रभावी चिन्तन के साथ ऊर्जा का संचार करता अंक।
सादर सस्नेह वन्दे !
बहुत शुक्रिया मीना । अच्छी रचना आकर्षित करती ही है ।
हटाएंउत्कृष्ट लिंकों से सजी लाजवाब प्रस्तुति अपनी वही चिर परिचित विलक्षणता से
जवाब देंहटाएंमन को लुभा रही है।
मुझे भी सम्मिलित करने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।
सादर नमन🙏🙏
सुधा ,
हटाएंहृदयतल से शुक्रिया । आपकी लघुकथा बहुत संवेदनशील है ।
सच चिट्ठा जगत की बात ही निराली थी .... सबकी एक साथ नयी पोस्ट का मिलने से उनतक पहुँच पाना आसान था
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
सच चिट्ठा जगत की बात ही निराली थी .... सबकी एक साथ नयी पोस्ट का मिलने से उनतक पहुँच पाना आसान था
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
कविता जी ,
हटाएंहार्दिक आभार । पुराने ब्लॉगर्स सच ही वो समय नहीं भुला सकते ।
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार
हटाएंप्रिय दीदी,आपके उत्तम संकलन के लिए आपको हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।आपके इस अंक की भूमिका मन को छू गई।कोशिश करती हूँ कि ब्लॉग पर आ सकूँ।ब्लॉग से दूर हो कर 2017 से पहले की अनुभूति होने लगी है।एक दम निष्क्रिय और एकाकीपन।आपकी प्रस्तुति खींच ही लाई यहाँ फिर से।सभी रचनाकारों को बहुत शुभकामनाएँ।सभी रचनाएँ मन को छू गई।एक बार फिर से आभार और प्रणाम आपको 🙏🌹🌹
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु ,
हटाएंयदि तुम इस प्रस्तुति के कारण खींची चली आयी हो तो मुझे इस प्रस्तुति से संतुष्टि है । तुम सक्रिय हो तो शायद मुझे भी जोश आये थोड़ा । पिछले दिनों कुछ व्यस्तता के कारण ज्यादा ही निष्क्रिय हो गयी हूँ ब्लॉग पर । यहाँ आने के लिए आभार ।
बहुत आभार आपका, मेरे जैसों के पोस्ट को भी जगह दी...
जवाब देंहटाएंअरुण जी
हटाएंआपका ब्लॉग मेरे पसन्दीदा ब्लॉग में से एक है । सटीक विश्लेषण होता है आपका । आभार ।