शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल अभिवादन
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मनुष्यों के व्यवहार का विश्लेषण तो हर दिन हर पल करते हैं हम, जिसका कोई अर्थ नहीं मानसिक अशांति ही मिलती है ...।
आपने कभी नन्हें पक्षियों के व्यवहार पर गौर किया है?
पक्षी प्रकृति से गहराई से जुड़े होते हैं। ये जंगलों में, झाड़ियों में तथा वृक्षों पर घोंसला बनाकर रहने वाले नभचर जहाँ थोड़ी-सी हरियाली देखी वहीं बसेरा बना लिया।
पक्षियों को पर्यावरण की स्थिति के सबसे महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।
पक्षियों की संख्या में परिवर्तन अक्सर पर्यावरणीय समस्याओं का पहला संकेत होता है। पक्षियों के स्वास्थ्य से पारिस्थितिकीय असंतुलन की गंभीरता को समझा जा सकता है। पक्षियों की संख्या में गिरावट हमें बताती है कि हम विखंडन, विनाश, प्रदूषण और कीटनाशकों की नई प्रजातियों और कई अन्य प्रभावों के माध्यम से पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं।
यह अत्यंत गंभीर एवं विचारणीय विषय है जिसकी
प्रकृति से जुड़ा है मानव का अस्तित्व।
कभी अपने घर की छत, मुंडेर पर थोड़े से दाने
और पानी की व्यवस्था करके देखिए
सुकून का एहसास होगा।
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अब आइये आज की रचनाओं के संसार में-
हर बार ही वो आदमी मुझे हर पिछली बार से लम्बाई में छोटा होता हुआ आदमी लगता
असल में वह चौड़ाई में फ़ैल रहा था
अपने लिबास और स्वभाव दोनों से निहायत आम आदमी लगता
कंधे पर पहचान का झोला लटकाये
सुबह का भूला सा,
अक्सर वह बरसाती नदी के पास के पत्थर पर
बैठा दिखता
कुछ सोचता, टहलता,
कभी नदी में से पत्थर उठा दूर नदी में फेंकता ,
संघर्ष पैदा हो
जाता है भूख के पैदा
होते ही।
वो फिर चाहे
सर्वहारा का संघर्ष हो
या फिर शोषितों का
सत्ता के खिलाफ।
उसकी नींद के दौरान हम
तनिक खुश होंगे
और तनिक सतर्क
कि कहीं लौट न आये फिर से
और एक रोज जब
आईना देख रहे होंगे
हमारी आँखों के नीचे आये
काले घेरों के बीच से
वो झांकेगा
सुनकर माँ का हृदय गदगद हो गया , "सही कहा तूने" कहते हुए माँ ने उसके सिर में बड़े प्यार से हाथ फेरा। मुड़ी उँगलियों को सीधा करते हुए विन्नी खुश होकर चहकती सी बोली, "है न मम्मा ! सही कहा न मैने" !
और.चलते-चलते बेहद महत्वपूर्ण विषय पर लिखे
इस लेख को पढ़कर चिंतन अवश्य कीजिएगा...।
सूखने लगे हैं प्राकृतिक जलस्रोत
सम्पूर्ण भारत में ऐसे अगिनत प्राचीन जलस्रोत हैं जो आज लुप्त होने के कगार पर हैं। यदि आज भी इनकी सार-संभाल की जाए तो पेयजल की समस्या का समाधान हो सकता है। प्रशासन की अनदेखी तो है ही मगर स्थानीय लोगों की लापरवाही ज्यादा है। नदी, तालाब और कुओं में ही हम कचरा डालने लगेंगे तो पीने के पानी की किल्ल्त तो होगी ही। आवश्यकता है जागरूक होकर अपनी इन अनमोल धरोहरों को सहेजने की। वरना सामने कुआ होगा और हम प्यासे ही मर जायेगें।
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आज के लिए इतना ही
कल का विशेष अंक लेकर
आ रही हैं प्रिय विभा दी।
आदमी इतना बड़ा हो जाएगा कि
जवाब देंहटाएंजेब में पहाड़ लेकर चलेगा अरे
ये तो सतयुग आ गया
सुनती थी कि कलि काल में इंसान
बौना हो जाएगा कि चींटियां तक उसे निगल जाएगी
रात का सपना,
बेहतरीन अंक..
आभार
सादर
साभार धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमुंडेर पर दाने पानी की व्यवस्था वाकई सुकूनदायक होती है ।
जवाब देंहटाएंलाजवाब प्रस्तुति सभी लिंक्स उम्दा एवं पठनीय ।
मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार प्रिय श्वेता !
सबसे पहले तो देर से उपस्थित होने के लिए क्षमा चाहती हूँ श्वेता जी,कुछ घरेलू व्यस्तता के कारण असमर्थ थी। इन दिन ब्लॉग पर मेरी सक्रियता कुछ काम हो गई है। मेरे लेख को साझा करने के लिए हृदयतल से धन्यवाद आपको। आप सभी को सादर नमन
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