शुक्रवारीय अंक में
मैं श्वेता
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन करती हूँ।
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सोचती हूँ
विश्व के ढाँचें को अत्याधुनिक
बनाने के क्रम में
ग्रह,उपग्रह, चाँद,मंगल के शोध,
संचारक्रांति के नित नवीन अन्वेषण
सदियों की यात्राओं में बदलते
जीवनोपयोगी विलासिता के वस्तुओं का
आविष्कार,
जीवनशैली में सहूलियत के लिए
कायाकल्प तो स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है
किंतु,
कुछ विचारधाराओं की कट्टरता का
समय की धारा के संपर्क में रहने के बाद भी
प्रतिक्रियाविहीन,सालों अपरिवर्तित रहना
विज्ञान,गणित,भौतिकी ,रसायन,
समाजिक या आध्यात्मिक
किस विषय के सिद्धांत का
प्रतिनिधित्व करता है?
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आइये आज की रचनाओं के संसार में-
जीवन की अनसुलझी पहेलियों को,गूढ़ रहस्यों को समझने का प्रयास ही कर सकते हैं।
हमने यही जीवन जाना है
खुशियों के बाजारों में बस
आंसुओं का व्यवसाय हुआ
उभरते रहे नासूर समय के
औ' दर्द बेबस असहाय हुआ
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उम्र के अनुसार रंग बदलते सपने तितलियों की तरह लुभावने होते हैं जिन्हें छूने की ख़्वाहिश में नींद और ख़्वाब की आँख-मिचौली का सिलसिला बना रहता है।
सपने ऐसे ही होते हैं
सपनों के रंग
उम्र के आखिर पढ़ाव पर
मटमैले भूरे हो जाते हैं
तब
आंखों में
यही सपने
गहरे समा चुके होते हैं
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रिश्तों के वृहद आइने में सबसे अलग, स्वयं का प्रतिबिंब सी महसूस होती हैं बहनें। भावनाओं की नदी के तटपर बैठकर बचपन की नन्हीं अंजुरी से सुख-दुख का अमृत साझा करती
बहन की अनुभूति को शब्द दे पाना आसान नहीं।
सैनिको की जान
ध्वज पकड़े हथेलियाँ
खिलाड़ियों की सांसें
शिशु की माता
पिता की धड़कन
मां की सलाहकार
घूमती गोलाकार धरती
कुल्हाडी सी कठोर
फूल सी कोमल
होती है
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बुद्धिजीवियों की.बैठकों सबसे रोचक हिस्सा होता है
विषयों पर अपनी बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन।
इतिहास के पृष्ठ
उनकी प्रतीक्षा में
कोरे नहीं पड़े रहेंगे
कितना भ्रम है उन्हें कि
काल अश्व पर वे
अनन्त काल तक चढ़े रहेंगे! .
उनका यशोगान करने वाले
पालतू तोतों को वे
इतिहासकार मान बैठे
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युवा दृष्टिकोण से विषयों को पढ़ना और समझना कितना अलग है
ये आप स्वयं तय कीजिये।
चंपई अलोक नहीं रह जाएगा!!
आसमान की छाती में सुराख़ कर,
देवदार नहीं भूल पाएगा!!
आसमान की सांस लेने की
कोई आहट ना होगी!!
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जीवन के अंतिम पायदान में सकारात्मकता और ऊर्जावान बने रहना क्या सचमुच कठिन है?
शायद इस प्रश्न का उत्तर पूर्णतया परिस्थितियों पर निर्भर है।
अपने 83वर्षीय मकान मालिक जिन्हें ग्रैंडपा कहता है, के
विषय में बताने लगा तो मुझे आश्चर्य हुआ।अकेले रहते हैं,अपने घर के सारे काम के साथ इतने सुंदर लॉन की देखभाल करते हैं। बीज से पौधे तैयार करना,उन्हें लगाना,खाद-पानी,सिंचाई-निराई सब ख़ुद ही करते हैं।
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और चलते-चलते थोड़ा मुस्कुरा लीजिए
हास्य व्यंग्य लिखना आसान नहीं।
इन्हें मोटा होने के फायदों का अंदाज नहीं है. अज्ञानी हैं!! मूर्खता की जिंदा नुमाईश! अरे, मोटा आदमी हंसमुख होता है. वो गुस्सा नहीं होता. आप ही बतायें, कौन बुढ़ा होना चाहता है इस जग में? मोटा आदमी बुढ्ढा नहीं होता (अगर शुरु से परफेक्ट मोटा हो तो बुढापे के पहले ही नमस्ते हो जाती है न!!) वो बदमाश नहीं होता. बदमाशों को पिटने का अहसास होते ही भागना पड़ता है और मोटा आदमी तो भाग ही नहीं सकता, इसलिये कभी बदमाशी में पड़ता ही नहीं.
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कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।
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शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंसूर्य की किरणों के चुभन से
सी-सी करती धरती का
स्वर हमेशा के लिए दब जाएगा!!
विज्ञान की दो धारी तलवार के
एक गलत वार से
मनुष्य एक दिन खुद को ही
कभी न भरने वाला घाव दे जाएगा!!
सादर..
उम्दा लिंक्स चयन
जवाब देंहटाएंbahut aabhaar
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा प्रस्तुति ! हर अंक पर प्रस्तुतकर्ता की विशेष प्रतिक्रिया सभी लिंक्स में चार चांद लगा रही है! मेरी रचना को जगह देने के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार! 🙏
जवाब देंहटाएंभूमिका के रूप में तुम्हारा प्रश्न जायज है कि इतनी प्रगति के बाद भी जब विचारों से कट्टर हों और सारी प्रगति धरी की धरी रह जाय तो ऐसी सोच किस विषय के और किस सिद्धांत को प्रतिपादित करता है ?
जवाब देंहटाएंधर्म के नाम पर बेबजह की सनक ही कही जा सकती है ।
सभी लिंक्स बेहतरीन चुने हैं । हर रचना पर संक्षिप्त समीक्षा हर रचना को पढ़ने के लिए प्रेरित कर रही है । सुंदर संयोजन ।
सस्नेह
श्वेता जी क्षमाप्रार्थी हूं जो पूरा दिन बीतने के बाद अब देख पाया हूं...। अभी सभी रचनाएं देखने के बाद प्रतिक्रिया लिखूंगा...। मेरी रचना को सम्मान देने के लिए साधुवाद।
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने । सच में कभी-कभी क्यों लगता है कि हम कहीं आदम युग की ओर इतना विकसित होकर भी चले जा रहे हैं । सारी सोच ऐसे गड्ड-मड्ड हो जाती है कि कुछ कहते हुए बनता ही नहीं है ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर एवं रोचक प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ ।
जब भी यहाँ आता हूँ कुछ नया पाता हूँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्लेक्शन ।
फुलबगिया जैसी है link हर रंग हर खुशबू विखेरती '
हर भाव को छुती।
विचारणीय एवं चिंतनपरक भूमिका के साथ उत्कृष्ट लिंकों से सजी शानदार हलचल प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं।