शीर्षक पंक्ति: आदरणीया अनीता जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक में पाँच रचनाओं के लिंक्स के
साथ हाज़िर हूँ।
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
अपने मन की करने वाली जिद्दी है
कहना किसी का नहीं मानती
यही समस्या है उसकी।
योग दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ
सुख की बाट न जोहिये, भीतर इसकी ख़ान
योग कला को जानकर, पुलकित होते प्राण
एक तपस्त्या एक व्रत, अनुशासन है योग
जीवन में जब आ जाय,
मिट जाये हर रोग
वर्तमान परिदृश्य में योग की आवश्यकता | internationalyogaday |
चलते-चलते पढ़िए योग पर रोचक अंदाज़ में चर्चा-
"मैं योग को अपनी
दिनचर्या में कभी भी शामिल नहीं किया। योग जरूरी है यह कभी समझ ही नहीं पाया।
दो-दो पाँच के चक्कर में रहा। अपने पैसों के बल पर स्व के बल को इक्कीस समझता रहा।
मुझसे उम्र में बीस और आर्थिक रूप से उन्नीस सरपट दौड़े जा रहे हैं। और मैं•••,"
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फिर मिलेंगे।
रवीन्द्र सिंह यादव
शानदार अंक
जवाब देंहटाएंस्तरीय रचनाओं के संग
शुभकामनाएं व आभार
सादर
शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
जवाब देंहटाएंश्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद
रोचक और सरगर्भित रचनाओं से सज्जित सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंसुप्रभात! योग दिवस पर विशेष रचनाओं से सजा सुंदर अंक, 'मन पाये विश्राम जहां' को शामिल करने हेतु ह्रदय से आभार रवींद्र जी !
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति सभी लिंक उम्दा एवं पठनीय ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को भी यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।