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गुरुवार, 9 मार्च 2023

3692...संस्कारों का अंत हो तुम...

शीर्षक पंक्ति: आदरणीया कुसुम कोठारी जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

कल होली तो हो ली... 

 आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

कहो समय

संस्कारों का अंत हो तुम

लालच की पराकाष्ठा

अनैतिकता का बाना

भ्रष्टाचार के जनक

स्वार्थ के सहोदर

धर्म के धुंधले होते रंग

विषज्वर के आरोही हो।।

होली आई

सबने खेली

रंग गुलाल लिए

होली होली है

७०२. गुब्बारे

इस बार होली में

अजीब नज़ारा देखा,

गुब्बारा एक चला,

पर घायल कई हो गए.

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस

ताड़ना की अभिव्यक्ति को  मोक्ष
दे पाएं,
नारी समतल धरातल की निर्विवाद
अधिकारी हो जाये।

बुरा न मानों होली है !!!!

रंगों से भरे दिल में फोड़ आये

मैंने कहा खुद ही से अरे,

बुरा न मानों होली है!!!!

रंगभरी स्पृहा--

मुश्किल है
हिय का
तर्पण,
रंगीन देह की थी अपनी अलग सीमाएं,
कोलाहल थमते ही लहरों ने किया
आत्म समर्पण। 

*****

रवीन्द्र सिंह यादव 


9 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मेरी टिप्पणी स्पैम में है पब्लिश कर दें कृपया।

      हटाएं
  2. मुझे शामिल करने हेतु आपका हृदय तल से आभार । सभी रचनाएं अद्वितीय हैं नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी पंक्तियों को शीर्षस्थ सम्मान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
    बहुत सुंदर प्रस्तुति,सभी रचनाएं बहुत आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी पंक्तियों को शीर्षस्थ सम्मान देने के लिए हृदय से आभार आपका।
    शानदार प्रस्तुति।
    सभी रचनाएं आकर्षक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को प्रस्तुति में चयन करने के लिए हृदय से आभार।
    सादर सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  5. टिप्पणी स्पैम में जा रही है देखें कृपया।

    जवाब देंहटाएं
  6. होली के रंगों से रंगी सुन्दर रचनाओं का संकलन, सभी रचनाकारों को होली की शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं

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