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बुधवार, 29 मार्च 2023

3712..आओ उफानते हैं..

 ।।उषा स्वस्ति।।

"कुछ तो है बात जो आती है क़ज़ा रुक रुक के
ज़िंदगी क़र्ज़ है क़िस्तों में अदा होती।"
कमर जलालाबादी
कुछ खास अंदाज में आज की ग़ुफ्तगू जिसमें शामिल हैं,रिश्तों के रिसने की बातें..✍️



भाई भाई में..

बाबूजी ने तख़्सिम करी जब दौलत भाई भाई में
तब भगवान नज़र आया था सबको पाई पाई में ।

बचपन में लड़ जाते थे जिस भाई की खातिर 
उन रिश्तों को धकेल दिया पैसों की अंधी खाई में 

कौन    पूछेगा    हमें   दरबार    में।

 नफ़्सियाती   नुक़्स   है  दो-चार में,
 वरना है  सबका  अक़ीदा  प्यार ..

चाय के बहाने प्यार

आओ उफानते हैं
केतली भर प्यार आज
कविता दिवस के दिन..

डॉक्टर बहना

आलोकिता मेरी छोटी बहन के साथ पढ़ती थी।खूब ज्ञानी और पढ़ने में अव्वल आलोकिता का एक ही लक्ष्य था डॉक्टर बनना तब उसकी एक और बहन अनामिका उससे एक वर्ष आगे थी, पढ़ने में वो भी बहुत तेज थी।

भिक्षुक


वह भिक्षुक 

निरा भिक्षुक ही था !!

उसने हवा चखी, दिन-रात भोगे

रश्मियों को गटका..

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

6 टिप्‍पणियां:

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