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शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

3133....कहो ना,कौन से सुर में गाऊँ

 शुक्रवारीय अंक में मैं
श्वेता 
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
करती हूँ।

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क्यूँ झकझोरती नहीं आत्मा
रक्तपिपासु बने बैठे है,
क्यूँ हृदयविहीन हो इंसान
ये कैसा जे़हाद बता न?
किस धर्म में लिखा है घात बता,
रक्त सने तन-मन नराधम
बलि चढ़ाते मासूमों की
कर कैसे मुँह तक ले जाकर
अन्न के निवाले खातेे होगे?
कैसे रातों को चैन से
नेपथ्य में गूँजते चीखों को
अनदेखा कर सचमुच
क्या स्वप्न सुनहरे आते होगें??
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

कहो न कौन से सुर में गाऊँ

जाने 'उसने' कब, किसको,
क्यों, किससे, यहाँ मिलाया !
दुनिया जिसको प्रेम कहे,
वो नहीं मेरा सरमाया !
जाते-जाते अपनेपन की, 
सौगातें दे जाऊँ !
कहो ना, कौनसे सुर में गाऊँ ? 

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मौसम में मधुमासी


धानी चुनर पीत फुलवारी
धरा हुई रसवंती क्यारी।
जगा मिलन अनुराग रसा के
नाही धोई दिखती न्यारी‌।
अंकुर फूट रहे नव कोमल
पादप-पादप कोयल रागी।।

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कभी तन की भूख
कभी मन की भूख
कभी धन की भूख
सब कुछ पाकर भी
सब कुछ पाकर भी
तृप्त न हो पाया

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पिया बोले न

तरसे नयनवा
उनके दरस को ...
आएंगे साजन
कौन बरस को...
अंबर बरसे 
धरती तरसे 
पुरवा सयानी 
इत उत भटके 
पीहू पुकारे 
घर के  दुआरे 

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वनगमन, पर दोष किसका?

राम का वन जाना मुझे असाध्य कष्ट देता है, जितनी बार प्रसंग पढ़ता हूँ, उतनी बार देता है। क्योंकि मन में राम के प्रति अगाध प्रेम और श्रद्धा है। बचपन से अभी तक हृदय यह स्वीकार नहीं कर सका कि भला मेरे राम कष्ट क्यों सहें? राम के प्रति प्रेम और श्रद्धा इसलिये और भी है कि राम पिता का मान रखने के लिये वन चले गये

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कल का विशेष अंक लेकर

आ रही हैं प्रिय विभा दी।

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12 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक..
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व तीज की
    शुभकामनाएँ
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन लिंक्स का चयन । भूमिका में अब जिहाद का क्या अर्थ पूछना ? प्रत्यक्ष को प्रमाण की ज़रूरत नहीं होती । कुछ कम होती ही है सब कुछ बर्बाद करने के लिए । जिनको रोना है वो खून के आँसू रोते रहें ।
    किसी में दया धर्म नहीं दिखता । इतिहास नहीं तो वर्तमान से ही सीख लेना चाहिए । चिंता करने जायज है ।
    सस्नेह ।

    जवाब देंहटाएं
  3. हृदय झकझोरते भूमिका और सुन्दर सूत्रों से सजे लिंक्स श्वेता जी बहुत अच्छी प्रस्तुति!!

    जवाब देंहटाएं
  4. सूत्रों का सुन्दर संकलन। बहुत आभार मेरे ब्लॉग को स्थान देने का।

    जवाब देंहटाएं
  5. जिहाद नहीं, बर्बरता है। पशुता है। मनुष्य आदिम युग में शिकारी रहा, उसके मूलभूत गुण किन्हीं किन्हीं कबाइली जातियों जनजातियों में अब तक शेष हैं। विज्ञान और तकनीक इनके हाथों में पड़कर बस खूनी खेल खिलाने वाले खिलौने बनकर रह गए हैं। मानवता के गुण इनके हृदय से कोसों दूर हैं। विचारों को झकझोरती भूमिका। मेरी कविता से ली गई शीर्ष पंक्तियाँ, व कविता को अंक में शामिल किया, दोनों के लिए हृदयपूर्वक आभार प्रिय श्वेता।
    अन्य लिंक भी अच्छे हैं। विशेषकर आदरणीय प्रवीण पांडेय जी का लेख हृदयस्पर्शी है।

    जवाब देंहटाएं
  6. सारगर्भित और सार्थक रचनाओं का सुंदर चयन,बहुत शुभकामनाएं श्वेता जी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. हृदय को भेदती भुमिका!
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    सभी रचनाकारों को बधाई।
    मेरी रचना को पाँच लिंक पर रखने के लिए हृदय से आभार।
    सस्नेह सादर।

    जवाब देंहटाएं
  8. नेपथ्य में गूँजते चीखों को
    अनदेखा कर सचमुच
    क्या स्वप्न सुनहरे आते होगें??
    बिलखते अफगान की हालत पर बहुत ही हृदयविदारक भूमिका के साथ लाजवाब हलचल प्रस्तुति... सभी लिंक उम्दा एवं पठनीय।

    जवाब देंहटाएं
  9. ये कैसा जे़हाद बता न?
    जेहाद तब कहा जाता है
    जब कोई सेना पराजित होती है
    तब सेनापति या बादशाह कहता है जेहाद
    अर्थः मरना ही है तो लड़कर लड़ो
    ठीक उसी प्रकार राजपूताने में जौहर होता है किसी के हरम मे जाने के बजाए
    आत्मदाह ही कर लो..

    लोगों इसे नए रूप में ले रहे हैं
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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