शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से।
सादर अभिवादन।
गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।
कल होली तो हो ली...
आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-
संस्कारों का अंत हो तुम
लालच की पराकाष्ठा
अनैतिकता का बाना
भ्रष्टाचार के जनक
स्वार्थ के सहोदर
धर्म के धुंधले होते रंग
विषज्वर के आरोही हो।।
सबने खेली
रंग गुलाल लिए
होली होली है
इस बार होली में
अजीब नज़ारा देखा,
गुब्बारा एक चला,
पर घायल कई हो गए.
ताड़ना की अभिव्यक्ति को मोक्ष
दे पाएं,
नारी समतल धरातल की निर्विवाद
अधिकारी हो जाये।
रंगों से भरे दिल में फोड़ आये
मैंने कहा खुद ही से अरे,
बुरा न मानों होली है!!!!
मुश्किल है
हिय का
तर्पण,
रंगीन देह की थी अपनी अलग सीमाएं,
कोलाहल थमते ही लहरों ने किया
आत्म समर्पण।
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रवीन्द्र सिंह यादव
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मेरी टिप्पणी स्पैम में है पब्लिश कर दें कृपया।
हटाएंमुझे शामिल करने हेतु आपका हृदय तल से आभार । सभी रचनाएं अद्वितीय हैं नमन सह।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक.आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर, पठनीय लिंक्स
जवाब देंहटाएंमेरी पंक्तियों को शीर्षस्थ सम्मान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
मेरी पंक्तियों को शीर्षस्थ सम्मान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति।
सभी रचनाएं आकर्षक।
सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
मेरी रचना को प्रस्तुति में चयन करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह
टिप्पणी स्पैम में जा रही है देखें कृपया।
जवाब देंहटाएंहोली के रंगों से रंगी सुन्दर रचनाओं का संकलन, सभी रचनाकारों को होली की शुभकामनाएं
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