शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशालता सक्सेना जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
धीरे धीरे प्रतिबन्ध बढ़ने लगे
समाज का दखल भी बढ़ा
रिश्ते भी आने लगे
कभी प्यार से समझाया
कभी वरजा गया मुझे।
शायरी | कहां खो गया | डॉ (सुश्री) शरद सिंह
धैर्य भाव और हिम्मत से,अपना काम निकालेंगे।
मेहनत को मुकाम बनाकर, बिगड़ी बात संभालेंगे।
असफलता को धूल चटा,उत्कर्ष करते जाएँगे।
संघर्ष करना धर्म हमारा...
द्रुमकुल्य क्षेत्र अर्थात्
कज़ाखस्तान:जहां श्रीराम ने समुद्र को सुखाने वाला ब्रह्मास्त्र छोड़ा था
वाल्मीकि रामायण मे दिए गए वर्णन के
अनुसार ब्रह्मास्त्र की गर्मी से द्रुमकुल्य के डाकू मारे गए. लेकिन इसकी गर्मी इतनी
ज्यादा थी कि सारे पेड़-पौधे सूख गए और धरती जल गई. इसके कारण पूरी जगह रेगिस्तान
में बदल गई और वहां के पास मौजूद सागर भी सूख गया. यह वर्णन बेहद आश्चर्यजनक है और
जिस तरह से लंका तक बनाए गए रामसेतु को भगवान राम की एतिहासिकता के सबूत के तौर पर
माना जाता है उसी तरह इस घटना को भी सही माना जाता है.
चलते-चलते पढ़िए भावों का सघन घनत्त्व लिए दार्शनिक तेवर की अचर्चित रचना-
संकुचित मन की परतों से
टकराकर निष्क्रिय हो जाते है
तर्कों के तीर
रक्त के छींटो से मुरझा जाते हैं
सौंदर्य के फूल
काल्पनिक दृष्टांतों के बोझ तले
टूट जाती है प्रमाणिकता
*****
फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
सुप्रभात ! साहित्य के विविध रूपों को एक गुलदस्ते के रूप में संजोए हुए आज का अंक पाठक को आनंद, रस और बोध के पलों का आस्वादन कराने में सक्षम है, बहुत बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत से आभारी हूँ।
जवाब देंहटाएंसादर।