शीर्षक पंक्ति: आदरणीया डॉ.(सुश्री) शरद सिंह जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ आज पुनः
हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
उड़ता है हंसों के साथ
मानसरोवर की पावनता में
शांति की शिलाओं पर
थिर हो आसन जमाता है
ज्ञान का सूर्य जगमगाता है
निरभ्र निस्सीम आकाश सा उर
बन जाता है!
शायरी | ज़िन्दगी बेलिबास दिखती है | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
जिस्म की मंडियों में आलम ये,
एक रोटी पे रूह बिकती है।
उनके बग़ैर ये क़ायनात नहीं होती--
क्षमा दया करुणा ममता का
दीप जले निज अंतर्मन में
सुख पाये हरदम जीवन में
मां सुरसरि सब पीड़ा हर दे
बोध सुभग हर उर में भर दे.
नागपुर का जीरो माइल स्टोन स्मारक
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
आज का अंक
जवाब देंहटाएंआनंददायक
आभार
उम्दा लिंक्स का चयन
जवाब देंहटाएंपाँच लिंक्स से सुसज्जित आज के अंक में 'मन पाये विश्राम जहां' को स्थान देने के लिए आभार रवींद्र जी, सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंपंचामृत में सम्मिलित कर मान देने हेतु हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अंक
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