सादर आभिवादन
लटक रहा रेशम डोरी पे,
झूला था मन के आँगन में।
झूल रहा था रोम-रोम मेरा,
वो बाँधे निज आलिंगन में।
मैं झूली कुछ ऐसे झूली
भूल गई अपनी काया भी,
खुलती जाती डोर स्वयं से
बिखरा जाता बूटा-बूटा॥
दिन भर ब्लॉगों पर लिखी पढ़ी जा रही 5 श्रेष्ठ रचनाओं का संगम[5 लिंकों का आनंद] ब्लॉग पर आप का ह्रदयतल से स्वागत एवं अभिनन्दन...
सादर आभिवादन
लटक रहा रेशम डोरी पे,
झूला था मन के आँगन में।
झूल रहा था रोम-रोम मेरा,
वो बाँधे निज आलिंगन में।
मैं झूली कुछ ऐसे झूली
भूल गई अपनी काया भी,
खुलती जाती डोर स्वयं से
बिखरा जाता बूटा-बूटा॥
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सुप्रभात!
जवाब देंहटाएंआज के सभी लिंकों पर जाना हुआ, विभिन्न विषय और शैली की प्रस्तुति ।
शानदार अंक । बधाई और शुभकामनाएं!
सदैव सब कुशल मंगल रहे
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
सुप्रभात! सारगर्भित रचनाओं का सुंदर संकलन, 'डायरी के पन्नों से; को शामिल करने हेतु बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
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