आँचल से झाँक उठा
मोती सा दिनमणि गुलाब आभ!
प्रकृति मुग्ध, रूप निज निहार
अँगड़ाई, शरमाई, अंग-अंग
भरा इन्द्रधनुष
जगती चैतन्य ज्योति स्नात सुप्रभात..!!
रामकृपाल गुप्ता
हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है
हम फ़िफ़्टीज़ ,सिक्स्टीज ,सेवेंटीज के लोग
हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है
हम वाओ ,मार्वलस कह कर एक्सक्लेमेशन मार्क्स वाले रिएक्शन नहीं देते
हम तो बस हैरानियों पर चुप से , जड़ से ,मूर्तिवत खड़े हो जाते हैं
अब तो सब सपना हो गया
इक नगर की इक गली में इक मकां था, मिट गया.
जो हमारे प्यार का अंतिम निशां था, मिट गया?
कुछ गुमां दिल में उठा, टूटे तअल्लुक भी कई
तल्खियां बढ़ती गईं, जो दर्मियां था मिट गया.
सुंदर अंक
जवाब देंहटाएंआभार,
सादर
पुरुष के कलम से डायन और बुद्ध अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
बहुत उम्दा प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार
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