शीर्षक पंक्ति: आदरणीया आशा लता सक्सेना जी की रचना से।
सादर स्वीकार करें।
मंगलवारीय अंक में पांच लिंक के साथ हाज़िर हूँ।
आज की पसंदीदा रचनाएँ-
क्या कुछ कहा
यह क्या है
वह नहीं चल रहा है
राह में झगड़ने की
कभी-कभी ऐसा होता है।
अनुक्रिया खेल--
फिर उसी अंक पर आता है
मैं , से कहां की थी आगाज ए
सफ़र , फिर से देखने की तरफ़
बढ़ना चाहता है ये क्लाइंट
लाइफगार्ड्स के
या
से हो कर ,
कम पानी है क्यों..
जो आपको अच्छा नहीं दूसरों को कैसे ,
प्रीति की दरिया इतना कम पानी क्यों है।
अंगारों को कहने का शौक देखा ,
मसर्रती जमीं पेबस्टर्स की कहानी क्यों है।
पक्षी-जीवन के दुह-छाँव के रंग
जीवन क्या है, कितना है. कब कोई जीवन पूरा
होता है और कब वो अधूरा रह जाता है. क्या इसका उम्र से कोई लेना-देना है. नहीं
जानती, लेकिन इतना जानती हूँ बीच राह
में यूँ ही अचानक बिछड़ गए लोग छूट गए लोगों के जीवन में इस कदर रह जाते हैं कि
उनका जीवन सच में बहुत मुश्किल हो जाता है.
`दर्द का चंदन‘
कुल मिलाकर यह उपन्यास कैंसर जैसी भयंकर बीमारी से लड़ने के
लिए हमें जरूरी सूत्र देता है। इसे पढ़ने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाना चाहिए
ताकि वे भी सीख सकें कि मुश्किल वक्त में कैसे पूरे परिवार को साथ लेकर चलते हुए
इस महामारी पर विजय पाई जा सकती है। मैं इस पुस्तक के लिए डॉ उषा किरण जी को बधाई
एवं दीर्घ स्वस्थ्य जीवन की शुभकामनाएँ तो देता ही हूँ साथ ही जाने/अनजाने अपने
अनुभव बांट कर उन्होंने बहुतों की जो मदद करी उसके लिए अपना आभार भी प्रकट
करता हूँ।
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फिर मिलेंगे।
रवींद्र सिंह यादव
आभार,
जवाब देंहटाएंशानदार अंक
सादर
कविता, समीक्षा के लिंक्स अच्छे लगे
जवाब देंहटाएंआभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को इस अंक में स्थान देने के लिए |समीक्षा लिनक्स अच्छे लगे |
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति…मेरी पुस्तक की समीक्षा भी शामिल करने के लिए हार्दिक आभार!
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