नमस्कार ! आज के पाँच लिंक्स के आनंद में आप सभी का स्वागत है । यूँ तो दिनांक 7 से ही हम सब स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं क्यों कि ओलंपिक खेलों में नीरज चोपड़ा ने स्वर्ण पदक जीत कर इतिहास रच दिया है | वैसे हर खिलाड़ी ने ही अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया होगा .... आगे आने वाले समय में हमारे खिलाड़ी और अच्छा प्रदर्शन करें यही कामना है ...
चलिए इसी उम्मीद के साथ प्रारम्भ करते हैं आज के लिंक्स की चर्चा ---
आपको खेलों में पदक तो चाहिए लेकिन अपनी मानसिकता को बदल नहीं सकते । थोड़ा अपनी सोच बदलें तो शायद और जीत के परचम लहरायें यही बता रही हैं प्रीति अलग अपने लेख में ---
'लड़की घर भी संभाल लेगी, और मैडल भी जीत लेगी'. टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला एथलीटों के उत्कृष्ट प्रदर्शन से उत्साहित लोग सोशल मीडिया पर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से कही गई ये बात तथ्यात्मक रूप से बिल्कुल सही है. लड़कियों के लिए हमारे समाज में जिस तरह का वातावरण मौजूद है, उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए कई सामंजस्य बैठाने पड़ते हैं. 'घर संभालने' की अदृश्य जिम्मेदारी का दबाव उनमें से एक है.
महिला हॉकी में भले ही कोई पदक न मिल पाया हो लेकिन चौथे स्थान पर रहना भी आगे जीत की दस्तक देने के बराबर है । महिला हॉकी टीम के लिए अनिता जी की रचना पढ़िए ---
पायलों की रुनझुनों में,काल की टंकार हो तुम।
नीतियों की सत्यता में,स्वर्ण का आधार हो तुम।।
खेल से इतर कुछ गज़लों की बात हो जाय ..... बड़े धुरंधर ग़ज़लकारों की गज़लें हैं .... पढ़िए और दाद दीजिए ---
दिगंबर नासवा जी तो अभी बच्चा बन बाहों में इतरा ही रहे हैं और क्यों न इतरायें आखिर माँ की बाहों में होने का एहसास जो है-----
सात घोड़ों में जुता सूरज सुबह आता रहा.
धूप का भर भर कसोरा सर पे बरसाता रहा.
काग़ज़ी फूलों पे तितली उड़ रही इस दौर में,
और भँवरा भी कमल से दूर मंडराता रहा.
और हर्ष महाजन जी न जाने किस गलतफहमी के शिकार हो गए हैं ----
गल्त-फ़हमी थीं बढीं अर फासले बढ़ते रहे,
हम मुहब्बत में हैं लेकिन दुश्मनी करते रहे |
अब गलतफहमी कुछ भी रही हो लेकिन ये कोरोनकाल ने सोच को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया है । पढ़िए मुकेश सिन्हा जी की कोरोना से जुड़ी क्षणिकाएँ ----
🔴 आइसोलेशन
इतने स्ट्रिक्ट लॉक डाउन और
आइसोलेशन के बावजूदन
जाने किन गलियों से गुजरकर
तुम आ ही जाती हो
मेरे दिल के अंदर
श्रावण मास में प्रकृति भी अजब गजब रंग दिखाती है । कहीं बिल्कुल सूखा तो कहीं बाढ़ ले आती है । इसी दृश्य को शब्दचित्र में बांधा है जिज्ञासा जी ने कि --
भर भर भर भर कटे कटान
गिरे जा रहे बने मकान
नागिन जैसी फन फैलाए
अपना चौबारा सूंघ रही
चलते चलते एक गंभीर मुद्दे पर ध्यान आकर्षित कराना चाहूँगी ---- ये ऐसा मुद्दा जो हर एक को उद्वेलित कर देता है , सोचने पर मजबूर होते हैं कि आखिर इस समस्या का निदान क्या है ? " बलात्कार " विषय पर अपने विचार रखे हैं मनीषा गोस्वामी ने .... बेबाक और निष्पक्ष लेखन है - आप भी अपने विचार रखें ----
बेटियाँ कैसे सुरक्षित रहेगी जब तुमने अपने लाडलों को घटिया हरकत करने की छूट दे रखी है?और बेटियों के पढ़ाई और बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा रखी है ! महिलाएँ असुरक्षित है ,ये तो सब कहते है पर खतरा किससे है, ये बताने कि हिम्मत किसी में नही है !
आज बस इतना ही ..... मिलते हैं अगले सोमवार को ....
आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ....
संगीता स्वरूप ।
सादर नमन दीदी..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक
मौसम भी ठीक हो चला है
इतने स्ट्रिक्ट लॉक डाउन और
आइसोलेशन के बावजूदन
जाने किन गलियों से गुजरकर
तुम आ ही जाती हो
मेरे दिल के अंदर
सादर..
शुक्रिया यशोदा ।
हटाएंकोरोना बहुत कुछ सिखा रहा है
विविध प्रकार के अंको सुसज्जित बहुत ही उम्दा चर्चामंच और इन इन सभी रचनाओं वा लेखों को चार चांद लगाते आपके विचार !जो आपने हर अंक पर अपनी विशेष टिप्पणी दी है वो इस चर्चामंच और सभी अंको को बहुत ही खूबसूरत बना रहीं हैं! वाकई काबिले तारीफ प्रस्तुति!🙏 मेरे लेख को चर्चामंच में शामिल करने के आपका तहेदिल से 🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय मनीषा ,
हटाएंअंक पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया । तुम्हारे लेख को अधिक से अधिक लोगों को पढ़ना चाहिए ।
आपकी प्रस्तुति निःशब्द करती है 🙏
जवाब देंहटाएंविभा जी ,
हटाएंये आपकी ज़र्रानवाज़ी है । शुक्रिया ।
शुक्रिया, शेयर करने के लिए धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंमुकेश ,
हटाएंऐसे ही ब्लॉग पर अपनी रचनाएँ डालते रहिए । यूँ तो फेसबुक पर आप डालते ही हो । ब्लॉग को भी आबाद रखिये ।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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जवाब देंहटाएंआदरणीय दीदी, आपके द्वारा बड़ी मेहनत से सजाए गए अंक के हर पेज पर हो आई,बहुत सुंदर और सामयिक, सारगर्भित अंक,हर एक सूत्र कुछ न कुछ कह रहा है। हर एक सृजन को पढ़कर ऐसा लगा कि हर विषय अलग होते हुए भी, हम से जुड़ा हुआ है। आपके श्रम को मेरा हार्दिक नमन ।
खेल खेल में प्रीति जी ने बड़ी बात कह दी, कि हम रोटी बनाएं या मेडल लाएं,ये तय करना पड़ेगा,तो अनीता जी ने इतना हौसला बढ़ाया कि मेरा भी मन कर गया कि हॉकी स्टिक उठा लें,काश...दिगम्बर जी तो बचपन तक ले गए और मां से मिलवा दिया,मुकेश जी की रचना कोरोना से सतर्क रहने का नया आयाम दे गई,और हर्ष जी की गजल तो दुश्मनी में भी स्नेह का सुंदर बंधन तलाश रही।प्रिय मनीषा ने बेटियों के लिए अपनी चिंता प्रकट की जो बहुत ही सोचनीय विषय है,साथ ही मेरी रचना को चयनित कर आपने मुझे अनुगृहीत कर दिया ।आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं, सादर शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह 🙏🙏💐💐
आभार..
हटाएंशानदार त्वरित समीक्षा
आपको पकड़ कर लाना ही पड़ेगा
मुखरित मौन के लिए
सादर
प्रिय जिज्ञासा ,
हटाएंइतनी सारगर्भित प्रतिक्रिया पा कर किसका मन उत्साह से न भर जाएगा । हर रचना पर अपनी विशेष टिप्पणी से साबित कर दिया है कि हर रचना को कितनी गहनता से पढ़ा गया ।
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
🙏🙏☺️☺️🙏🙏
हटाएंअच्छे लिनक्स हैं. पढ़ते हैं .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिखा ।
हटाएंबहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकविता जी ,
हटाएंहार्दिक आभार । आपकी रचना भी ले कर आना चाह रही थी , लेकिन चर्चा मंच वाले पहले ले गए । मेरा प्रयास रहता है कि जो चर्चा मंच पर लिंक्स लगें उससे अलग ही लिंक्स लगाए जाएँ , जिससे पाठकों को ज्यादा रचनाएँ पढ़ने को मिलें । लेकिन फिर भी कभी कभी कॉमन हो जाते हैं ।
सादर नमन
जवाब देंहटाएंबढ़िया अंक
कुछ पंक्तिया आपकी चुराई है आज्ञा के बगैर
कल के अंक में अग्रपंक्तिया बनी है वे
कल भाई कुलदीप जी नहीं हैं
फोन आया था
वापस आ रहे हैं...
पुनः नमन
सादर
दिग्विजय जी ,
हटाएंअंक पसंद करने के लिए आभार ।
आप कुछ पंक्तियों की बात कर रहे हैं आज का पूरा आंक ही आपका है , चुराने वाली कोई बात नहीं 😄😄
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी ।
हटाएंबेहतरीन संकलन
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
संकलन पसंद करने के लिए शुक्रिया अनिता जी ।
हटाएंजी दी,
जवाब देंहटाएंदेश को सम्मानित पलों के स्वर्णिम वसीयत सौंपने वाले सभी नायक/नायिकाओं को नमन।
देश के लिए गर्वित पलों में, उपलब्धियों पर खुशी मनाना भूलकर हमारे देश के सोशल मीडिया के बुद्धिजीवी उपभोक्ता को दो हिस्सों में बँटकर राजनीतिक विश्लेषकों की तरह तू-तू मैं-मैं करते देखना दुर्भाग्यपूर्ण है।
हम अब भारतीय होने का अर्थ भूलते जा रहे हैं शायद...।
"मैं" के इस अति ओछी मानसिकता के युग में जहाँ किसी को भी एकपल में नायक और दूसरे ही पल में खलनायक घोषित करना आम हो गया है हम सभी परिपक्व अभिवावकों का दायित्व है कि अपना जाति,धर्म, पंथ भूलकर देश के लिए समर्पित जुझारू इन खिलाड़ियों की संघर्ष और उपलब्धि की कहानियाँ अपने बच्चों को जरूर बतायें।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय स्त्रियो़ की सशक्त उपस्थिति ने
एहसास करवाया है कि कुछ तो सकारात्मक बदलाव हो रहे
हैं।
प्रेरक,विचारणीय,वैचारिक मंथन को आमंत्रित करता लेख और रचनाओं से सजा आज का सुंदर सोमवारीय विशेषांक
आपके विशेष अंदाज़ में बहुत अच्छा लगा दी।
सप्रेम प्रणाम,
सादर।
प्रिय श्वेता ,
हटाएंसच ही सटीक बात कही है कि हम ऐसे गौरवान्वित पलों को भी जाति, धर्म में बाँट देते हैं जहाँ केवल भारतीय होना चाहिए । देश के प्रति कैसी मानसिकता है समझ नहीं आता । आज के अंक की प्रस्तुति को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार ।
सस्नेह ।
बहुत खूब तहरीरें आपने इस मंच पर चस्पा की हैं !! आप सभी का अंदाज ए बयां और सृजन बा-कमाल !! क्या कहने आप सभी के । मेरी जानिब से सभी के लिए इस नाचीज़ की ढ़ेरों दाद क़ुबूल कीजियेगा आदरनीय ।
जवाब देंहटाएंसबसे ऊपर इतनी सुंदर रचनाओं को यहां सजा कर रखना ।
👍👍👍👍👍👍👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
हर्ष जी ,
हटाएंतहरीरें पसंद करने के लिए तहेदिल से शुक्रिया । आपकी शायरी लाजवाब है ।
बहुत सुंदर लिंक्स,संगिता दी।
जवाब देंहटाएंज्योति जी ,
हटाएंलिंक्स पसंद करने के लिए शुक्रिया ।
प्रिय दीदी , सुंदर संक्षिप्त भूमिका के साथ भावपूर्ण प्रस्तुति |प्रिय मनीषा का विचारोत्तेजक लेख और दिगंबर जी की ग़ज़ल मन को छू गयी | जिज्ञासा जी ने बाढ़ का वर्णन करते जीवंत रचना लिखी है तो हर्ष की गजल भी शानदार है |मुकेश जी ने क्षणिकाएं बहुत बढिया लिखी तो अनिता जी ने भी हॉकी खिलाडियों के लिए बहुत प्रेरक लिखा | ओलम्पिक में स्वर्ण जीतकर नीरज सभी की आँख का तारा बने हुए हैं | हो भी क्यों ना एक आम परिवार से संबधित होने के बावजूद नीरज ने जो सफलता की कहानी लिखी एक मिसाल बनकर रहेगी | और प्रीति जी ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही | बेटियों को प्रेरित करते हुए घर के दायित्वों से कुछ समय के लिए मुक्ति देनी होगी ताकि वे सफलता के नये शिखर छू सकें |और जो खिलाड़ी जीत ना सके वे भी बधाई और सराहना के पात्र हैं |आखिर कोई खिलाडी हारना तो कभी ना चाहेगा वो भी शीर्ष की स्पर्धा में पहुँचकर , जहाँ तक पहुँचना अपने आप में गर्व का विषय है |ये बात अलग है जो जीता वही सिकंदर कहलाता है | हमारे खिलाड़ियों का साहसिक प्रदर्शन देश के लिए गौरवान्वित करने वाला है | आज की भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको बधाई और सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं|
जवाब देंहटाएंप्रिय रेणु ,
हटाएंसच है कि नीरज आज सबकी आंखों का तारा बना हुआ है , काश कुछ ऐसी व्यवस्था हो कि इन लोगों को कभी किसी चीज़ की कमी न हो । अक्सर पढ़ने में आ जाता है कि एक समय ये खिलाड़ी देश के लिए खेले , मैडल लाये और आज बड़ी मुश्किल से गुज़ारा कर रहे हैं तो दुःख होता है ।
सभी लिंक्स पर अपनी विशेष टिप्पणी से प्रस्तुति को सराहा इसके लिए दिल से धन्यवाद ।
उम्दा एवं पठनीय लिंकों से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति...।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।
सुधा जी ,
हटाएंअंक की सराहना के लिए तहेदिल से शुक्रिया ।
बख़ूबी आपने सभी लिंक्स को जोड़ा है …
जवाब देंहटाएंहर रचना रोचक, दिलचस्प है … आपका आभार मेरी ग़ज़ल को जगह देने के लिए और शीर्षक बनाने के लिए …