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बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

3663..कुछ गुमां दिल में उठा..


स्वागत आगत ऊषा
स्वागत अनुराग अरुण प्रात!

खिला-खिला विहँसा नभ प्राची का
आँचल से झाँक उठा
मोती सा दिनमणि गुलाब आभ!

प्रकृति मुग्ध, रूप निज निहार
अँगड़ाई, शरमाई, अंग-अंग
भरा इन्द्रधनुष
जगती चैतन्य ज्योति स्नात सुप्रभात..!!
रामकृपाल गुप्ता
बदलते परिवेश  ...और कुछ पल, खास रचनाओं के संग..✍️

हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है

 हम फ़िफ़्टीज़ ,सिक्स्टीज ,सेवेंटीज के लोग 

हमारी पीढ़ी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं है 

हम वाओ ,मार्वलस कह कर एक्सक्लेमेशन मार्क्स वाले रिएक्शन नहीं देते 

हम तो बस हैरानियों पर चुप से , जड़ से ,मूर्तिवत खड़े हो जाते हैं 

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साज़िश ए मसलूब में, मुक्कमल शामिल निकला,

बहोत आसान है, ग़ैरों पर तंज़ से उँगलियाँ उठाना,
लतीफ़ा ए अक्स मेरा उम्र भर का हासिल निकला,
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अब तो सब सपना हो गया

गांव जाते ही बचपन की सारी यादें 
आँखों के सामने आ जाती हैं
दादा दादी का प्यार,दुलार
दादा जी का मेरा पैर छू कर कहना
हमार राजा आ गईल
आपन बहनी का हम गोड़ रख लेई
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इक नगर की इक गली में इक मकां था, मिट गया.

जो हमारे प्यार का अंतिम निशां था, मिट गया?

 

कुछ गुमां दिल में उठा, टूटे तअल्लुक भी कई

तल्खियां बढ़ती गईं, जो दर्मियां था मिट गया.

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डायन और बुद्ध

कुछ औरतें,
अपने पतियों,
और बच्चों को सोते हुए,
अकेला छोड़ चली गईं,
ऐसी औरतें,
डायन हो गईं
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।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

4 टिप्‍पणियां:

  1. पुरुष के कलम से डायन और बुद्ध अच्छा लगा

    सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत उम्दा प्रस्तुति मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं

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