हाज़िर हूँ...! पुनः उपस्थिति दर्ज हो...
पंखुरी सिन्हा ने इधर सात विदेशी कविताओं का अनुवाद किया है। स्पीजैक के अलावा अन्य कवि हैं : डेविड लिओ सेरुआ (कनाडा), केसी रुनयान (अमरीकी कवयित्री), यूरी बोतविंकिन (यूक्रेनी कवि), आना मारिया स्तेफेन (पोलिश कवयित्री), पीटर तूचेव (बुल्गारिया), ल्युदमिला चेबोतारेव (इजरायली-रूसी कवयित्री)। तो आइए आज पहली बार पर पढ़ते हैं इन विदेशी कवियों की कविताएं। अनुवाद चर्चित हिन्दी कवयित्री पंखुरी सिन्हा का है।
यह बचाता है दुश्मनों की निगाहों से
अफवाहो वाली झूठी सच्ची गप्पों से
और दर्द से!
लेकिन, खोल देता है दरवाज़ा
सभी भाग्यशालियों, आस्थावानों और खुशमिजाज़ो के लिए!
तुम रो रही हो कबूतर मेरी?
नहीं मेरे हुजूर, ये बरसात की बूंदे हैं!
हमारी नींद कब टूटे
और सामने हो अंतिम सत्य।
हो इतना सशक्त कि
तोड़ डाले सारे भ्रम
सारे निश्चित कर्म
जो ले जाये हमें बहुत दूर।
जहाँ न कोई बँधन हो
न हो कोई दस्तूर।
मुजरिम के कटघरे में खड़े
बेकसूर आदमी का
हलफ़नामा है
क्या वह व्यक्तित्व बनाने की
चरित्र चमकाने की
खाने कमाने की चीज़ है
ना भाई ना
हमें महसूस होता है कि क्षण भर के लिए कविता को अगर एक जीवित प्राणी मान लिया जाए तो रूप-संभार उसकी देह है और अंतर्वस्तु उसकी अस्थियाँ. भाषा उसकी प्राण है और भाव उसकी धमनियों में प्रवाहित रक्त. इसकी समष्टि ही कविताओं का गोचर या मूर्त रूप है. इसके सन्तुलन का अभाव कविता को निकृष्ट और बेजान कर देती है. इसमें एक तत्व का आधिक्य दूसरे की कमी का द्योतक बन जाता है.
‘इतिहास में दर्ज हैं /
वे सारी कहानियां /
जब ईश्वर की /
चौखट पर / तोड़ दिया दम /
जीवन और प्रेम के लिये /
प्रार्थनाएं करते हुये /
मनुष्य ने ।’
सदाबहार अंक
जवाब देंहटाएंआभार
सादर नमन
काव्य का भाव प्रवाह जिसका नाम कोई थाह ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर पठनीय अंक।
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